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जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया
जब भी हम अपने में जीवन-तत्त्व को निहारते हैं, तब-तब प्रकृति और परमात्मा के प्रति अहोभाव और साधुवाद से भर उठते हैं। जब-जब किसी के जीवन में रोग और मृत्यु के क्षणों के साक्षी होते हैं, तब-तब संसार के स्वरूप का चिंतन हो आता है कि 'नानक दुखिया सब संसार!' जब हम दुःख और कष्टों को देखते हैं, तो हृदय में आत्मसापेक्ष होने की प्रेरणा जगती है। जब सबके जीवन-तत्त्व को निहारते हैं तो परमार्थ के भाव हृदय में उजागर होते हैं।
द:ख, ईर्ष्या, निराशा और कष्ट- ये सब जीवन के नकारात्मक पहलू हैं। जीवन को जीवन की दृष्टि से जीने का अनुभवं ही जीवन में अंतर्दृष्टि को खोलने का आधार है। अगर हम दुःखों को देखने जाएँगे, तो धरती पर ऐसा कौन-सा प्राणी है जिसे अपने जीवन में दुःखों और कष्टों का सामना न करना पड़ा हो। अगर सुखों को निहारते जाएँ, तो ऐसा कौन-सा स्थान और घटक है जहाँ हम सुखी होकर सुख देखने जाएँ और हमें सुख न दिखाई दे।
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