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शेर हैं, डंक मारने वाले बिच्छू हैं, जहर उगलते साँप हैं, उसी प्रकार हम लोगों के चित्तों के भी यही हाल चाल हैं । हमारे चित्त में भी ऐसा ही संसार बसा हुआ है। हमारा मन और चित्त भी ऐसे ही गुटरगूं करते हैं, डंक मारते हैं, उगलते हैं, गुलांचे भरते हैं, और दहाड़ मारते हैं । हम अपने-अपने मन को पहचानें ।
जहर
मैं चाहता हूँ कि व्यक्ति अपने जीवन के प्रति जीवन का वास्तविक नजरिया लेकर आए ताकि जीवन को जीवन के रूप में देख कर जीवन के जीवनदायी परिणाम निकाल सके। अगर हम केवल मृत्यु और देह की क्षणभंगुरता को ही देखते रहे तो हम संसार से उदासीन हो जाएँगे और यदि हमने जीवन को जीवन की दृष्टि से देखा तो हम संसार में रह कर भी कमल की पंखुरियों की तरह पूरी खिलावट के साथ अपना जीवन जी सकेंगे ।
जीवन सौ साल का हो सकता है, पर मृत्यु तो क्षण भर में आ जाती है । वह एक ही क्षण में सारा काम तमाम करती है और चली जाती है। यदि यह कहा जाए कि जीवन क्षणभंगुर है तो मैं कहूँगा तुम इस शास्त्र को बदल डालो। मरे देखे, मृत्यु क्षणभंगुर है जो पल में आती है, काम तमाम कर देती है और चली जाती है, पर जीवन को पूरे सौ साल जीना है । मृत्यु से कहीं ज्यादा उम्र होती है व्यक्ति के जीवन की । परिवर्तन क्षणभंगुर होते हैं पर उनके बावजूद भी जीवन का क्षण विद्यमान रहता है । इसलिए यदि हम जीवन जी रहे हैं तो बहुत प्रसन्नता, मधुरता, और आनंद से जिएँ । रोतेझींखते, निराश, तनावग्रस्त जीवन जिया तो ऐसा जीना जीना नहीं हुआ। वह जीवन के नाम पर भी शरीर के बोझ को ढोना हुआ ।
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जिंदगी की आखिरी घड़ी तक, जिंदगी के आखिरी क्षण तक जब लगे कि मृत्यु पास आ ही गई है तो भी उस अंतिम क्षण तक आप जीवन का ऐसा परिणाम निकालते रहो जैसे कि तबले और तानपुरे में अंतिम क्षण तक संगीत निकालने का सामर्थ्य होता है ।
यही तो व्यक्ति की प्रज्ञा और बोधदृष्टि है कि उसने अंतिम क्षण को
आपकी सफलता आपके हाथ
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