Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 90
________________ जान लिया क्योंकि मृत्यु तो आएगी ही लेकिन हम मृत्यु के आने से पहले अपने जीवन का महोत्सव मना चुके होंगे। हम अपने जीवन की दहलीज पर मृत्यु को दस्तक नहीं देने देंगे वरन् मृत्यु की बजाय मुक्ति को आमन्त्रित करेंगे। मृत्यु तो कल होगी किन्तु हम अपनी मुक्ति को आज साध लेंगे । बोझिल मन से यदि हम नीचे से ऊपर भी आएँगे तो लगेगा कि परेशानी में पड़े हैं। पर उत्साह - भाव के साथ कहीं भी नीचे से ऊपर जाना चाहेंगे तो बड़े से बड़ा पहाड़ भी हमें कठिन नहीं लगेगा मुझे याद है कि जब मैं हिमालय की यात्रा पर गया था तो मेरे साथ पचहत्तर वर्ष के बूढ़े मेरे पिता संत भी थे। मैं यह देखता ही रह गया कि वे पूरे मनोयोग से हिमालय और गंगोत्री तक पहुँच गए। वे ठेठ नीचे धरातल से पैदल चलना शुरू हुए और वहाँ तक पहुँचे जहाँ तक उन्हें पहाड़ पहाड़ न लगा। पहाड़ उस व्यक्ति को पहाड़ लगता है जो पहाड़ को पहले ही चरण में बोझ मान लेता है । जिस व्यक्ति को पहाड़ पर चढ़ना भी शिखर पर चढ़ने की उपलब्धियों को प्राप्त करने की तरह लगता है, उस व्यक्ति के लिए पहाड़ पहाड़ नहीं होता । मैंने सुना है कि जब एक छोटी बच्ची अपने छोटे भाई को अपने कन्धे पर उठाए हुए पहाड़ी रास्तों से चल रही थी तो वह हांफने लगी क्योंकि पहाड़ी रास्ता था और उसकी पीठ पर उसका छोटा भाई था । चलते-चलते वह आगे पहुँची तो उसे एक और राहगीर मिला। उसने सोचा, 'बेचारी छोटी बच्ची और ऊपर से इतना अधिक बोझ !' उसने कहा, 'बिटिया, थक गई होगी और फिर तुम्हारे कन्धों पर इतना भार भी है। उसने राहगीर को घूरा, घूरकर देखा और कहा - 'खबरदार, जो आपने इसको भार कहा । यह तुम्हारे लिए भार होगा किन्तु मेरे लिए तो यह मेरा भाई है।' यह जवाब देते हुए उसने अपने छोटे भाई का माथा चूमा, फिर से उसे अपने कन्धे पर बिठाया और द्रुत गति से आगे बढ़ गई। जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया Jain Education International For Personal & Private Use Only ८९ www.jainelibrary.org

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