Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 65
________________ अस्तित्व को इन्कार करने लगा है। उसे ऐसा लगता है कि जो कुछ है, वह केवल वही है और सब कुछ उसी के इशारों पर होना चाहिए। ध्यान रखें, नकारात्मक विचारों को छोड़े बिना, तुम अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर पाओगे। इसके लिए तुम चाहे जितने व्रत, त्याग, तप और मौन कर लो। अगर छोड़ना ही है तो नकारात्मक विचारों को छोड़ो और अगर अपनाना ही है तो सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाओ। सकारात्मक सोच जीवन का सबसे बड़ा तप, व्रत और अनुष्ठान है। त्यागना है तो अपनी चिंताओं का त्याग कीजिए। चिंताओं के त्याग से आपका जीवन भी सुखी बनेगा और परिवार में भी सुख, समृद्धि और शांति बढ़ेगी। व्यक्ति को हर समय चिंता लगी रहती है, कि कहीं ऐसा हो गया तो क्या होगा? कहीं मैंने उसे ऐसा बोला और वह बुरा मान गया तो क्या नतीजा निकलेगा? अरे, चिंता करने से क्या हासिल होगा? जब जैसा जो होगा, तब उसका वैसा ही सामना कर लेंगे। बात के बीत जाने पर क्या सोचना? जीवन के साथ सहजता को जोडिए। जब जैसा होना होगा, तब वैसा ही होगा। फिर व्यर्थ की चिंताओं का बोझ पालने से क्या फायदा? देखिए, मैं आपके सामने बोलने के लिए मुखातिब हूँ। मैं भी चिंता पाल सकता हूँ कि 'मैं जो बोलूंगा, लोग उसे क्या समझेंगे?' लोग अच्छा समझें तो चिन्ता की कोई बात ही नहीं है किन्तु अगर लोग बुरा भी समझें तो इसमें क्या चिन्ता? बहुत से लोग ऐसे भी तो हैं जो अच्छा नहीं बोल पाते। आज अगर ठीक से नहीं बोल पाए तो कोई बात नहीं, कल को और बेहतर बनाएँगे। याद रखिये कि सहजता से बढ़कर जीवन में कोई औषधि नहीं होती। जब व्यक्ति बीमार होता है, तब उसे दो तरह की चिन्ताएँ सताती हैं। 'मैं ठीक होऊँगा या नहीं।' ठीक हो गए तो अच्छी बात है और ठीक नहीं हुए तो इसमें भी क्या चिन्ता? डॉक्टर के पास चले जाओ। व्यक्ति डॉक्टर के पास जाता है तब भी उसे दो तरह की चिन्ताएँ सताती हैं, 'मैं मर जाऊँगा या जीवित रहूँगा।' जीवित रहने के लिए ही तो दवा ले रहे हो तो फिर इसमें चिन्ता की क्या बात? और यदि मर भी गए तो क्या घट जाएगा? आखिर सब आपकी सफलता आपके हाथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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