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एकदिन तो मरना ही है । व्यक्ति मरता है, तब भी दो तरह की चिन्ताएँ बनी रहती हैं, ‘मरकर स्वर्ग में जाऊँगा या फिर नरक में ।' स्वर्ग में गए तो कोई चिंता ही नहीं, क्योंकि वहीं तो तुम जाना चाहते थे और नरक में गए तब भी कोई चिन्ता नहीं, क्योंकि पहले से ही बहुत से लोग वहाँ बैठे हैं, जिनसे बतिया कर तुम अपना समय बिता लेना ।
तुम उस नरक को याद करके आज अपने जीवन को नरक क्यों बना रहे हो? छोड़ो, इन व्यर्थ की चिंताओं और नकारात्मकताओं को। अपने दिलो-दिमाग में अमन-चैन को तरजीह दो । दिमाग में अनावश्यक बोझा मत लादो। सुबह उठते ही तुम अपने मन में संकल्प ले लो कि आज मैं हर परिस्थिति में प्रसन्न रहूँगा, शांत और सहज रहूँगा । फिर देखिए दिन भर का तनाव कैसे उड़न-छू हो जाता है। याद रखिए यह मंत्र 'शांति चाहिए तो शांत रहिए और खुशियाँ चाहिए तो मन को खुश रखिये' ।
मैं चाहूँगा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन के साथ एक प्रयोग जोड़े और वह प्रयोग यह है कि जैसे ही सुबह आपकी आँख खुले, आप सबसे पहले एक मिनट जी भर कर मुस्कुराइए। भगवान को याद करने की जल्दी मत कीजिएगा। अभी तो पूरा दिन बाकी है, भगवान को याद करने के लिए। माता-पिता को दुआ - सलाम भी बाद में कर लेंगे। सुबह आँख खुलते ही सबसे पहले व्यक्ति अपने मन की दशा को ठीक कर ले, मुस्कान के साथ । एक मिनट की यह भेंट आप मुझे भी दे दीजिए। एक ऐसी मुस्कान कि जो रोम-रोम को पुलकित कर दे, इस शरीर के कोने-कोने में प्रसन्नता बिखेर दे। मुस्कुराइये, प्रेम से मुस्कुराइये, तबीयत से मुस्कुराइये। मुस्कान जीवन की पहली और आखिरी संजीवनी है ।
अगर कोई व्यक्ति यह प्रयोग तीस दिन तक कर लेता है तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह व्यक्ति अपने जीवन की बहुत-सी समस्याओं से मुक्त हो जाता है। यह प्रयोग आपके जीवन में खुशियाँ लाएगा। जैसे ही आप सुबह उठें, स्वयं से प्रश्न करें कि 'बोल बन्दे ! तुझे खुशी चाहिए या नाखुशी ?' नाखुशी चुनने की बेवकूफी आप करेंगे नहीं, इसलिए खुशी चुनकर बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए
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