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सिर तो इन सींगों के बीच घुसाकर देखू कि क्या होता है? मोतीभाई प्रतीक है। ऐसा फालतू आदमी, बेकार आदमी और कुछ नहीं तो साँड के सींग में ही माथा डालने की सोचेगा। आखिर एक दिन उसने सींगों के बीच अपना माथा घुसेड़ ही दिया और जैसे ही माथा घुसा, साँड चौंका और इधर-उधर भागने लगा और उलट-पुलट करना शुरू हो गया। बेचारे आदमी की दस-बीस हड्डी-पसली जरूर टूट गई होगी। गाँव वालों ने बमुश्किल उसको निकालकर बचाया। गाँव वालों ने कहा, 'अरे, कुछ तो सोचकर करते।' मोतीभाई ने कहा, 'आप लोग भी कैसी बेवकूफी की बात करते हैं। अरे, मैंने पूरे तीन महीनों तक सोचा और उसके बाद ही माथा डाला है। अब इससे ज्यादा कितना सोचूँ।' फालतू बैठे आदमी की सोच भी उसके जैसी फालतू ही होती है। इसीलिए कहता हूँ व्यस्त रहो। जीवन में हर समय व्यस्त। पर अस्तव्यस्त मत रहो।
मैं एक बार किसी जेल में गया था क्योंकि वहाँ मुझे कैदियों को सम्बोधित करना था। जब मैं जेल के भीतर गया तो वहाँ मुझे दो पंक्तियों का एक अमृत वाक्य पढ़ने को मिला कि 'अगर तुम दुःखों से मुक्त रहना चाहते हो तो अपने आपको हर समय व्यस्त रखो।' मैंने वे पंक्तियाँ पढ़ी और मुझे मंत्र की तरह लगीं। जैसे कृष्ण जेलखाने में पैदा हुए थे लेकिन वहाँ पैदा होना ही उनके लिए और धरती के लिए मुक्ति का द्वार बन गया। ऐसे ही जब मैं जेल में गया तो वहाँ से यह अमृत सूत्र लेकर आ गया कि 'हरदम अपने को व्यस्त रखो।'
मैं दो व्यक्तियों की बात करूँगा। मैं उन दोनों व्यक्तियों का साक्षी हूँ जिनकी पत्नी मर गई थी। एक व्यक्ति करीब पैंसठ वर्ष का और दूसरा करीब चालीस वर्ष का था। पैंसठ वर्ष के आदमी की पत्नी मर गई तो मैं देखता कि वह आदमी रात को किसी धर्मस्थान में जाकर सो जाता। इत्तफाक की बात कि एक दिन मुझे भी उस धर्मस्थान पर जाने का मौका मिला। वहाँ पाँचसात दिन तक रहने का अवसर भी मिला। मैं देखा करता कि वह आदमी रात भर तड़पता, हाथ-पाँव पटकता रहता और कहता, 'अरे तू मर गई पर मेरा ७६
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