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एक दिन कालिदास के श्वसुर जंगल के रास्ते से जा रहे थे कि उनकी नजर पेड़ पर बैठे हुए कालिदास पर पड़ी। कालिदास उस समय जिस डाल पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे । उन्हें लगा कि इससे अधिक मूर्ख तो कहीं नहीं मिलेगा। उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह कालिदास के साथ कर दिया।
कालिदास के पिता ने उसे समझा दिया था कि तुम्हारी पत्नी बहुत ज्ञानी और विदुषी है। उससे कभी बहस मत करना । कालिदास की पत्नी ने कालिदास को संस्कृत पढ़ाने की बहुत कोशिश की पर पढ़ना तो दूर, वह तो सही उच्चारण भी नहीं सीख पाया । अन्त में वह समझ गई कि उसका पति निरक्षर और महामूर्ख है ।
एक दिन पत्नी ने कालिदास को गुस्से में कहा- 'जाओ, इस घर से निकल जाओ। मुझे अपनी सूरत तभी दिखाना, जब तुम मेरे समान ज्ञानी हो जाओ ।' पत्नी के इन शब्दों ने कालिदास की आत्मा को भीतर तक झकझोर दिया। उसने घर से प्रस्थान करते हुए यह निश्चय कर लिया कि 'अब मैं हर हालत में ज्ञान अर्जित करके ही रहूँगा ।' बत्तीस वर्ष की उम्र में कालिदास ने ज्ञान-अर्जन करना आरम्भ कर दिया । माँ सरस्वती के वरदान से उन्होंने कालजयी महाकाव्यों की रचना कर इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। कालिदास ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि उन्होंने चुनौती को स्वीकार किया था। आप भी चुनौतियों को स्वीकार करना सीखें।
हर क्षण अपने भीतर उत्साह बनाए रखो । जब भी तुम्हें लगे कि तुम्हें अपनी याद हो आई है तो तुम अपने भीतर एक उत्साह, एक उमंग जगा लो । ऐसा लगे कि जैसे तुम्हें अभी-अभी कोई खुशी मिली है। जब व्यक्ति घर से बाहर निकलता है तो यह सोचता है कि बाँया पैर पहले रखूँ या दाँया, 'सूर्य स्वर' चल रहा है या ‘चन्द्र स्वर' | कैसे शकुन मिले हैं, अच्छे या बुरे? पर मैं कहना चाहूँगा कि व्यक्ति बाहर निकलते समय सबसे पहले यह देखे कि मेरे भीतर उत्साह, उमंग और उल्लास है या नहीं। अगर मन में खुशियाँ भरकर घर से निकले तो हर अपशकुन भी तुम्हारे लिए शकुन में बदलता चला
सफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास
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