Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 53
________________ ५२ चलने वाला मंज़िल पाता, बैठा, पीछे रहता है। ठहरा पानी सड़ने लगता, बहता निर्मल होता है । पाँव दिये चलने की खातिर, पाँव पसारे मत बैठो ॥ Jain Education International तेज दौड़ने वाला खरहा दुपहर चलकर हार गया । धीरे-धीरे चलकर कछुआ, देखो बाजी मार गया। चलो कदम से कदम मिलाकर दूर किनारे मत बैठो | बैठे कि तालाब बने, चलने लगे कि नदिया हुए। रुके कि बाजी हारे, चलते रहे तो जीत जाओगे । भला, जब धरती, तारे, चाँद, सूरज सभी गतिमान हैं, फिर हम ही क्यों मायूस बैठे हैं। आत्मविश्वास की शक्ति जगाओ । गतिशील और क्रियाशील बनो, लक्ष्य को फिर से आँखों में बसाओ । प्रयत्न हो एक बार फिर से ; ईश्वर तुम्हारे साथ है। धरती चलती, तारे चलते, चाँद रातभर चलता है । किरणों का उपहार बाँटने, सूरज रोज निकलता है। हवा चले तो महक बिखेरे, तुम भी प्यारे मत बैठो ॥ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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