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जबकि व्यक्ति की सोच और विचार ही मूल्यवान हैं। मैंने अपने संन्यास जीवन के शुरूआती दौर में ही यह बोध अर्जित कर लिया था कि व्यक्ति के स्वर्ग या नरक के द्वार का निर्धारण मात्र उसकी क्रिया से नहीं होता, वरन उसके सोच, विचारों और उसकी भाव-दशाओं के द्वारा होता है।
किसी संत के बारे में स्वयं महावीर से प्रश्न किया गया-'इन क्षणों में इस संत की मृत्यु हो जाए तो वह कौन-सी गति प्राप्त करेगा?' उत्तर मिला—'सातवीं नरक'। फिर प्रश्न पूछा गया-'अगले क्षण इसकी मृत्यु हो जाए तो?' उत्तर मिला—'सातवाँ स्वर्ग।' एक ऐसा संत जो एक पाँव पर खड़ा होकर अपना हाथ आकाश की तरफ उठाए, एक महीने के उपवास के लिए कृतसंकल्प था; उसकी ऐसी विषम दशा! मन की विचारधारा अगर दूषित है तो व्यक्ति दूषित है, विचारधारा अगर पतित है तो व्यक्ति पतित है।
व्यक्ति की सोच अगर दूषित है तो वह सोच हर क्षण उसकी आत्महत्या करवाती रहेगी। उसका हर क्षण चिंता, तनाव, अवसाद और डिप्रेशन को जन्म देगा। इसलिए जिन्दगी में किसी चीज को मूल्य देना है तो अपनी सोच और विचारों को मूल्य दीजिए। आज जो सोच बनी है, कल वही जुबान पर आएगी। तुमने अगर आज मुझे गाली दी है तो मैं यह नहीं कहूँगा कि निमित्त ही ऐसे खड़े हुए, वरन् तुम मेरे प्रति गलत नजरिया पहले ही अपना चुके थे जिसके चलते तुमने मुझे आज गाली दी। सोच पहले बनती है, वाणी बाद में निकलती हैं। जो सोच में होगा, वही वाणी में अभिव्यक्त होगा। अगर आप अपनी वाणी को मधुर और सौम्य बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी सोच को विनीत और सौम्य बनाइए। जो सोच में होगा, वही वाणी में आएगा
और जो वाणी में है, वही व्यवहार बन जाएगा। इसलिए अगर आप अपने व्यवहार को अच्छा बनाना चाहते हैं तो अपनी सोच को अच्छा बनाइए। जो व्यक्ति के व्यवहार में होगा, वही उसकी आदत बन जाएगी। अगर आप अपनी बुरी आदतों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो अपनी बुरी सोच से पहले छुटकारा पाइए।
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आपकी सफलता आपके हाथ
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