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आप। आपके मन की बात आपकी पत्नी भी नहीं जान सकती । मन आपकी प्राईवेट प्रोपर्टी है। लोग कहते हैं कि आज व्यक्ति की 'कथनी और करनी में एकरूपता नहीं है।' इसका कारण यह है कि व्यक्ति को सोचने का सही तरीका नहीं आता। वह सोचता कुछ है और करता कुछ है । इस बात का मूल्यांकन प्रत्येक व्यक्ति स्वयं करे कि उसके मन में उठने वाले ऐसे कौन-से विचार हैं जो निरर्थक और त्याज्य हैं तथा ऐसे कौन-से विचार हैं जो अर्थपूर्ण और अमल में लाने योग्य हैं 1
व्यक्ति त्याग के नाम पर व्रत-उपवास करता है, पर इन त्यागों से काम नहीं चलेगा । त्याग करना ही है तो व्यक्ति स्वयं के भीतर पलने वाले निरर्थक और नकारात्मक विचारों का त्याग करे। ऐसे विचारों का कोई आधार और भविष्य नहीं होता। वे कोई शुभ परिणाम नहीं देते । व्यर्थ के विचारों को दिमाग में पालना जंगली घास को बगिया में उगाने की तरह है । सुन्दर बगिया के लिए जरूरी है कि व्यक्ति निरर्थक घास को काटे और सार्थक बीजों को बोए ।
व्यर्थ के विचार, व्यर्थ की सोच व्यर्थ के ही कार्य करवाएगी। अपने आप में देखिये कि कहीं आप भी तो व्यर्थ के विचारों के शिकार नहीं हैं । चिंता, तनाव, दंगा-फसाद, आतंक, चोरी, व्यभिचार आखिर सबके पीछे आदमी के व्यर्थ के विचार ही प्रेरक का काम करते हैं। किसी कारागार में जाकर वहाँ बंद पड़े कैदियों से मुलाकात कीजिए और जानने की कोशिश कीजिए कि उनके अपराध का मूल कारण क्या रहा है। जवाब होगा : घटिया सोच, व्यर्थ के विचार, गलत सोहबत, मानसिक उग्रता । घटिया सोच और व्यर्थ के विचार ही ऊलजलूल कार्य करवाते हैं।
(एक घटना है, मोतीलाल पटेल के जीवन की। अपने सार्थक कृत्यों और विचारों के लिए विख्यात वल्लभ भाई पटेल के बारे में तो सभी जानते हैं, पर मोतीलाल पटेल के बारे में कोई नहीं जानता, क्योंकि वे थे ही ऐसे ही । मोतीलाल पटेल गुजरात के किसी गाँव में रहते थे । वे प्रतिदिन सुबह उठते और अंगड़ाइयाँ लेते हुए चले आते । बाहर चबूतरे पर बैठकर नीम का दांतुन किया करते। एक साँड भी प्रतिदिन वहाँ आता । वह मोती भाई को दांतुन बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए
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