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सोच और बेहतर नजरिया, आदमी के द्वारा अपनाए जाने वाले वे बुनियादी उसूल हैं कि धरती पर रहने वाले जिस व्यक्ति ने इन्हें अपनाया होगा, वह हममें से कोई महावीर या मैक्समूलर, नोबल या नेल्सन, गोर्वाच्योव या गाँधी बना होगा। टाटा, बिड़ला, बिल गेट्स या अम्बानी होना किसी व्यक्ति-विशेष का अधिकार नहीं है, वरन वह हर व्यक्ति ऐसी ही ऊंचाइयों को पा सकता है जो अपने जीवन में सकारात्मक सोच और बेहतर नजरिया रखता है।
नजरिया, सोच का परिणाम होता है और सोच नजरिये को प्रभावित करती है। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में सोच और नजरिए को सार्थक दिशा देने में सफलता प्राप्त कर ली, उसने अपने जीवन की नब्बे फीसदी समस्याओं के समाधान के लिए मानो संजीवनी शक्ति स्वयं प्राप्त कर ली।
व्यक्ति विविध कलाओं में सम्पन्न होता है, उसे कई कलाओं का ज्ञान भी होता है, लेकिन उसकी ये सारी कलाएँ गौण और फीकी हैं, अगर उसे एक कला नहीं आई। वह है सोचने की कला। कुदरत ने व्यक्ति को मस्तिष्क दिया है, अन्तर्मन दिया है और सोचने की शक्ति देकर उसने व्यक्ति को इस धरती का सिरमौर बनने का गौरव भी प्रदान किया है। चूंकि मनुष्य सोच सकता है इसीलिए तो वह मनुष्य है। यदि मनुष्य से सोचने की शक्ति छीन ली जाए तो वह स्वयं सोचे कि उसकी हथेली पर क्या बचेगा?
जो लोग ध्यान और योग के द्वारा मन की शांति की बात करते हैं, वे इस बात को भली-भाँति जानते हैं कि मन की शांति का उपक्रम करने के बावजूद उसमें चलनेवाली विचारधाराओं से मुक्त होना हर साधक के वश में नहीं होता। माला लेकर बैठ जाने से मन स्थिर नहीं हुआ करता, ध्यान की बैठक लगा लेने मात्र से चित्त में एकाग्रता नहीं आती और सामायिक में स्थिर हो जाने से, चित्त में समता घटित नहीं होती। अपनी जिन्दगी में किसी चीज की यदि सबसे अधिक आवश्यकता है तो वह व्यक्ति की 'समझ' है। व्यक्ति को सही समझ चाहिए। ऐसी समझ चाहिए कि व्यक्ति सही सोचे। सोचना आदमी की फितरत है। वह अपनी सोच को कितना सकारात्मक और रचनात्मक
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