Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 44
________________ I प्रकृति ने हमें कितना कुछ दिया है ! हर व्यक्ति को अति सम्पन्न बना कर भेजा है । यहाँ कोई व्यक्ति गरीब नहीं है । यदि तुम्हारे मन में हीनता की यह ग्रंथि पनप गई है कि मैं गरीब हूँ तो मैं कहता हूँ, 'तुम अपनी एक टाँग मुझे दे दो । तुम्हें एक लाख रुपए मिल जाएँगे। तुम अपना एक गुर्दा दे दो, तुम्हें दो लाख रुपये मिल जाएँगे। तुम अपना दिल बेच दो, तुम्हें पाँच लाख रुपये मिल जाएँगे। तुम अपनी एक आँख दे दो दुनिया तुम्हें दस लाख रुपये दे सकती है।' तुम्हें प्रकृति ने मालदार बनाया है फिर तुम्हारे मन में हीनता की ग्रंथि क्यों है? " एक बहुत प्रसिद्ध पहलवान हुए, जिनका नाम था ओनामी । वह जापान के नामी सूमो पहलवान थे। उनके जीवन का एक प्रसंग है । कहते हैं, जब ओनामी घर के अखाड़े में उतरता था तो सबको धूल चटा देता था । लेकिन जब वही अनामी जनता के सामने अखाड़े में उतरता तो वह अपने चेले-चपाटों से भी हार जाता था । आखिरकार ओनामी ने एक झेन टीचर की तलाश की, जिसका नाम था हाकूइन । उसने हाकूइन को अपनी समस्या बताई । हाकून ने कहा- 'अरे, तुम ऐसा सोचते हो ! तुम तो सागर की एक महान् तरंग हो । चलो, मैं तुम्हें तुम्हारी शक्ति देता हूँ।' ऐसा कहते हुए वह उस पहलवान को अपने ध्यानकक्ष में ले गया और उससे कहा- ‘तुम यहाँ बैठो और अपनी पलकें झुकाकर लगातार इस तत्त्व को अपने भीतर देखो और पहचानो कि तुम सागर की महातरंग हो । ' ओनामी बैठ गया, पर उसे लगा कि उसे कुछ भी नहीं मिल रहा है और उसके दिमाग में फालतू विचार ही आ रहे हैं । पर जैसे ही वह उठने की सोचता, उतने में हाकूइन आ जाते और कहते- 'यू आर ए ग्रेट वेव, तुम तो सागर की महातरंग हो । ' ऐसा करते-करते एक घण्टा बीत गया। दो घण्टे बीते और पूरे चार पहर बीत गये। अब हाकूइन ओनामी को फिर ध्यानकक्ष में देखने आये । उन्होंने पाया कि अब उसके चेहरे पर एक दिव्य आभा उभर आई है। हाकूइन ने अपने ध्यान में देखा कि वह हकीकत में सागर की महातरंग बन चुका है, जिसकी चपेट में यह सराय, यह मठ, गांव, देश और दुनिया सब कुछ आ सफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास ४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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