Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 29
________________ प्रतिक्रमण, जनसेवा आदि सभी कार्य प्रतिदिन करने होते हैं । इतने कार्य होने के बावजूद भी मेरे सभी कार्य सफलता से पूरे हो जाते हैं, क्योंकि हर कार्य के लिए मेरा समय लगभग निर्धारित है, और उस निर्धारित समय में ही वह सब कुछ हो ही जाया करता है । मेरा हर कार्य सिस्टेमेटिक होता चला जाता है । जीवन के साथ सिस्टम चाहिए, एक व्यवस्था चाहिये । आप सुबह उठकर यह व्यवस्था कर लीजिये कि आप दिन भर में इन-इन कार्यों को सम्पादित करेंगे। किसी महिला से पूछो कि क्या तुम गेहूँ को घर में पीसती हो ? वह आपके प्रश्न पर आश्चर्य करेगी और साथ ही यह भी कहेगी कि 'साहब, इतनी फुर्सत कहाँ है?' एक बार मैंने एक महिला से पूछा - ' बहिन ! तुम मंदिर क्यो नहीं जाती ?' उसने कहा- 'टाइम ही नहीं मिलता।' मैंने कहा- 'मै आपके घर प्रवास कर चुका हूँ। वहाँ तो काफी कर्मचारी थे। वैसे झाडू-पौंछा कौन करता है?' उसने कहा - 'नौकर करते हैं।' मैंने पूछा - 'खाना कौन बनाता है?' उसका जवाब था, 'उसके लिए बाई रखी हुई है।' मैंने कहा'बर्तन कौन साफ करता है?' उसने कहा- 'वह भी नौकर ही साफ करता है।' उसके सारे काम नौकर ही करते हैं, फिर भी उसके पास समय नहीं है । बड़े घर वालों की स्थिति ज्यादा नाजुक है । वे मेहनत नहीं करते और केवल शृंगार, पार्टी और मौजमस्ती में ही अपना समय पूरा कर लेते हैं । मेरा अनुरोध है कि एक बार जीने का तरीका फिर से सीखा जाए। केवल पैसा कमा लेना या खाने में रोज बादाम की कतली खाने का सौभाग्य प्राप्त करना ही जीवन नहीं है । जीवन जीने का कोई मकसद तो अवश्य हो । जीने की कोई परिणति भी हो । माना कि पैसा बहुत कुछ होता है पर वह सब कुछ नहीं होता। पैसे के अलावा भी जिंदगी में करने के लिए बहुत कुछ है । यह बात अपने दिमाग में घोट-घोट कर उतार लो कि दुनिया में मुफ्त में किसी को कुछ नहीं मिलता है। जब तक आदमी मेहनत नहीं करेगा, तब तक उसे कुछ नहीं मिलेगा। आप जिस चीज को पाना चाहते हैं, उसे पाने के लिये कड़ी मेहनत कीजिए । २८ Jain Education International आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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