________________
जीवन में व्यक्तित्व-निर्माण करना, किसी श्रेष्ठतम उपलब्धि से कम नहीं है।
हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी शक्ति को, अपने शारीरिक व मानसिक बल को पहचाने । जीवन के प्रति सकारात्मक और बेहतर नजरिया अपना कर ही कोई व्यक्ति अपनी शक्तियों का उपयोग जीवन के विकास और व्यक्तित्व-निर्माण के लिए कर सकता है।
___ एक पुरानी कहावत है-'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' वह व्यक्ति हार ही गया जिसके मन में यह संदेह है कि वह हार सकता है। व्यक्ति का यह कुंठित विचार ही उसकी पराजय का पहला कारण बनता है। वहीं यदि कोई व्यक्ति यह विचार कर ले कि वह हर हालत में जीतेगा ही तो उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं हरा सकती। जब कोई मैदान में उतरता है तो वहाँ एक नहीं, असंख्य प्रतिस्पर्धी होते हैं, पर जीतता एक ही है। क्या आपने उस विजेता की छाती को देखा है, उसके पुट्ठों को देखा है? मैं कहूँगा कि जीतने वाला शरीर की दृष्टि से उतना ही बलवान होता है जितना कि हारने वाला। शरीर से कोई व्यक्ति निर्बल है तो चल जाएगा पर मन से कमजोर रहने वाला व्यक्ति कभी भी अपनी जिन्दगी में कामयाबियों को हासिल नहीं कर सकता है।
मजबूत शरीर और मजबूत मन ही श्रेष्ठ है। कमजोर शरीर और मजबूत मन फिर भी स्वीकार्य है पर मजबूत शरीर और कमजोर मन का साथ कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है। आज व्यक्ति के भीतर दुर्बलता घर कर चुकी है जिसने मन को जर्जर कर दिया है और जिसके फलस्वरूप निराशा, हताशा, अवसाद, निरुत्साह के राक्षसों से व्यक्ति घिर चुका है। अगर कोई व्यक्ति शरीर से बूढ़ा हो, पर उसके भीतर उत्साह, ऊर्जा, उमंग और आशा है तो वह अभी भी युवा है। उसके विपरीत यदि कोई युवक अपने अंदर हीनता की ग्रंथि को पाल चुका है, और उसके मन में निराशा और उत्साहहीनता है तो वह अल्पायु में ही बुढ़ापे के समान जी रहा है।
अगर तुम किसी चीज को हारना या खोना नहीं चाहते हो तो अपने
३८
आपकी सफलता आपके हाथ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org