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जितना ऊँचा लक्ष्य, उतनी ऊँची सफलता । उतनी ही कड़ी मेहनत और वैसी ही कार्यपद्धति । अगर तुम शुरू से ही रैंक का मानस लेकर चलते हो तो अवश्य ही रैंक प्राप्त करोगे । फिर भी अगर प्रथम रैंक न पा सके, तो प्रथम श्रेणी से तो आपको दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। आपको किस मुकाम पर पहुँचना है, इसका निर्णय आप स्वयं करें । व्यक्ति स्वयं का निर्णायक स्वयं बने | हाथ की लकीरों को देखने - दिखाने की बजाय अपने पुरुषार्थ और श्रम से अपने हाथ की रेखाएँ खुद खींचो । व्यक्ति स्वयं ही अपना भाग्य-निर्माता होता है। तुम ऐसा पुरुषार्थ करो कि भाग्य तुम्हारी हथेली पर 'इद्रप्रस्थ' का परिणाम लिख दे ।
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आपकी सफलता आपके हाथ
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