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पूछा- 'बिटिया अब बड़ी हो गई है, इसके लिए कोई योग्य वर बताओ।' वह हरिजन आश्चर्यचकित था। उसने सोचा कि इतना बड़ा व्यक्ति मुझसे क्यों सलाह ले रहा है? फिर भी उसने कहा, 'बताऊँगा'। दस दिन बीत गये। पुत्र ने फिर हरिजन से पूछा- 'क्यों काका, कोई रिश्ता देखा?' उसने जवाब दिया-'नहीं साहब, कोई खास रिश्ता तो ध्यान में नहीं आ रहा है। वैसे एक रिश्ता मेरी नजर में है। मेरे दामाद का भाई है। अच्छा कमाता खाता है। यह सुनते ही वह व्यक्ति गुस्से से भर उठा और बोला-'तेरी यह हिम्मत कि तृ मुझे ऐसे रिश्ते दिखाता है। मेरे पिताजी ने तुझसे सलाह के लिए पता नहीं क्यों कहा?' काका बोले, 'शायद इसलिए कहा कि आप यह समझ सकें कि व्यक्ति को अपने निर्णय स्वयं लेने चाहिए और दूसरों की सलाह पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।'
सही है। तुम जिनसे सलाह लोगे, वे अपने आस-पास के लोगों के बारे में ही तो बताएँगे। तुम कहोगे, 'साहब मेरी बेटी का ब्याह करना है तो वे लोग अपने ही काका, मामा या पड़ौसी के बारे में बताएँगे। अपने नजरिये को इतना बेहतर रखो कि अपने निर्णय तुम स्वयं ले सको और तुम्हें अन्य पर निर्भर नहीं रहना पड़े। मेरी समझ से, सफलता महज किसी संयोग या किस्मत का परिणाम नहीं होती। व्यक्ति का लक्ष्य, उसकी कार्ययोजना, दृढ मनोबल, इच्छाशक्ति, और बेहतर नजरिया ही वे बुनियादी उसूल हैं जो व्यक्ति का कदम-दर-कदम रास्ता साफ करते जाते हैं।
सफलता न भी मिले तो कोई चिंता नहीं। फिर प्रयास करेंगे और प्रयास तब तक जारी रहेंगे जब तक कि सफल न हो जाएँ। हम फिर से आज
आत्मविश्लेषण करें कि हमें अपनी कामयाबी कि लिए क्या करना है? तुम विद्यार्थी हो तो फीस जमा कराते वक्त ही यह निश्चय कर लो कि मुझे प्रथम स्थान पर ही आना है। प्रथम श्रेणी प्राप्त करना, कोई बड़ी बात नहीं है। जो व्यक्ति अपनी पचास प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करता है, वह प्रथम श्रेणी प्राप्त करता है और जो अपनी सौ की सौ प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग कर लेता है, वही टॉपर रहता है।
क्या करें कामयाबी के लिए?
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