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और फिर खाइए, कर्मयोग से जी मत चुराइए । काम करो आराम नहीं । लोग जीमण में जाते हैं, बड़े बाबू साहब बनकर । खाने के वक्त पहुँचेंगे, खाना परोसा - परोसाया मिलना चाहिये । उसमें भी आधा खाना खाया और आधा खाना छोड़ा और झूठे बर्तन भी वहीं पर छोड़ दिये । अरे भई, पहले औरों को खिलाओ, फिर खाओ । अपना खाया हुआ तो गोबर बन जाता है जबकि औरो को खिलाकर खाना, प्रभु का प्रसाद होता है।
आप चाय के लिप्टन टी ब्रांड के नाम से परिचित होंगे। क्या आप लिप्टन के अतीत की कहानी जानते हैं? लिप्टन एक गरीब व्यक्ति था । वह किसी होटल में पहुँचा और उसने उसके मालिक से कहा, 'साहब, मुझे कुछ भी काम दे दीजिए, ताकि मैं अपने भोजन की व्यवस्था कर सकूँ ।' होटल के मालिक ने कहा- 'मुझे खेद है कि मेरे पास तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है । मेरे पास इतने ग्राहक भी नहीं आते हैं कि मैं एक अतिरिक्त नौकर रख सकूँ। इसलिए तुम अन्यत्र नौकरी की तलाश करो।' लिप्टन ने कहा, 'यदि मैं आपको प्रतिदिन चालीस नए ग्राहक लाकर दूँ तब तो मुझे रखना आपके लिए उपयोगी साबित होगा।' होटल के मालिक ने ध्यान से उसकी तरफ देखा और कहा- 'ठीक है, आओ । तुम पहले खाना खाकर आराम कर लो और फिर काम पर लग जाना।' लिप्टन ने कहा, 'नहीं, पहले काम फिर आराम।'
लिप्टन होटल से निकल कर सीधा समुद्र के तट पर पहुँचा । वहाँ स्टीमर से यात्री उतर रहे थे । वह उनके पास गया और बोला, 'साहब आप हमारे होटल चलें, होटल पुराना अवश्य है, पर वहाँ की सुविधाएँ बेजोड़ हैं। वहाँ के कर्मचारियों का आतिथ्य सत्कार, खाना, साफ-सफाई सभी बहुत सुंदर हैं। आप को तो सेवाओं से ही प्रयोजन है ना।' इस प्रकार अपने मधुर व्यवहार से उसने यात्रियों को वहाँ से ले जाने को राजी कर लिया। वह चालीस यात्रियों को होटल पर लेकर पहुँचा । उसने उन यात्रियों की बड़े मनोयोग के साथ सेवा की। यात्री प्रसन्न हो गये और इस तरह सिलसिला चलता रहा। जाते समय यात्री उसे इनाम दे जाते और होटल के मालिक का मुनाफा भी बढ़ गया। धीरे-धीरे लिप्टन ने उसी गाँव के चाय के बागानों को
आपकी सफलता आपके हाथ
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