Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 26
________________ मकसद अर्थात् लक्ष्य जरूरी है । गोली चलाओ तो भी लक्ष्य होना चाहिए, तीर संधान के लिए भी लक्ष्य हो । आप जानते होंगे कि मैग्नीफाई ग्लास से बच्चे खेला करते हैं । हम भी जब बच्चे थे तब उससे खेला करते थे । मैग्नीफाईंग भी छोड़ दिया जाए। एक साधारण ग्लास लेकर धूप में खड़े हो जाओ, इस प्रकार कि सूरज की रोशनी काँच पर पड़े। सूरज की रोशनी आप पर पड़ती है तो भी उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन उस मैग्नीफाईंग ग्लास में पड़ी सूर्य की रोशनी का झलका किसी आदमी पर गिरा दिया जाए तो पन्द्रह सैकण्ड के अन्दर ही वह आदमी कम्पित हो उठेगा, उसके सिर में दर्द होने लगेगा और उसका सिर जलने लगेगा । ताकत है, लक्ष्य में। अगर रोशनी को एक स्थान पर केन्द्रित कर लिया जाए तो वह आदमी को कम्पित कर देती है । अपन लोग भी बचपन में खेला करते होंगे कि हाथ में मैग्नीफाईंग ग्लास लेकर धूप में खड़े हो जाते और कागज के टुकड़े पर धूप के झलके को, सूर्य के प्रतिबिम्ब को फेंका करते और वह कागज जल उठता। मैं उसी मैग्नीफाईंग ग्लास का उपयोग करते हुए जीवन की एक शैली, एक समझ, जीवन की एक फिलोसॉफी देना चाहूँगा कि हर आदमी के जीने का मकसद, लक्ष्य अथवा एक केन्द्र-बिन्दु अवश्य होना चाहिए। आप पाएँगे जिस व्यक्ति का लक्ष्य निर्धारित है, वह चाहे जिधर जाए उसका लक्ष्य सदैव उसकी आँखों में समाया रहता है । वह हर कार्य करता हुआ भी अपने लक्ष्य अथवा अपनी कामयाबी के निकट पहुँचता जाता है । लक्ष्य निर्धारित कीजिए। आपने भी बचपन में एक कहानी सुनी है। खरगोश और कछुए में रेस लगती है। खरगोश तेज गति से भागता है और कछुआ धीमी गति से । मैं उस कहानी से जीवन में कुछ सीखने जैसी बात कहूँगा । अगर आप खरगोश की गति पर ध्यान दें तो आप कहेंगे कछुए में कोई दम नहीं है अतः खरगोश तो जीतेगा ही जीतेगा। लेकिन सब जानते हैं कि खरगोश हार गया और कछुआ जीत गया। आप बता सकते हैं इसके पीछे क्या कारण था? कारण था कछुए की लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता, जो उसे क्या करें कामयाबी के लिए? २५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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