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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्रा. . ॥अथश्रीडांगवोपाख्यानंलिख्यते.॥ ॥श्लोक॥ जयतियदुकूलतिलक : श्रीराधाहृदयवल्लभोकृष्णः सेवितोसुरगणै : सदाचभक्तैर्मुक्तिऽसूररिपुः पुंडरिकाक्ष : // 1 // ॥टीका॥ श्रीराधाना हृदय वल्लन, एवा, जे कृष्ण, ते सर्वोत्क्रष्टपणावडे करिने जयतीनां जय करो, अने, वलि केवा के,देवगणो ए सेव्या हेवा,अने असुरनो नाश करवावाला,कमळना सरखांछे,नेत्र ते जनांएवा श्रने यदुकुलने विशे तिलक नाम् शिरोमणी एवा हे प्रन जयतिनांज० // 1 लोक॥ नारायणंनमस्कत्यनरंचैवनरोत्तमं // देवींसरस्वतींव्यासंततोजयमुदीरयेत् // 2 // ॥टीका॥ नारायणने नमस्कार करिने, तथा च,नर जे अर्जुन अने नरोत्तम् जे भगदान तेमने, तथा स्वरस्वति जे तेने, नमस्कार करिने, व्यासना, प्रसादवडे करिने श्रोता वक्तानो जय थाश्रो. // 2 // ॥श्लोक॥ अज्ञानतिभिरांधस्यझामांजनशिलाकया॥ चक्षुरुन्मीलितंयेनतस्मैश्रीगुरवेनमः॥३॥ // टीका // अज्ञानरूपी तिमीर जे अंधारु तेनो ज्ञानवडे करिने नाश करवावालां, अने ध्यानमार्गे उन्मिलीत छे चक्षुष् ते जेनां एवा जे गुरु, तेने - करुडूं. // 3 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ला // नैमिषारण्यवासिनोऋषयःशौनकादयः नानाकथानकैस्तृप्तासूतंपप्र- श्री. | छुरादरात्॥४॥ ॥टीका॥ नैमिषारण्यने विशे रेहेनारा,एवा जे शौनकादिकऋषियो। | नाना प्रकारनां कथा नक् सांनलिने प्रप्त छे, मन ते जेनां एवा कोइक काले श्रादरबडे करिने सूत पुराणिक्ने पुछता हवा. // 4 // ॥श्लोक॥ ॥ऋषयउचु॥ श्रृणुसूतमहाबाहोसर्वशास्त्रविशारद // पाराशर्यप्रसादा. वन्यूननास्तितवानघ // 5 // टीका॥ ऋषियो बोलता हवा ; हे अनघ, हे पाप रहित हे बुद्धिमान सर्व शास्त्रने जाणनारा पराशरना प्रसादवडे करीने, कांइपण, न्यूनता नथी एवा, हे सुत अमारां जे वचन ते सांभळो. // 5 // ॥श्लोक // ब्रूहिब्रूहिमहाप्राज्ञडांगवस्यकथानकं // तृष्णानांपांडवानांचयुद्धजातं कथंवद॥६॥ ॥टीका॥हे प्रभो हे बुद्धिशालि श्रा समयने विशे तो डांगवर्नु कथानक संभळावो, हे प्रभो दृष्णि जे यादव अने पांडवो तेमने युद्ध शा कारणथी थयु ते / अभने सविस्तर समजावो.॥६॥ ॥श्लोक॥ ऋष्णमातापिताक्रष्णाक्रष्णःस्वजनबांधवा : विष्णुिितचगोत्रंचपांड--तिगोटारि... // हे प्रभो पांडवने तो हरी घणाज वाहाला हता, 1 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailassagarsun Gyanmandie % / केवा के, माता पिता स्वजन बाधववत् गणाता तैमछतां शा माटे युद्ध करवू पडयु / ते सांभळवानी ईच्छा छे. // 7 // ॥श्लोक // कस्मात्स्पातयोर्जातादृष्णिपांडवसंगरे // एतन्मेसंक्षयंछिंधिऋष्ण, वार्तामुदावह // 8 // टीका॥ अहो! इति आश्चर्ये दृष्णि पांडवन जे युद्ध थq,अने। एक विजाने विरुद्ध थq ए मोहोटुं आश्चर्यछे माटे अमारो संदेह भागो. // 8 // ॥श्लोक॥ ॥सुतउवाच॥ श्रृणुशौनकघर्मझडांगवस्वकथानकं,यज्जातमपित्तांत प्रवक्ष्यामितवाग्रतः॥९॥ ॥टीका // सूतपुराणिक बोलता हवा, हे धर्मना जाणनारा,शौनकादिक् मुनियो स्थिरतावडे करिने सांभळो, जे जे वृत्तांत डांगव राजाना। कारणथी थयूं ते सर्व तमने संजळावुछु.॥९॥ ॥श्लोक। परिक्षिदामसंप्राप्तेस्तक्षकाहिजशापत : जनमेजयश्चसंक्रुद्धोनागमेध चकारह // 10 // ॥टीका॥ ज्यारे परिक्षित राजा ब्राह्मणना शापथी तक्षत नागनो दंश थये सते स्वर्ग धामने पाम्या, ते समय तेनो पुत्र जन्मेजय राजा क्रोधायमान थइने, नागमेध यज्ञ करवानो विचार एटले सर्व सर्प कुलने अग्निमा होमि देवा | एवी ईच्छा करतो हवो. // 10 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. लोका। तस्ययझेमहासिद्धानगानागाश्वचारणा : देवर्षयश्चदेवाश्चअप्सरोभिः अ.१ / समागताः॥११॥ ॥टीका॥ ते यज्ञने विशे मोटा मोटा सिद्ध गणो,देव,रुषि, गांधर्व, अप्सरा सहित श्रावता हवा. // 11 // ॥श्लोक // परासरसूतोव्यासःप्राझोबुद्धिमतांननु॥ जन्मेजयस्याशक्षार्थस्थितः सिष्यैःसमंततः // 12 // ॥टीका॥ ते समयने बिशे, पराशर मुनिना सुत हेवा, प्राज्ञ, गुणवान व्यास मुनि जन्मेजयने शिक्षा करवाने अर्थे शिश्यो ए सहवर्तमान प्राविने बिराजता हवा. // 12 // लोक॥ यज्ञातेऽवनृथस्नातंपांनुवंशधरंनृप // प्रत्युवाचसभामध्यव्यासोविनय कोविदः // 13 // ॥टीका॥ पांमूवंशने विशे उत्पन्न थयेलो एवो जे जन्मेजय तेतो यज्ञ करि रहिने अवभ्रत स्नान करवाना समयमा प्रावि पोच्या हेवा जे व्यास मुनि तेतो सभाना मध्ये राजा प्रत्ये बोलता हवा.॥१३॥ ___श्लोक। व्यासउवाच॥ श्रणुजन्मजयभूपहतामिथ्याचपन्नगाः दंशितस्तक्षको नापि,पितातवमहाबलः // 14 // ॥टीका॥ व्यास शुं बोलता हवा ; हे जन्मेजय नुप | / कढुं ते तुं सांभळ; सर्व पन्नग मात्रने, तें मिथ्या होम्या,तारा बळवान पिताने तो,। 2 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ब्राह्मणना शापथी तक्षके दंश करयो, अने ते तक्षक तो शंकरना आभुषणमा जई पेठो तेथी तेनुं रक्षण थयुं छे. // 14 // लोक॥ विधात्रालिखितंभालेभूतभव्यंभवच्चयत्॥ सुखदुःखंभयंक्षेमंसबैचैवविधे वंशात्॥१५॥ ॥टीका॥ एमां कोनो दोष नथी,जेम विधात्राए ललाटमां लखेलंतेम भुत,भाविष्य,ने वर्तमानथयां जायछे,सुख दुःख भयने क्षेम,ए सर्व विधी वशछे. 15 लोक॥ तस्मान्नकस्यचिद्रोहंकर्तुमर्हसिमानद॥ पुरापितामहिराजन्मिथ्याऋष्ण नसंगरः॥१६॥ ॥टींका। हेमानद, मने मानना आपनारा जन्मेजय राजन् एटलाज हेतु माटे कोई उपर द्रोह न करवो, कारण के पूर्व तारा पिता महे पण ऋष्ण साथे मिथ्या संग्राम करचो हतो.॥१६॥ लोक॥ कृतश्चधरणीपालाझानाच्चमित्रवल्लन // एतावदुत्कावचनंगमनागमनो दधे // 17 // ॥टीका॥ हे मित्र कल्लन, ज्ञानथकी विचारीने जो,प्रजार्नु रक्षण करय, एवां वचन कहिने व्यासजि जवानुं मन करता हवा. // 17 // श्लोकानमस्कृत्यमुनिराजाप्रत्युत्थायमहासनात्।।निवेश्यमुनिशार्दूलजन्मेजय | उवाचह // 18 // टीका॥ एवां वचन सांभाळने जन्मेजय राजा पोताना आसन उ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. परथी उठीने मुनिने नमस्कार करीने बेसारतो थको सुंदिर वाणी बोलतो हवो. 18. 1 ॥श्लोक॥ ॥जन्मेजय उवाच॥अहंबालःकलिखिन्नोधर्मज्ञामपितामहा : कस्माद्युद्धं | हरेःसाकंबहिमेमुनिसत्तम // 19 // ॥टीका॥ ॥जन्मेजय शुं बोलतो हवो॥ हे मुनि सत्तम, हुँतो बालक कलियुगनी छायाथी खरडायेलोछु, अने मारा पिता महतो धर्मना जाणनारा हता माटे करीने हे प्रभो हरिनी साथे शा कारणथी युद्ध थy ते मने संभळावो. // 19 // ॥श्लोक // नक्षुधानत्रषाविप्रनक्रोधोविघ्नमेवच॥ यस्मिन्दशेकृष्णवार्तासदेशोतीर्थ वान्मुने // 20 // ॥टीका॥ हे मुने,जे दशमांकष्ण वार्ता थती होय ते देशतो तिर्थरुप गणवो प्रनुन स्मर्ण करतां क्षुधा, तृषा, क्रोध अने विघ्न ततो दुर थइ जाय छे. 20 लोक। अन्यवार्ताकागतीर्थपंकांगोपंकमावहेत् // हंसतीर्थहरेर्वार्तापापपंकश्च नश्पति // 21 // ॥टीका॥ अने बिजी जे कुथलियो छे, तेतो काकतिर्थ कहेवाय छे, || केवीके कचरारुप, अने हरिनी वार्ता तेतो हंसरुप छे, केवीके पापरुपी पंकजनो नाश करवावालि छे. // 21 // ॥श्लोक। तस्माहिमहाप्राज्ञपितामहजगद्गुरो॥ त्वन्मुखान्निर्गतावाणीह्यमृत | 3 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir || मिवमन्यते // 22 // ॥ीका॥ हे महा प्राज्ञ, हे बुद्धिमान व्यास, हे पिता मह, है | जगद्गुरु, तेज कारण माटे तनारा मुखथी जे वाणी नोकळे ते अम्तरुप मानुषु माटे संभळावो. // 22 // ॥श्लोक॥ ॥सुतउवाच॥ राज्ञोवचनमाकर्ण्यप्रसन्नोमनिसत्तमः वैश्यंपायनमासिनं संज्ञादष्टाददर्शह // 23 // ॥टीका // सूत पुराणिक ऋषियो प्रत्ये वोलता हवा; राजानां संदिर वचन सांभळिने मुनि सत्तम एवा जे व्यास ते प्रसन्न थइने वैशंपायन मुनिने संज्ञा करे छे. // 23 // ॥श्लोक। // वैशंपायनउवाच // श्रृणुराजन्प्रवक्ष्यामिद्येकचित्तेनभूपते // वृष्णि पांडवसंग्रामोडांगवस्यापिकारणात् // 24 // ॥टीका॥ वैशंपायनरुषि जन्मेजय राजाने संभळावे छे; हे राजन् हुं तमने संनळावं ते एक चित्तवडे करिने सांभळो, यादवने, ने पांडवने जे संग्राम थयो तेतो केवळ डांगव राजाना कारणथी थयो छे. 24 ॥श्लोक॥ पुरावैडांगवोराजाचंद्रवंशसमुद्भव : पांडवैसहितोनुनंयुद्धचक्रेसरष्णिभिः॥२५॥ ॥टीका॥ पूर्वे डांगवराजा तेतो चंद्रवंशमा उत्पन्न थयलोहतो,ते पांडवनी साथे भेगो मळिने वृष्णि जे यादवो तेनी साथे युद्ध करतो हवो. // 25 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. लाक॥ मिथ्यावैरंसमाजातमिथ्यायुद्धकृतंनृप // दुर्वासोवाक्यपालत्वाक्रष्णन अ.२ 1 तमेवतत्॥२६ टीकाहे नृप,हे जन्मेजय,ते समयमां यादवोने ने पांडवने तोमिथ्या वैरथयु,कारणके दुर्वासा मुनिनुंवाक्य पाळवाने अर्थे क्रष्णने संग्राम करवो पड्यो.२६ ॥श्लोक // श्रृणुत्वंकृतकत्यश्चत्वंचएकाग्रमानसःयत्श्रुलासर्वपापानांक्षयोभवति भारत // 27 // ॥टीका॥ हे भारत, हे जन्मेजय एकाग्र चितवडे करिने तुं सांभळ, जे सांभळवावडे करिने सर्व पापनो नाश थई जाय एवं चरित्र तने संभळावू . // 27 // ॥इतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्यानेजन्मेजयमुनिसवादप्रथमोऽध्यायः॥१॥ त्तटिकायां रैव कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधर विरचितायां गामोट गामिनी व्याख्यायां प्रथमोऽध्यायः // 1 // बैशंपायनउवाच॥ ॥श्लोक। एकस्मिन्वत्सरेराजन्, यज्जातंश्रुयतांनृप // दुसाशंकरस्यांशोनर्मदातीरमास्थितः॥१॥ टीका-वैशंपायन रुषी,जन्मेजय प्रत्ये। बोलता हवा; हे राजन्, हे जन्मेजय,एक समयने विशे एक कारण उत्पन्न थयुं ते तुं सांभळ, शंकरनो अंश एवा जे दुर्वासा मुनि ते नर्मदातिरनो श्राश्रय करीने रह्याछे.१ ॥श्लोक // नमोदधत्तीर्थयात्राप्रसंगेजनमेजय // पुष्कराद्यानितीर्थानिकृतवान् ? For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सागरावधि // 2 // टीका-कोइ कालांतरे सर्व तिर्थनी यावायो करवानो निश्चय करीने पुष्करजिने आये लइने सागरा वधी यात्राओ करी. 2 ॥श्लोक। परिभ्रमन्कदाकालेबदर्याश्रममागतः। गंगातीरसुखासिनोरम्यंपश्यन् वनंतदा // 3 // टीका-एम फरतां फरतां पर्यटन करता सता बदरी याश्रमने पाम्या अंने ते स्थलनेविशे सुंदिर एवं गंगानु तिर जोइने तप करवानो निश्चय करेछे. 3 ॥श्लोक॥ सिंहव्याघ्रसमाकीर्ण।महीशैःशशकैर्टकै : नानापक्षिसमाकीर्णनाना फलसमन्वितं // 4 // टीका-अने वलि ए तट केवं छे के, सीह अने व्याघ्र करीने समाकिर्ण एवं अनेनाना प्रकारना महिष,ससला,टक,अने नाना प्रकारना पक्षियो अने नाना प्रकारना क्षो फले सहवर्तमान शोभि रह्या छे.४ लोकचंपकागरुपुन्नागदाढमीबकुलान्वितं द्राक्षपुंगीनालिकेरजांबुफलसमन्वितं // 5 // अने वळि टक्षो केवां केवां फळि रह्यांछे के, चंपा, अगर, पुन्नाग, डाडीम, बकुलना रक्षो, तदनंतर, द्राक्ष, सोपारी, नाळिएर, जांबु तेणे सहवर्तमान, विंटायलं वन शोभे छे. 5 लोक॥ सदापुष्पंतियेरक्षाःफलंतिचसदाफलै : संगितंचप्रकुर्वतिकोकीलामत्त षट्पदाः // 6 // टीका-अने वळि सदाकाळ ए रक्षो फळ्या करे छे, अने ते रक्षो उपर For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अ.३ डांग नाना प्रकारना, कोकिल अने भ्रमर ते गान करीरह्यांछे. 6 लोकानानारुषिगणैर्जुष्टंयक्षरक्षैर्निसेवितं॥एवंवनंसमावीक्ष्यप्रसन्नोमुनिसत्तमः ७टीका-वळि ए वनने विशेतो नाना प्रकारना ऋषियो तपश्चर्या करवा मंडि गयेला, यक्ष, राक्षस, तेओ पण ते वनने विशे भ्रमे छे, ए प्रकारनुं वन दुर्वासा मुनि जोइने प्रसन्न प्रसन्न पोताना मनमां होता हवा. 7 ॥श्लोक // मंदाकिनीतटराजन्तपसिचासनंधृतं // दशवर्षफलाहारःकृतस्तनम हर्षिणा // 8 // टीका-हे राजन् ए वनना समिप गंगानु तिर जोड्ने तप करवाने श्रासन धर्यु, अने दश वर्ष फलाहार ते मुनीए सुंदिर प्रकारे कर्यो. 8 . ॥श्लोक // दशवर्षनिवाराणांभक्ष्यंदुर्वाससाक्रतं दशवर्षजलाहारःकृतोराजन् द्विजेनच॥९॥ टीका-हे राजन ए मुनि सत्तम एवा दुर्वासामुनि तेतो दश वर्ष निवार भक्ष करिने तथा दशवर्ष जलाहार करीने अत्यंत तप आरंभे छे. 9 ॥श्लोक // दशवायुभक्ष्यंषष्ठीवर्षसउर्द्धपात्॥ एकदृष्टिःशतंचैववर्षाणांजनमेजय // 10 // टीका-हे जन्मेजय, एटलुंज नहीं पण दशबर्ष तो वायू भक्ष करीने अने साठ वर्षसुधी तो उंचा पगने निचे शिश राखिने, एक द्रष्टी सूर्यना सामी राखिने सो वर्ष सुधी रेहेता हवा. 10 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्लोक।। उर्द्धबाहुःशतंराजञ्च्छतंभूम्यासनंघतं षट्शतंचमहाराजनचासनंजितवान्मुनिः // 11 // टीका-दे राजन् ए जे मुनि तेतो सर्व ईंद्रिओने जितिने सो वर्ष | सुधी तो उर्धबादु रह्या, अने सो वर्षसुधी तो प्रथ्वी उपर एक आसने निची द्रष्टी करीने बेठा अने एक हज्जार वर्षसुधी तो निश्चळपणाबडे तो महा उग्र तप कर्यु. 11 ॥श्लोक॥ तदासहस्रकंजातंवर्षाणांजन्मेजय तपोधूमस्तदाजातआकाशेगतवान् नृप // 12 // टीका-तदनंतर बिजां सहस्त्र वर्ष उग्र तप थयु ते तपवडे करीने तपनो धुमाडो अाकाश सुधी चालवा मांड्यो. // 12 // ॥श्लोक॥ एवंतपःकृतंतेनशंकरांशनयाकृशं दारुणंचमहाघोरंवर्णितुंनैवशक्एते 13 // टीका-हे जन्मेजय, शंकरांश एवा जे दुर्वासा मुनि तेमणे एप्रकारे उग्र तप कर्यु ए तपनुं वर्णन करवाने कोइ शक्तिबान नथी. 13 ॥श्लोक // तदाकलेवरंखिन्नंश्रुष्कमांसंमुनीश्वरे पंचैतेईंद्रीयाण्येवास्त्रियोनूत्वासमागताः॥१४॥ टीका-ते समयने विशे मुनिश्वरनुं सुश्क मांस खेद पामवा योग्य थयुं अने इंद्रियो स्त्रिरुप थइने सामी आवी. 14 ॥श्लोक॥ प्रबोध्यमुनीशार्दूलंजर्जरीभूतकायकं // ऊचुस्ताईद्रीयाण्येवक्रोधेन जन्मेजय // 15 // टीका--जर्जरिभूत छे काया ते जेमनी एवा मुनिश्वर तेने बोध करवा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir . 1 डाग. लागी, केवी रीते क्रोधी बोलती हवी के, हे जन्मेजय एहुंतने संभळावू . 15 ॥श्लोक। इंद्रियाणिवयंविप्रतवापिशरिरान्मुने गमिष्यामोयथातथ्यामनादिहि || सत्वरं // 16 // टीका--हे मुने हे विप्र तमारा शरीरनी अमे ईद्रिो छीए, माटे तमे अमने अाझा पापो के अमारे गमे त्यां जइए. 16 लोक॥ ॥दुर्वासाउवाच॥ कस्माद्छस्वभोबालाःशरिरान्मप्रियंकरा : मुनेर्वचन | माकर्ण्यताऊचुःस्वंप्रथग्मतं // 17 // टीका-दुर्वासा बोलता हवा ; हे बाळाओ, तमे मारा शरीरने प्रियंकरछो अने शामाटे जवू इच्छोछो ते मने संनळावो, एवां मुनीना वचन सनिलिने ईद्रिो प्रथक् प्रथक् बोलती हवी. 17 ॥श्लोक॥ जीहवेंद्रिवचनंप्राहरुषादुर्वाससंमुनि तवसंगान्मयास्वादुन्नूक्तःशोभनोरसः॥१८॥ टीका-दुवार्सा मुनीना प्रत्ये रोषवडे करीने जिव्हा ईंद्रि बोले छे, के तमारो संग थया पछी कोइ समय शोभन रस चाख्या नहीं. 18 ॥श्लोक॥ घ्राणेंद्रीप्राहरोषेणवाक्यदुर्वाससंमुनि।सुगंध कुसुमस्यापिनलब्धोमे कदाचन // 19 // टीका-हवे नासिका ईद्रि कहे छे के, हे दुर्वासा मुनि तमारो संग पामीने सुगंध कुशुमनो प्रेमळ गंध कोइ काले मळतो नथी. 19 ॥श्लोक। नेत्रेद्रीक्रोधसंयुक्ताचोवाचेदंमुनिवच भूमौमयाकदाकिंचिन्नदष्टंमिलिते For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir क्षणात् // 20 // टीका-हे जन्मेजय राजा, नेत्रेद्रिय क्रोधयुक्त थइ सति मुनिने कहे छे के, नूमिमां तमारो संग पामीने सारासारा पदार्थो कोइ दिवस दिठा नथी, कारण के तमे निरंतर अमने विचिने चालोछो. 20 ॥श्लोक॥ श्रवणेंद्रियंवचःप्राहक्रोधेनजन्मेजय // कथानानारसक्वापिनश्रूतस्तव संगतः // 21 // टीका-तदनंत्तर जन्मेजय क्रोधवडे करीने श्रवणेंद्रि केहेवा.लागी के नाना प्रकारनां उच्छाहपुर रस वचन मेंय पण सांभळ्यां नहीं. 21 ॥श्लोक // मनेंद्रिचतदावाक्यमुनिप्रोवाचरोषत : वैभवोनैवसंसर्गात्तवदृष्टोमया कदा // 22 // टीका-अने वळि क्रोधवडे करीने मनेंद्रि कहछे के तमने पामीने को दिवस सारासारा वैनव भोगव्या नहीं. 22 ॥श्लोक॥ अनुझादहिभोयोगिन्सर्वाःप्रोचर्मनीश्वरं // पश्चात्प्रोवाचदुर्वासावाक्य मेतन्नरोत्तम // 23 // टीका--माटे करीने सर्वे ईंद्रिओ मळीने कहे छे क, हे मुनिश्वर हवे अमने आझा आपो, एम सांभलिने हे नरोत्तम, हे जन्मेजय दुर्वासा मुनी | से इंद्रिओने समजावे छे. 23 ॥श्लोक॥ ॥दुर्वासाउवाच॥ चत्वारिचेंद्रियाणीहभोगान्पश्यंतुनाकत : मनेंद्रितव / / संसर्गोममापिशरिरेनदि // 24 // टीका-दुर्वासा बोलता हवा; हे मनेंद्रि विनानी || For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | चार इंद्रित्रो तमने हुं स्वर्गनुं सूख देखाडवाने इच्छुछु. परंतु मारा शरिरने विशे। 7 मनेंद्रिन काम नथी. 24 / ॥श्लोक॥ एतावदुक्तावचनंगतःस्वर्गेतपोधन : दृष्टमिंद्रासनंतनशोभनंचमनोरम // 25 // टीका-तपस्वि छे धन ते जेमने एवा दुर्वासा मुनी ए प्रकारवडे करीने पोतानी ईद्रियोने समजावता थका स्वर्ग लोकने विशे गया, जश्ने सुशोनित एवं इंद्रनुं सिंगासन जोयु. 25 ॥श्लोक // सौवर्णमंदिरंदिव्यंजमालोपशोभितं // कांचनैःपद्मरागैश्चचित्रकार विचित्रितं // 26 // टीका-अने वळि ए सिंहासन केq के सुवर्णमय दिव्य एवं अने नाना प्रकारनां मंदिरो सुवर्णमय इजाये शोभि रह्या छ, अने पद्मराग मणि काचने सहवर्तमान चित्र विचित्र करयांथकां अत्यंत शोना त्रापेछे. 26 ॥श्लोक। तोरणैश्चागरुधूपैर्वादित्राणांचनिस्वनैः सप्तश्रृंढसमायुक्तोऐरावणगजोत्तमः // 27 // टीका-एटलुंज नहीं पण सातपुंडोनो ऐरावणहाथी जे स्थळने विशे शोभि रह्यो छे, तदनंतर तोरण धुप दिपादि सहवर्तमान वाजिंत्र वागी रह्यांछे. 27 ॥श्लोक॥ पारिजाततरुश्चैववांछितार्थफलप्रद : नृत्यगीतविनोदाश्चभवतिचग्रह ग्रह॥२८॥ टीका--मनवांछित फलने आपनारो पारिजातकनो वृक्ष अने सर्व मंदिरोने For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir विशे गित नृत्य थइ रह्यांछे, ते पोतानी इंद्रियोने मुनिश्वर देखाडे छे. 28 लोक॥ तत्रसभामहारभ्यामणिस्तंभ शतैरपित्रिंशत्रिकोटयोदेवा, वसवाष्टो | मरुद्गणाः // 29 // टीका-तेथकी अगाडी जतां सना मंडपने विशे मणिस्थंभ रचेली भूमिकामां प्रवेश करतां श्रागळ जुवेछे तो अष्ट वसु मरुद्गण अने तेत्रीस कोटी देव बिराजेला छे. 29 लंता वरुणश्चैवयक्षाश्चनिराश्चाप्सरोगणाः सर्वैश्ववेष्टितोदेवैर्महेंद्रस्वा सनेस्थितः॥३०॥ . टीका-वळि ए सभाने विशे तो वरुण, यक्ष, कीन्नर, अप्सरा, गणो सर्व महेंद्रना आसनने विंटाइने बेठा छे. 30 ॥श्लोक। नृत्यतिवासवस्याग्रेकिंनरावारयोषित : रक्तवस्त्रामनोरम्याहारनपुर संयुता: // 31 // टीका-किन्नर अने वारांगनाश्रो मनोरम्य एवां रक्त वस्त्र अने आभुषणे सुशोभित थश्ने नाना प्रकारना हार कंठने विशे विराजमान थइ रह्या छे, एवां थका ईंद्रना सन्मुख नृत्य करे छे. 31 / ॥श्लोक // दुर्वासाश्वागतस्तस्मिन्स्थानेप्रथमपोलिका द्वारपंप्रतिप्रोवाचशीधे झापयवासवं // 32 // टीका-ते समयमां शंकरना अंश एवा दुर्वासा मुनी प्रथम | पोलने विशे आवीने पोळना रक्षकने कहे छे के हे द्वारपाळ तुं ईंद्रने सुचना करय For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. अ.२ जे दुर्वासा मुनी श्राव्या छे. 32 . ॥लोक॥ प्रतिहारोगतःशीघ्रमिंद्रप्रोवाचप्रेमत : दुर्वासामनिरायातःपोलिकायां नरोत्तम // 33 // टीका-ए प्रकारे दुर्वासानां वचन साभलिने ते जे कोइ प्रतिहार ते तो महा प्रेमवडे करीने ईंद्रना सन्मुख थयो थको बोले छे के हे नरोत्तम हे सुरेश्वर श्रापना धामने विशे दुर्वासा मनी पधार्या छे. 33 ॥श्लोकाप्रतिहारस्यकथनादत्थितस्त्रिदशैसह॥ आगतस्त्वरितोराजादुर्वासायत्र तिष्ठति // 34 // टीका-एवं वचन प्रतिहारेका के तेज समय महेंद्र पोताना प्रासनेथी उठीने सर्व सभा सहीत ज्यां दुर्वासामुनी उभाछे,ते स्थळने विशे श्रावता हवा.३४ ॥श्लोक॥ नमस्कृत्यचयोगींद्रनृत्यवादित्रनिस्वनैः आनितःसदसिराजनिषसाद निजासने॥३५॥ टीका-प्राचीन महायोगेंद्र एवाजे कोइ दुर्वासामनी तेमने नमस्कार कराने गीत वाजिंत्र वगडावता थका सभाने विशे पोताना श्रासन उपर बेसारेछ. 35 ॥श्लोक // पादौ प्रक्ष्याल्यविधिवदुपवीतंददौदरि : अर्धपाद्यंतदाक्रत्वावासवो वाक्यमब्रवात् // 36 // टीका-ए जे कोइ हरी जे ईंद्र ततो विधीवडे करीने अर्धपाद्य पुजन् करताथका उपवित अर्पण करीने हाथ जोडीने वाणि बोलता हवा. 36 . ॥श्लोक॥ ॥ईंद्रउवाच॥ धन्योहंकृतकृत्योहंमग्रहत्वेसंमागतद्ः // किंकरिष्यामि For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir विद्रतवागमनकारणं // 37 // टीका-इंद्र बोलता हवा; हे महाराज प्राज़नो दिवस धन्य छे, अने मारा सुक्रतने धन्य छे; हे प्रभो तमारा सरखा मुनेंद्र पधारया है विप्रेद्र तमारीशी इच्छाछे अने तमारु आवागमन शाकारणेछेते,मने अाज्ञाकरो.३७ ॥श्लोक।।।दुर्वासाउवाच॥ अहंजरटोजातोक्छुकालंतपःस्थित इंद्रियाणांचों पार्थमागतोऽहंसुरेश्वर // 38 // टीका-दुर्वासा बोलता हवा; हे सुरेश्वर हुँ तप करी करीने बहु कालथी सुकाई गयोधू, माटे मारी इंदित्रीने संतोषवाना का| रणथी तारी पासे श्राव्योछु. 38 ॥श्लोक // ऋषेर्वचनमाकय॑यत्क्रतंहारणातदा सुगंधललेपेननित्यं स्नानसमा | चरेत् // 39 // टीका-ते समयने विशे मुनिनां वचन द्रिराजा सांभदिने नाना प्रकारनां सुगंधीमय तैल चोलताथका मुनिने स्नान करावे छे. 39 श्लोकभक्ष्यंचतुर्विधंस्वादुषसैश्चरमान्वितं पुष्पाणांवासनानित्यमांद्रियाणां चतुष्टये // 40 // टीका-स्नान कराया अनंतर सवासी पुष्पना हार कंठे आरोपण करी दिधा छे, नाना प्रकारना पस स्वादिष्ट भक्षने वास्ते तथा इंद्रियोना संतोषने वास्ती महो आगळ मुकी दिधा छे. 40 ॥श्लोक // नानाविधाचनाकस्यशोभाद्रष्टाहिजैनवै सर्वोमनोरथस्तस्यपरिपूर्णो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नृपोत्तम॥४१॥ टीका-एम नित्य नित्य प्रत्ये नाना प्रकारनी स्वर्गनी शोनावोरुषिने डांग. अ.२ देखाडे छे, अने वळी मनोरथ परिपूर्ण थाय एम ईद्रराजा भाचर्ण करे छे. 41 ॥श्लोक॥ एकदातुसभामध्यस्थितोवैमुनिसत्तम : देवाश्चसर्वेगंधवा:स्थिताःपाधैवरांगनाः॥४२॥ टीका-एक दिवसने विशे सभाना मध्ये मुनिराजने पधराव्या, तेत्रीसकोटी देव, गांधर्व, आगळ पाछळ वारांगनाओ नृत्य करी रह्या छे. 42 ॥श्लोक // इंद्रेणकथितंतावतमुनिसंतोषहेतुकंनृत्यंतुवनिता : सर्वाहावभावसमन्विता : // 43 // टीका-ते समयने विशे मुनिने संतुष्ट करवाने माटे, ईंद्रराजा अप्सराओने आझा करे छे के, हावभाववडे मुनिने प्रसन्न करो. 43 / ॥श्लोक // दंभाचित्रांगदामेनादेवकाचतिलोत्तमानृत्यं कुर्वतिसदसिप्रेम्णाच जन्मेजय // 44 // टीका-वैशंपायन मुनि कहे छे के, हे जन्मेजय, एवां वाक्य अप्सरात्रो ईंद्रनां सांभळीने दंभा, चित्रांगदा, मेनका, देवका,त्रीलोत्तमा,तेने आदि लेने घणी अप्सरात्रो अत्यंत प्रेमवडे करीने नृत्य करे छे. 44 ॥श्लोक॥ आगतात्वरितापश्चादुर्वशीतींद्रवल्लभा॥ दृष्टमहासनेयोगीगर्वक्रत्वा वचोऽवदत् // 45 // टीका-तद पश्चात उर्वशी अप्सरा इंद्रनी अत्यंत प्रिय तर | सभाने विशे उतावळी आवी अने जुवे छे तो महा जर्जरीनुत योगीने दखिने पोताना 9 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मनने विशे विचार करे छे. 45 ॥श्लोक॥ यत्रवैनगवान्द्रोब्रह्माभानुश्ववासव : तवयोग्याममक्रीडाजटिलेष कदानाहि // 46 // टीका-अहो ! था जटीलना आगळ मारु नृत्य मिथ्या जशे, मारु नृत्य तो शाक्षात् भगवान् रुद्र ब्रह्मा भानु ईंद्र, तेने जोवा योग्य छे कारण के ते समजी शके छे. 46 ॥श्लोक। वृद्धोवैबधिरश्चांधःकिंजातिःकिंस्वरान्मुनि : एतावदुत्काशृंगारान्विपरितान्दधौचसा॥४७॥ टीका-अरे! श्रा मुनि तो घणा वृद्ध अने काने पण सांभळता नहीं होय, अने नेत्र पण अंध जेवां देखाय छे, ए भारा मधुर स्वरने शुं शांभळशे, एम विचारीने अवळा विप्रित शणगार धारण करे छे. 47 ॥श्लोक // कुपितोमुनिशार्दूलोदुर्वासाउशिनृपधिग्रूपं धिक्कलागानमनिनिंद सिचापले // 48 // टीका-हे नृप, हे जन्मेजय, उर्वशीना उलट पालट शणगार जोइने अने तेना मनोविचार जाणीने, दुर्वासा महा कोपायमान थइने निंदा करता हवा, हे चपळे तारा रुपने धिक् छे तारा गानने तारी कलाने तारा नृत्यने पण धिक् छे, एम कहेताथका शाप दे छे. 48 ॥श्लोक // गणमहतायुक्तासींद्रयोग्याहिनोशि॥ भूलोकंपश्पदुर्बुद्धेतुरगाभव || For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org दाग 10 सांप्रतं // 49 // यका-हे दुर्बुद्धे ! महा गर्वनी नरेली तुं ईंद्रना मुख भागळ नृत्य करवा पाप नथी तुंतो भुलोकने विशे घोडी थइने सांप्रतकाळ पञ्च. 49 ___॥श्लोक // तदाचंद्रश्चभीतोवैदेवाःसर्वेमुनीश्वरप्रोचुःक्षमस्वभोयोगिन्याहिपाहि जगद्गुरो // 50 // टीका-मुनिनां क्रोधमय वचन सांभळीने ईंद्र तथा देवो भयभित थई गया अने सर्वे मुनिनी प्रार्थना करवा लाग्या, हे योगीराज जगत्गुरु रक्षण करो रक्षण करो क्रोधने शमावो. 50 ॥श्लोक॥अज्ञानात्कथितंवाक्यंचानयाभोद्विजोत्तम प्रसन्नोभवविद्रशापंमोचय सात्रतं // 51 // टीका-दे लगवान् अग्नानथके एवां एणे पाचर्ण करयां हे द्विजोत्तम प्रसन्न थइने एने शापथी मुक्त करो. 51 लोक॥ दुर्वासाःअण्वताप्राहसर्वेषांनिशिउर्वशी। स्त्रीदिनेतुरमीदवाभविष्यति वचोमम // 52 // टीका-सर्व देवोनां दीन वाक्य सांभळीने दुर्वासा प्रसन्न होता हवा, अने सर्वना सांभळतां शापर्नु निवारण करे छे के हे उर्वशी तुंदिवसे तुरगी। अने रात्रीए स्त्रीरुप थजे एवं माझं वचन छे. 52 लोकसप्ताईवजसंयोगान्मोक्षश्चैवभविष्यति एतावदुतावचनंजगामसवने मुनिः // 53 // टीका-साडावण वजनो संयोग थयेसते तारो मोक्ष थशे ए प्रकारनां 10 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वचन कहताथका पाछा वनने विशे तपश्चर्या करवा जता हवा. 53 लोक। उर्वशिपतितास्वर्गादागताचावनीतले // काशिपाधैवनरम्यंप हादश योजन॥९॥ टीका-हे जन्मेजयराजा,एकोशाप उर्वशीने थयो तेणेकरीने स्वर्गमांथी | काशीपाच पद्य वन्नाविशेबादशयोजनछे विस्तारतेजेनोएवावनमां पडतीहवी.५४ लोकातुरगीरूपमा स्थायप्रविष्ठासायनंध्रुवं महतांवचनंमिथ्याकदानजन्मेजय। 55 // टीका-जोडी रुपवडे करीने एवनने विशे प्रवेश करयो, हे जन्मेजय,महर्षिनां वाक्य मिथ्या थतां नथी. // 55 // इतिश्रीमहाभारतेडांगोपाख्याने उर्वशिशापो नामद्वितीयोऽध्यायः // 2 // तटिकायां रैक कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधर विरचितायां डांगदोपाख्याने उर्वशी शापोन्नाम हीतियोऽध्याय. // 2 // लोकविशंपायनउवाचावृणुराजनप्रवक्ष्यामियदृत्तांतंयनेऽभवत् // काश्यांचे डांगवोराजाराज्यं चऋसुशानन॥॥ टीका-वैशंपायन रुषि जन्मेजयने कहता हवा; हे राजन् जे लत्ताल ए वनले विशे युं तेनुं एकवित्तवडे तुं सांभळ हुँतने संपळाबुछु, ए जे कोइ काक्षिपुर तेने विशे डांगव राजा राज्य करतो हवो. 1 ___ श्लोक // चंद्रवंशसमुत्पन्नोनवक्षोषिदलेयुतः तुरगास्तस्यपानार्थवणार्थसं|| चरंतिच // 2 // टीका-अने ए डांगव केवो हतो के चंद्रवंशने विशे उत्पन्न थयलो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir डाग. 8 . 3 11 नवक्षोणी छे सेंना ते जेनी एवो तेना जे कोइ घोडा ते जळपान करवाने तथा तृण, | चरवाने नगर बाहार संचरे छे. 2 ॥श्लोकारम्यवनंप्रविष्टासाचोर्वशीप्रमदोत्तमारात्रौनारीदीनेऽश्विचतवदुःखेनति ष्टति॥३॥ टीका-रम्य एबुंजे कोइ सुंदीर वन ते स्थळने विशे प्रमदोत्तमा कोइ उर्वशी रावीए नारी स्वरुप अने दिवसे धोडी स्वरुप ते दुःखे झुरति त्यां रही छे. 3 लोकएकदातुरगैर्दष्टवाद्रुताःपश्चात्सवेगकाः॥नलब्धातुरगैःसाचक्षीणसत्वेन दुर्बलाः॥४॥ टीका-एक दिवसने विशेराजाना जे कोइ घोडा तेतो घोडीने जोड्ने वेगवडे करीने पाछळ द्रोडेछे तथापि घोडी हाथमां न मळी तेणे करीने क्षीण सत्ववड़े करीने दुर्बल होता हवा. 4 / ॥श्लोक॥ राझादृष्टाहयाःक्वापिदिवसेसेवकानप्रति, उवाचत्वरितोराजाकिमर्थ दुर्बलाहयाः॥५॥ टीका-तेजे कोइ अश्व तेने राजा जोइने सेवक प्रति बोलतोहवो है सुभट आ हय दुर्बल केम जणाय छे ते मने कहे. 5 ॥श्लोक // सेवकाःप्रवदनाजन्कारणंझापयामहे // एकदातेऽश्वपुंछानिरहित्वा पृष्ठतोऽव्रजन् // 6 // टीका-हे राजन् एच् कारण ढुं तमने संभळावूछु, के, हे राजा धिराज, एक दिवसे अश्वना पाछल पाछल हुंजतो हतो.६ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्लोक॥ तुरगीतुरगैर्दष्टवाद्रुताःशीघ्रंजवेनते सेवकैश्वकृतोयत्नोगृहणाथैतुरगी प्रति // 7 // टीका-हे महाराज ए जे कोश् घोडा तेणे एक वनने विशे घोडी जोइने वेगवडे करीने ते घोडीनी पाछळ द्रोडा परंतु अमारा हाथमां पण घोडी श्रावी नहीं.७, ॥श्लोक॥ नागतासाकरेक्वापिसेवकास्तेश्रमंगता : कथितंडांगवस्याग्रतुरगी कारणंवचः॥८॥ टीका-हे माहाराज ते कोइना हाथमां घोडी ना आवी तेणे करीने सेवक पण श्रमित थइ गया, हे जन्मेजय ए प्रकारे डांगवना समीपे सेवकोए ते घोडीनु सघळू वृत्तांत का. 8 ॥श्लोकाराजन्मनोरमाद्रष्टवातुरगीवनमध्यतःवयंयत्नःकृतोऽस्माभिर्नागतादेवा योगतः॥९॥ टीका-हे राजन् अमे ए वनने विशे घणो यत्न करयो तथापी दैवयोगे करीने अमारा हाथमां न आवी. 9 लोक॥ शोनतेसाचभवतांराजद्वारे विशेषतःवाफ्यमाकर्ण्यचाराणामुपायंकृतवा | न्स्वयं // 10 // टीका-वळी ए अश्वनी केवी छे के तमारे बेसवा लायक अने विशेशे करीने राजद्वारे शोभे तेम छे एवां वचन अनुचरोनां सांभळीने राजाए पोतेज तेने जाववानो उपाय करवा मांड्यो. 10 ॥श्लोक॥ वादित्राणांमदान्नादोवर्त्ततेनगरेश्रुभे // प्रतिशब्दश्वस्झावैकारितो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. जन्मेजय // 11 // टीका है जन्मेजय तदनंत्तर वाजित्रना नादवडे करीने नगरने अ.. विशे शोभा आपतोथको वनमा जवानी तैयारी करे छे. 11 ॥श्लोक // निसृताराज पत्राश्चमंत्रिणोयुद्धकौशला : तुरगैःकरिभिर्योधर्वेष्टितो डांगवानपः॥१२॥ टीका-वळी राजांना पुत्रों तथा युद्ध कौशल्य एवो जे मंत्री तेपण राजानी साथेनीकळे छ, भने निकलीने ए बनने विशे तुरग जे घोडा अने हाथीओ तेणेकरीने वन विटी नाखे छे. 12 ॥श्लोका वन्तुवेष्टितंसर्वक्षोणिभिर्नवभिश्चतत् उत्तीर्यवारणाद्राजाकथ्यतिशृण्व तावच H // 13 // टीका-नवक्षोणी सेनावडे करीने ए वन विंटी लीधुं अने वारण जे हाथी ते थकी राजा उतरीने सर्वेने वचन संनळावे छे. 13 ॥श्लोक॥ ॥राजोवाचासतिष्तुबाह्येवेगमिथ्यामिवनंद्यहं॥ एकाकीचपदातिश्च / / संनद्धास्तेपिरक्षकाः॥१४॥ टीका-राजा बोलतो हवो ; सर्वेत्रा ठेकाणे वनना बाहार उभा रहो हुँ एकाकी पगे हीडतो गुफात्रोमां प्रवेश करुछु. 14 ॥श्लोक। एतावदुक्तावचनंप्रविष्ठेगहवरंवनं दृष्टवासातुरगीराझामहारुपामहा रया // 15 // टीका-एवं वचन बोलीने गहवर वन ते प्रत्ये प्रवेश करतो हवो अने प्रवेश करतांज महा वेगवाली अने रुपवान तुरगी दीठी. 15 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक॥ नष्टाचतुरगीपश्चाद्धावतिसतुडांगवः नागतासाचराराजन्भानुश्चास्तं गतोनप // 16 // टीका-दे नृप, हे जन्मेजय ज्यम ज्यम ते घोडी नाठी तेम तेम ते डांगव तेनी पछवाडी द्रोडो, परंतु ए राजाने हाथ घोडी न भावी अने ते समयमां सुर्य अस्त पामी गयो. 16 ॥श्लोक॥ संध्यायांतुरगीराजन्स्त्रीचिन्हाचाभवत्क्षणात्॥ पत्नींपश्यतिसोराजा आश्चर्यपरमंगतः॥१७॥ टीका-संध्या समय थयो एटले तो हे राजन् परम श्राश्चर्य थयु,शुं के क्षणमां तुरगी रुप मटी जश्ने पलिरुप थइ गइ. 17 ॥श्लोक। किंवेयमासुरिदैवदानवीयक्षिणस्मिता॥रुपेणप्रतिमाभातिदेवीवावर्त्तते किम् // 18 // टीका-राजा मनमां विचार करे छे के श्राशं आश्चर्य छे ओहो !! आ ते आसुरी, देवी, कींवा दानवी कींवा यक्षणी एने ते शुं कहिए. 18 लोकशनैःशनैर्गतःपाधैवचनंचेदमब्रवीत्॥डांगवउवाचाटीका-हलवे हलवे ते स्त्रिनीपासें जइने वचन बोलेछे.॥श्लोक।कात्वकंजपलासाक्षिकुतोवाचागतावन॥किंकृतं तुत्वयापापंपशुयोनिंगताशुभे॥१९॥टीका-डांगव बोलतोहवो; हे शुभेतुं कोण छे, तें पापशुंकरोछे,केतुं पशुयोनी पामी अने आ समय स्त्रिरुप थइने क्यम भासेछे.१९ ॥श्लोक॥ ब्राह्मीवाचेश्वरीदुर्गामाहेंद्रीकमलोद्भवा // द्रष्टमेतुरगीचास्त्रीकारणंवद For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सांप्रतं // 20 // टीका-हे शुभेतं ते ब्रह्माणीकुं, कींवा इश्वरीछु, कींवा दुर्गाछु, कींवा डाग. | इंद्राणीछु, कींवा लक्ष्मीछु, में तने तुरगीरुप दीठी छे, अने सांप्रतकाल सुंदिर स्त्रीरुप देखाउछु तेनुं कारण कहे. 20 ॥श्लोक // राझोवचनमाकर्ण्यसोर्वशीप्राहसत्वरं, अहंकर्मविपाकनप्राप्ताचक्लेश मीद्रशं // 21 // टीका-एवां राजानां वचन, ते उर्वशी सांनळीने राजा प्रत्ये बोले छे, हे राजन् मारा कर्मना विपाकवडे करीने आवो क्लेश पामिछु. 21 ॥लोक॥ त्रोटिताकिमयावल्लीछेदितंसरसस्तटं गूरूनिंदाकृतामेऽद्यसत्यामलाछनंधृतं // 22 // टीका--रे भावी में ते शं वेलो तोडी हशे, कींवा तलाव पुरयां हशे, कींवा गूरूं निंदा करी दशे, जे त्रा मने लांच्छन थयु. 22 ॥श्लोक // कन्याविक्रयभोजेनपोशितंशरिरंमया // गर्वस्यकारणाद्राजन्प्राप्ता दुःखंसुदुःसहं // 23 // टीका-हे राजन कंन्या विक्रय करीने जे पैशाथी पोतान उदर पोषण करयुं होय तो श्रावू दुःख पमाय, परंतु आ देहे तो गर्वना कारणथी श्रा दुःसह दुःख पांमिछु. 23 ॥श्लोक // नाहंदेवानदैत्येंद्रीयक्षिणीराक्षसीमता // अहंभोउर्वशीनामअप्सरा / सुरवल्लभा // 24 // टीका-हे राजेंद्र हुं देवी नथी, हुं दैत्य योनि नथी, इंद्राणी नथी, 13 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यक्षणी नथी, राक्षसी नथी परंतु ढुं ईद्रने वाहाली उर्वशी अप्सराछु. 24 ॥श्लोक॥ पूर्वकर्मविपाकेनदुर्वासाःकुपितोमयि शापितामहाराजागतातवसंनिधी // 25 // टीका-हे महाराज पूर्व कर्मना विपाकवडे करीने दुर्वासाए मने शाप | दीधो तेणेकरीने तमारा वनना सानिद आवीने आ महाकष्ट भोगवुछु. 25 ॥श्लोक॥ सप्ताईवजसंयोगेभवेन्मोक्षोममापिच कदावातस्यसंयोगोहरिर्जाना तिकोनच // 26 // टीका-मने कष्ट क्यां सुधी छे के साढात्रण वजनो संयोग थाय | त्यां सुधीज, अने साढावण वचनो संयोग थयेथके हुं मोक्षपद पामीश, अने ए | साढात्रण वज क्यारे भेगां थशे ए परमेश्वर विना कोइ जाणतु नथी. 26 ॥श्लोक॥ प्रसंन्नोडांगवोराजाप्रतिवाचंवदेत्पुनः श्रागछमदग्रहदोविपट्टराज्ञीसदा / | नव // 27 // टीका-तेम सांनळतांज डांगव राजा प्रसन्न थइ गयो; अने ते स्त्रिप्रत्ये | बोलवा लाग्यो रे कंदर्प वर्धिनी, तुंमहारे घेर हीड्य हुं तने पट्टराणी स्थापुछु. 27 / उर्वशीउवाच॥॥श्लोक॥ यदित्वंमांचनयसिनगरेयुवतिसमां श्रुत्वान्येबहवो। भूपात्रागछंतिममेप्सया // 28 // टीका-उर्वशी बोलती हवी; हे राजन् हुं दिवसे | घोडीरुपर्छ तथापि, मने स्त्रिनीपेठे नगरमां लइ जशो त्यारे बीजा भूप जाणशे तो। || तमारी केड लेशे, अने मने लेइ जवानी इच्छा करशे. 28 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. 14 ॥श्लोक। परहस्तेनदातव्यातदागछामितेग्रह। उर्वशीवाक्यमाकण्यपश्चात्प्रो वाचडांगवः॥२९॥ टीका-तेमाटे जो कदापी तमे प्रतिज्ञाकरो के मने बिजानेनसुंपवी, तोहं तमारी साथे आq,एबुंवाक्यडांगवसांभळीने मनसाथे विचार करवालाग्यो.२९ ॥श्लोक॥ ॥डांगवउवाच॥ तमात्माचममात्माचोकोवैद्वितियोनहि अन्येभपान कुर्वतिममवैभववासनां // 30 // टीका-मन साथे विचार करीने डांगव बोले छे ; हे सुंदरी तारो आत्मा ने महारो आत्मा एक गणीश माटे तुं महारी साथे गति करव, बिजा नूप महारा वैभवनी कदापी वासना नहीं करे. 30 ॥श्लोक॥ यदिदैवश्चकुपितःशरणाश्चैवदेवताः नरक्षेछरणंकोपिभस्मसात्तवसंगतः // 31 // टीका-जो कोइ समय महारा उपर देव कोपायमान थशे, तोयपण ढुं अनुष्ठानादिक प्रयोगे करीने तने नहीं मुंकु, तेम करतां उपाय नहीं चाले तो तहारी साथे बळि मरीश ए रीतनी प्रतिज्ञा करे छे. 31 ॥श्लोक।सत्येनसूर्यस्तपतिसत्येनवातिचानिलः वन्हिर्दहतिसत्येनस्वागच्छभवनं मम // 32 // टीका-हे प्रीय सत्यवडे करीने पृथ्वी रही छे, सत्यवडे करीने सूर्य नारायण तपे छे, सत्ये करीने वायू वाह्य छे, सत्यवडे करीने अग्नी दहन करे छे, माटे | महारी सत्य प्रतिझा छे, तने हुं परने हाथ नहीं जवा देउ. 32 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie ॥श्लोक // गृहित्वातर्वशीराजाहृदयेहर्षपरितः श्रागतोनगरीमध्यप्रविष्टोनिज वेश्मनि॥३३॥ टीका-एरीते प्रतिज्ञा करतो सतो,धोडीरुप एवी जे उर्वशी तेने दोरीने, हृदयमां परिपुर्णछे हर्ष ते जेने एवो जे डांगव,ते तो पोताने घेर लावीने बांधतोहवो.३३ . ॥श्लोक // सौवर्णश्चंद्रकोबद्धःपताकाभिश्चतोरणे : दीपमालाचपात्रेषुबद्धासा तुरगीनृप // 34 // टीका-पोतानो जे सुंदीर निवास तेने विशे सुवर्णमय चंदरवा बंधावीने, तोरण दीपमाळे सहवर्तमान रचना रचावतोथको घोडीने वांधे छे. 34 . ॥श्लोक // दिवसेवाहनंगछेत्रात्रौभोगेननंदनि, राजातुडांगवोराजन्मोहितो माययावतु // 35 // टीका-ए राजाने एवोतो श्रानंद भराइ गयो छे के, दिवसे वाहन करेछे ने रात्रीए भोग तृष्णा पुरी पाडे छे, एरीते हे जन्मेजय राजा डांगव तो मायाना मोहमां लपटातो हवो. 35 ॥श्लोक॥ शतशोशेवकास्तस्यारक्षार्थमोचितास्तदा // डांगवोहर्षमापेदेवहुरंग समारतः॥३६॥ टीका-अने वळी एटलुंजनहीं पण,हजारहजारोसेवको घोडीनारक्षपाळ कस्याछे,सुंदीर खोराक खवरावेछे अने ए डांगवराजा श्रानंदमां दिवस निर्गमन करयां जायछे.३६ शतिश्रीमहाभारतेडांगवोपास्यानेडांगवतुरगीसमागमोनामतृतियोऽध्यायः॥ तटीकायांरैक्क कुलोद्भव जयसुत गंगा०विरचितायां त्रतियोऽध्यायः३, For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक // वैशंपायनउवाच॥ एकदातस्यनगरनारदोमुनिर तमः परिममन् / टाग. जटाभारंवीणांबिधन्मनोरमां // 1 // टीका-वैशंपायन मुनि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा; एक दिवसने विशे डांगवना नगरमां सुंदिर वीणा वगाडता एवा अने मस्तकने विशेछे जटाभार ते जेने, एवा भ्रमताथका नारद मुनि प्रवेश करे छे. 1 ॥श्लोक॥ राजद्वारेगतःशीघ्रप्रविष्टपूर्वपोलिका द्वितीयांतृतीयांत्यक्त्वाह्यागत स्तस्यवेश्मनि // 2 // टीका-केवी रीते के पहेली बिजी विजी पोच्ने उल्लंघन करीने, ज्यां राजद्वार छे त्यां उतावळा द्रोडे छे. 2 लोक॥ दृष्टवातुडांगवोराजास्वासनादुत्थितोनृप पूजितोविधिवद्राजाकथांकुर्व न्ससंस्थितः // 3 // ॥टीका-अने उतावळा आवता एवा मुनिराजने जोइने, आसन उपरथी उठतोथको ते डांगव राजा, विधिवत् नारदमुं पुजन करे छे, पुजन करीने शुनासने बेसारे छे, एटलुंज नहीं पण बे हाथ जोडीने तेमनी प्रणिपत्य करे छे,कारण के रखे हुँ चुकीश तो मने शाप देशे एम विचास्यां करे छे. 3 ॥श्लोक॥ दृष्टवातुरगीवाक्यमुवाचनारदोमुनि : राजन्नेकापितुरगीकथंबध्नाति वेश्मनि // 4 // टीका-नारदमुनि जे पेली घोडी बांधीछे तेने जोइने, राजा प्रत्ये बोले छे के, हे राजन् श्रा घोडी हावी कनक मेहेलमा क्यम बांधी छे, ते मने संनळाव्य.४१५ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir लोक॥ तुरगीदृश्यतेरूपयौवनाभ्यांमनोरमा॥ रुचनमाकर्ण्य राजावचनम ब्रवीत् // 5 // टीका-ओहो, हावी घोडी तो म्हें कहीये दीटी नथी, श्रा अश्वनी तो मनने आनंद पमाडे एवी, रुपवान् अने यौवननी भरेली छे, एवां रुषीनां वाक्य सांभळीने डांगव बोलतो हवो. 5 ॥श्लोक॥ ॥राजोउवाच॥ नेयमुनेतुतुरगी र्वशीनाम्नीसाप्सरा॥दुर्वासःशापतो जातातुरगीममवेश्मनि // 6 // टीका-हवे डांगव मुनि प्रत्ये शुं बोलतो हवो; हे मुनिराज ए तुरगी नथी एतो र्वशी नामनी अप्सरा छे, दुर्वासाना शापवडे || करीने मारा घरने विशे रही छे.६ श्लोक॥ तस्यतद्वचनं श्रुत्वानारद कलहप्रियः गतोऽसौवायुवेगेनद्वारकांक्रष्ण पालितां // 7 // टीका-एवां राजानां वचन सांभळीने क्लेश कराववानी प्रिती छे, एवा जे नारद तेतो हुँ जाउछु एम कहीने वायु वेगवडे करीने कृष्णनी द्वारिकां | प्रत्ये प्रवेश करे छे. 7 ॥श्लोक॥ तत्रगत्वाचदेवेशंकष्णंदेवकीनंदनं उवाचवचनंनूपरोषात्कलहवर्द्धनं // 8 // टीका-ज्यां देवकी नंदन देवना देव एवा ऋष्ण बेठा छे त्यां जइने, हे भूप, हे | जन्मेजयलेशनावधारनाराहेवाजेनारद तेतोरोषवडेकरीनेक्रष्णप्रत्ये बोलताहवा. 8 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. ॥श्लोक।नारदउवाच॥ उर्वशीचाप्सरानामईद्रस्यशापकारणात् // दिवसेतुर-17 गौरावौस्त्रिचिन्हायौवनेरता // 9 // टीका-नारदजी भगवान प्रत्ये शुं बोलता दवा; हे प्रभो ईदनी उर्वशी नामनी अप्सरा तेतो मुनिना शापना कारणथी दिवसे धोडी अने रात्रीए स्त्री चिन्हे थश्ने पृथ्वीमां रही. 9 . लोकराजानंडांगवंप्राप्तातवयोग्यासुरेश्वर // गृह्यगृह्यमहाबाहोनयोग्या तस्यनूपते // 10 // टीका-तेतो काशीमां डांगव राजाने त्यां प्राप्त थइ छे,परंतु ए भुपतिने योग्य नथी हे सुरेश्वर तमारे योग्य छे,माटे हे बुद्धिमान तमे मंगावी ल्यो.१० ॥श्लोक॥ एतावदुक्तावचनमतानंगतोमुनिः गतेऽथनारदेराजन्क्रष्णोदूतंच प्राहिणोत् // 11 // टीका-एवां वचन ऋष्ण प्रत्ये कहीने हे जन्मेजय राजन् नारद अंतर्धान होता हवा, अने मुनिना अंतर्धान थयापछी ऋष्ण पोताना दुतने प्रेरेछे.११ ॥श्लोक। लिखित्वापत्रकतेनस्वाचिन्हेनसमन्वितं त्वरितंसेवकेदत्तंगतःकाश्पांस्व सेनकः॥१२॥ टीका-रे दुत में जे कोइ मारी मोहोर छापवडे करीने या पत्र लख्यो ते तुं डांगवने पोहोचाड्य, एवां वचन सांभळीने ते जे कोइ सेवक तेतो उतावळो काशिए जश्ने डांगव राजाने पत्र अर्पण करतो हवो. 12 ॥श्लोक। डांगवस्यसभामध्यगतःस्वस्थेनचेतसा // नमस्कृत्यचराजानपत्रमये 16 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तमाक्षिपत् // 13 // टीका-डांगवनी सभा मध्ये गयो एवो जे सेवक तेतो स्वस्थ चित्तिवडे करीने राजाने नमस्कार करतोथको पत्र अर्पण करे छे. 13 ॥श्लोक॥ गृहित्वापत्र राजावंचतिसभ्यसन्निधौ काश्यांत्वंडांगवोराजाराज्यं / कुरुयथेप्सितं // 14 // टीका-ते राजा पत्र लेइने पोतानी सभामां वांचे छे, तेमां लख्युं छे के काशिमां तुं डांगव राजा सुखेथी राज्य कस्य. 14 ॥श्लोक // तवगेहेतुरगीयद्वारकांप्रतियोजय // नदद्यात्तुर्गीयाक्तसंनद्धोरंगरे / भव ॥१॥ीका-परंतु ताहारे घेर जे घोडी छे ते तुं, द्वारकामा मोकल्य,जो कदापी | नहीं मोकले तो तारी साथे संग्राम थशे. 15 ॥श्लोक॥ प्रथिव्यांशरणंकोपिनरक्षेतमहाबल : देवोवादानवोराजाराक्षसोधरपीधरः 16 // टीका-अने मारीसाथे तुं लडीश तो एथ्विमां तने कोइ देव,दानव, राजा, राक्षस, धरणीधर जे शेषनाग तेपण तले शर्णे नहीं राखे. 16 ॥श्लोकशीघ्रत्वंतुरगीदेहिसेवकस्यनिरंतरंपत्रस्यवंचनाद्राजाबहुतापेनपीडितः // 17 // टीका-माटे करीने उतावला पत्र वाचतांज आ दुतनी साथे घोडी मोकल, एवां वचन वांचतांज डांगवराजा तेतो तापवडे करीने पिडा जाय छे. 17 ॥श्लोक। प्रोवाचससभामध्येक्रष्णस्यसेवकंप्रति ॥हदिसदुःखमापन्नोमुखेकेसरि For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. वन्नदन // 18 // टीका-हृदयने विशे महा दुःख उत्पन्न थयंछे तोयपण केसरीसिंहना अ. 17 जेवू वदन करीने सभामध्ये ऋष्णना सेवक प्रति बोले छे. 18 डांगवउवाच॥ डांगव बोलतो हवो; ॥श्लोकानदेयाकस्यतुरगीसत्येनमदग्रहे स्थिता // विनाजीवस्यमेक्रष्णतुरगीनागतागृहे // 19 // टीकारे चर सत्यवडे करीने में जे कोइ तुरगी राखेलीछे तेतो मारो प्राण गया विना कोइने आपनारो नथी, माटे जइने ऋष्णने केहे के डांगव जिवेछे त्यांसुधी तमारे घेर तुरगी नहीं अावे.१९ ॥श्लोक। गछगछप्रतिहारक्रष्णवाक्यंनिवेदय श्रुत्वातस्यवचोराजन्गतःक्रष्णस्य संनिधौ // 20 // टीका-हे प्रतिहार जा जा खोटी न था अने क्रष्णने जइने केहे एवं डांगवर्नु वचन सांभळीने हे जन्मेजय एअनुचर ऋष्णना सानिध्य जतोहवो. 20 ॥श्लोक॥ यथातथ्यंवदत्सभ्यान्क्रष्णादीन्सतुसेवकः तुष्णिमासमहाराजक्रष्णो हास्यंचकारह // 21 // टीका-तदनंतर, ते अनुचर तेतो दीनपणावडे करीने ऋष्पनी साथे जेवू डांगवे कडं तेज प्रमाणे केहे छे, अने ते अनुचरनां वाक्य सांनळीने ऋष्ण सना मध्ये हास्य करे छे. 21 ॥श्लोक॥शृणुराजन्प्रवक्ष्यामिडांगवेनतुयत्कृतं वीरसेनंमहामंत्रिवाक्यमाहविशां| पतिः // 22 // दीका-हवे वैशंपायन मुनि जन्मजयने केहे छे फे, दे राजन् जे डांगवे 17 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋत्य करयुं ते तुं सांभळ, पोतानो मंत्रिजे वीरसेन प्रत्ये बोले छे. 22 ॥श्लोक। बलवद्विग्रहोऽस्माकंन ग्राह्योमविसत्तम // तडागतरणेमंदोवारिधितर्नु / मिछति॥२३॥ टीका-हेमंत्रि मारे घेर सर्व प्रकारनी बळवृद्धिछे परंतुक्रष्णने जितवाने दूं समर्थ नथी,कारण तळाव तरवाने माटे हुं मंदछु तो समुद्रनेशीरीते तरीश.२३ लोक॥ अन्यान्जेतुसमर्थाश्चवयंनूपान्महाबलान्॥ क्रष्णागीतोह्यहमत्रिन्मु पायंप्रवदामिते॥२४॥ टीका--हे मंत्री अन्य राजाने तो ढुंगमे ते प्रकारवडे करीने जिती शकुं परंतुक्रष्णथी तो ढुं बीहीतो रदुर्छ माटे तुं उपाय बताव्य.२४ ॥श्लोक। राज्यपालयपुत्रेणसाकंगछामिसांप्रत तुरग नग्रहित्वाहंशरणंनूनमार भेत् // 25 // टीका-मने तो एटलुं सुजेछे के तुं पुत्रनी पासे रहीने राज्य करच, अने हुँतो ए तुरगाने साथे लइने कोइ बलवानने शरण जइश. 25 लोकदैवयोगाच्चजीविष्येपुनःप्राप्नोमिमत्पुर।एतावदुक्त्वावचनंडांगवोभयविहवलः॥२६ टीका-दैवयोगवडे करीने जो जीवता रहीशुं तो आ पुरने विशे पाछा श्रावीशुं. ए प्रकारमा वचन बोलतोथको महा भयभित थतो हवो. 26 लोक॥ हंसरूपंसुतंराज्यनिवमंत्रिसत्तमं // अन्यान्लोकांश्चनारीश्वसमl गृहसंचयान् // 27 // टीका-हंसरूप एवो जे पोतानो पुव तेने मंविने शर्ण राखीने, For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir , डाग. अने अन्य एवा जे पोताना मित्रजन तेने पोतानो संचय सौंपीने जq इच्छेछे. 27 . लोक॥ निसृतोह्यन्वयागीतोराजातुरगीकारणात् // रुदंतिनगरेलोकारुदंति मंत्रिणश्चराः // 28 // टीका-ऋष्णना भयथी बिहीतो एवो जे डांगव राजा ते, तुरगीने लेइने जे समये नगर बाहार निकळे छे ते समये नगरना लोक रुवे छे, | एटलुंज नहीं पण पोतानो प्रधान घणुं रुदन करे छे. 28 लोक॥ ऋष्णात्तुभयमापन्नोडांगवोह्यश्वनीयतः॥अतिशोकेनसंतप्तोरुरोदसतु विहवल H // 29 // टीका-ऋष्णथी उत्पन्न थयो छे भय ते जेने अने अश्वनी उपर , विंटायेलुं छे चित्त ते जेन एवो जे डांगव तेतो अति शोकवडे करीने संतप्त थयो, एवो विहवळपणावडे करीने रुदन करतो हवो. 29 ॥श्लोक॥ अघोरकाननेराजागतःऋष्णभयान्वित H दक्षोमनसिज्ञात्वावैजहाति बलिनाकलिं // 30 // टीका-अघोर एवं कानन जे वन तेने पाम्यो एवो अने ऋष्णना भयवडे करीने विंटायलो अने क्लेशवडे करीने व्यग्र छे, चित्त ते जेनुं एवो | थको मनने विशे चितवन करे छे के कोण मने शर्ण राखशे ए उपाय शोधी काढुं.३० शतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्यानेडांगवविदेशप्राप्ति मचतुर्थोऽध्यायः॥४॥ त्तटीकायां रैक कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधरविरचितायां गामोटगामिनि व्याख्यायां.४|१८ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥वैशंपायनउवाच॥ वैशंपायन रुषि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा;॥श्लोक।। प्राप्तोदुःखंचसंतापंहदिक्रष्णभयान्वित : शरणार्थं गतोराजापातालेडांगवोनृप // 1 // टीका-हे जन्मेजय,क्रष्णना नयवडे करीने पाकुळ व्याकुळ एवो ने हृदयने विशे दुःख संताप पामेलो एवो जे डांगव राजा तेतो पाताळने विशे जतो हवो. 1 ॥श्लोक॥ यत्रनागानागणीभिरमंतिकांचनप्रनाः शेषकर्कोटकोपौमहापद्मश्च ! वासकिः // 2 // टीका-जे ठेकाणे तमाम नागलोक वसे छे, अने कांचन सरखी छे / प्रभाकांति ते जेनी एवा शेषनाग, कर्कोटक, पद्मनाग, महा पद्मनाग, अने वासुकी, ए सर्वे रमण करे छे. 2 ॥श्लोक॥ तक्षकोधृतराष्टश्चपुंडरीकोऽथवामन : एतेचान्येचबहवोनागाःसहस्र काननाः॥३॥ टीका-एटलाज नहीं पण तक्षक, ध्रतराष्ट्रक, पुंडरिक, वामन एथकी बिजा घणा जेने हजार छे फेणाओ एवा एवा शोभायमीन देखाय छे. 3 ॥श्लोक। नमस्कारंद्विजीहवानांक्रतवान्भयविव्हल : // व्वाचडांगवोराजाशेषं प्रतिमहाबलः // 4 // टीका-बे छे जिव्हात्रो ते जेने एवो अने अतिशय छे बळ ते | जेमां एवो जे शेष ते प्रत्ये क्रष्णना भयवडे करीने विहवळ छे मन ते जनुं एवो जे| || डांगव ते नमस्कार करीने बोलतो हवो. 4 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डॉगवउवाच॥ डॉगव बोलतो हवो ॥श्लोकसहस्राननदेवेशपाहिपाहि . 19 जगद्गुरो श्रीकृष्णानयमापन्नोऽश्वनीमेगृह्यतेबलात्॥५॥ टीका-हे देवना इश, हे श- 5 हस्रानन, हे जगद्गुरो भारु रक्षण करो, माझं रक्षण करो श्रीक्रष्णथकी नय ढुं पामेलोछु मारी जे अश्वती तेने बलात्कारवडे लइ जवा इच्छेछे. 5 श्लोक॥ तस्यतद्वचनं श्रुत्वावाचासौनागसत्तम : सर्वेषांशृण्वतांवाक्यंशेषोविष्णु प्रियोन्प॥६॥ टीका-एवां वचन डांगवराजानां शेषनाग सांभळीने सर्व सभाना मध्ये बोले छे, हे राजन् तुं सांभळ, मनेतो ए ऋष्ण घणा वाहाला छे. 6 शेषनागउवाच॥ शेषनाग फरीने शुं बोले छे;॥श्लोक॥ शृणुराजनवचोयोऽ स्माकंचहरिवल्लभ : तस्यवैरीनवान्प्राप्तोनदेयंशरणंतव // 7 // टीका- हे राजा तुं वळी फरीने सांभळ्य हुं तने कढुंछु, के मने हरी जे क्रष्ण ते तो घणा वाहाला छे, तेनो वैरी तुं प्राप्त थयो छे माटे तने कोइ शर्णे नहीं राखे. 7 लोक॥ त्रिलोकेकोनदृश्यतेक्रष्णेनसहयुध्यति जगन्मातापिताक्रष्णःक्रष्णा दन्यन्नविद्यते // 8 // टीका-एटलुंज नहीं पण त्रयणेलोकने विशे क्रष्णनी साथे युद्ध करनार द्वं जोतो नथी अने ए ऋष्णतो जगतना माता पिता रूपछे, कृष्णथी अन्य बळवान बिजो कोश नथी. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक। पुरावालरित्रेवैकृतंकर्मतुकीदृशं॥ कालोयोदमितोभ्राताप्रवेशयमुना हृदे.॥९॥ टीका-अरे भाइ जो तेना बाळचरित्रनी वात हूँ तने संभळाचुं,के तेणे केव॒ कर्म करयुंछे,नारो जेभाश्कालीनाग हतोतेने यमुनाना हृदविशे प्रवेशकरीने दमनकर्योछे. 9 लोकउदधिर्मथितस्तेनवासुकिनेत्रमेवच नदत्तरत्नमेवास्यशरीरेदुर्बलतः // 10 // टीका-एटलंज नहीं पण ज्यारे समुद्र मंथन करयो ते समयने विशे श्रा वासुकीन जोतरुं करिने शरिरे दुर्बल करी नाख्यो तथापि समुद्रमांथीरत्न निकळ्यां ते सर्वे ग्रहण करी गया परंतु एके रल न प्राप्यु. 10 ॥श्लोक // अस्माकंतुवलंनास्तिक्रष्णेनसहसंगरे॥ तुरंगीदेहिक्रष्णस्ययदिकल्याणमिछसि // 11 // टीका-माटे करीने हे राजन् एनी साथे लडवानुं तो अमने जोर नथी, अने जो तुं तादारूं कल्याण इच्छतो होय तो घोडी आपीने पगे लाग्य. 11 ॥श्लोक। नागानांपाक्यमाकर्ण्यक्रोधेनप्रलयंनृप // कथंरक्षतिमांदुःखाद्वदति कातरायथा॥१२॥ टीका-एवांनागनांवचन सांनळीनेक्रोधाग्नीवडेकरीनेअंतःकरणमा प्रलय थइ जायछे,हवेमारुकोण रक्षण करशे हे मन तुंकहे हवे कोने शणे जवु. 12 ॥श्लोक॥ उत्थितस्त्वरितोराजाजगामदिशमुत्तरांमेरोः समीपेगत्वाचप्रणम्य / सतुपर्वतान् // 13 // टीका-एम मनमां विचार करतोथको त्यांथकी उठीने उत्तर For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir क्ष संग. दिशा प्रति माहा पर्वतनी तरफ गति करे छे, केविरीते के मेरु समिपे जइने 20 // वारंवार प्रणाम करतोयको वाणी वदे छे. 13 ॥श्लोक // उवाचनयसंपन्नोनगराजंसडांगव : विंध्यत्वंसर्वलोकेशःपाहिमांशर।णागतं॥१४॥ टीका-भये पाकुळ व्याकुळ एवो डांगवराजा बोलतो हवो, भों विध्याचळं माझं रक्षण करो रक्षण करो हुं बहु त्रास पामिने तमारे शणे आव्योछं. 14 ॥श्लोकाविनापराधंतुरगाग्रहीयानंदनंदनःडांगवस्यवचःश्रुत्वामेरुर्वचनमब्रवीत् / // 16 // टीका-हे प्रभो मारो जराये अपराध नथी तेमछतां नंदनो पुत्र जे ऋष्ण ते मारी तुरगी लेया इच्छेछे, एवां डांगवनां वचन सांभळीने मेरुपर्वत बोलतो हवी.१८५ विंध्याचलउवाच॥ विंध्याचळ शुंबोलतो हवो ; ॥श्लोकानोऽस्माकंबलमेवेश संसारयदिजायते हरिणामथितःसिंधुःकतोमंद्रश्चदुर्बलः // 16 // टीका-हे डांगव जे वखत संग्राम थाय ते वखते क्रष्णनी साथे लडवा-मारुंबळ नथी कारण के ज्यारे एमणे सीधुं (समुद्र) मंथन कस्यो ते सनये मने दुर्बल करी नांख्यो छे. 16 लोक॥ तुरगीदेहिक्रष्णस्यनमत्वंक्रष्णपादयोः इत्येववंचनंक्षुत्वानिमग्नोदुःख / सागरे // 17 // टीका-एज हेतुनाटे हे राजन् तुं तारूं भलुं इच्छे तो एमना पादादिने नमस्कार करीने तुरगी अर्पण करय, ए प्रकारनां ज्यां डांगवे वचन | For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सांभळ्यां त्यांतो माहा दुःखना सागरमां मुबायो. रे प्रारब्ध मारुं क्यम कोइ रक्षण करतुं नथी. 17 लोक॥ विध्यानिंदाप्रकुर्वाणःसमुद्रशरणंगतः॥ तुरगीसहितोराजन्भयेनप्ररु। दन्युनः॥१८॥ टीका-मननी साथे विंध्याचळनी निंदा करतोसतो अश्वनीने दोरीने समुद्रने शरण जइ पोहोचे छे ने महा भयवडे करिने रुदन करे छे. 18 ॥श्लोक।' उदधिंतुनमसत्यवचनंकातरंवदेत् // देयमेशरणंदेवनिम्नगाधिपवा रिधे // 19 // टीका-हे निम्नगाधिप वारिधे! हे नवसे नवांणु नदियोना स्वामि, हुं तमने वारंवार नमस्कार करूंछु हे प्रभो मने शरण राखो. 19 लोक॥ क्रष्णातुभयमापन्नःशरणार्थीयथातथा॥ तस्यतद्वचनंश्रुत्वासमुद्रोवाक्यमब्रवीत् // 20 // टीका-हे प्रनो ऋष्णथी मने भय उत्पन्न थयोछे, माटे जे ते | प्रकारवडेकरीने ढुं तमारे शर्णआव्योछु,एवांवचन डांगवनांसांभळीनेसमुद्र बोलेछे.२० समुद्रउवाच॥ समुद्र बोलतोहवो; ॥श्लोकादतंमेदैवतंतेनसारवस्तुचमेसुत॥ चतुर्दशानांसोराजाक्रष्णेनकोनयुध्यते॥२१॥ टीका-हे राजन्ते क्रष्णे तो माझं बधु दैवत लेइ लिधुंछे अने सारवस्तुएवीजे कोइमारीसुता लक्ष्मि महास्वरुपवान तेनुं हरण करीने परण्या छे,माटे चौदलोकमां एनीसाथे कोइ युद्धे झिते एम नथी. 21 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डागः ॥श्लोक॥ तस्यपादौमहाराजसवकल्याणामिछसि॥ तस्यतद्वचनं श्रुत्वाक्रोधेन श्र. 21 प्रलयंगत // 22 // टीका-माटे करीने हे राजा एमना पाद सेवन करीने जो कल्याण इच्छे तो अश्वनी प्राप्य, ए प्रकारे समुद्रनां वचन सांभळीने मनसाथे महा प्रलय प्रलय थइ जतो हवो. 22 ॥श्लोक॥ गताब्रह्मपुरेशोकसंविग्नहृदयोन्पः॥ चतुराननमायातोनमस्कृत्यपुरः स्थितः // 23 // टीका-शोकवडे करीने संभ्रमित थयुं छे, मन ते जेनें एवो जे डांगव तेतो ब्रह्मपुरी प्रत्ये गति करे छे, हे नृप हे जन्मेजय ब्रह्मा पासे भावी नमस्कार करतोथको वाणि बोले छे. 23 ॥डांगवउवाच // डांगव बोलतो हवो; ॥श्लोक।नमस्तेभगवन्देवपितामहजगद्गुरो।यथायंसात्विकोदेवस्तथात्वंराजसः स्मृतः // 24 // टीका-हे देव हे पिता मह, दे जगद्गुरु तमने हुं नमस्कार करंछु, तमे / राजसी प्रक्रतीवाळाछो,अने क्रष्णतो सात्विकी गुणवाळोछे. 24 लोक॥ त्वत्समोनास्तिभोब्रह्मन्पाहिमांशरणार्थिनांगममापितुरगींक्रष्णोक्लान्न यतिद्वारकां // 26 // टीका-ए माहारी विना अपराधे श्रा तुरगी द्वारिका मंगावी खंची ले छे, माटे हे ब्रह्मदेव तमारे शर्ण श्राव्योछु, तमारा सरखो शरणागतवच्छळ कोइ नथी एज हेतुमाटे माहारं रक्षा करो. 25 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक॥ तद्भवाद्रक्षभोस्वामिन्त्राहित्राहिमहाप्रभो॥विरंचिर्वाक्यमाकर्ण्यप्रत्य। वाचनृपंप // 26 // टीका-हे प्रभो ए नयथकी मने उगारो, उगारो, एवां वचन | विरंचि सांभळीने डांगव प्रत्ये बोले छे. 26 ब्रह्मोउवाच॥ ब्रह्मा शुं बोलता हवा; ॥श्लोक // दुर्मतेशृणुमहाक्यमस्माकं वल्लभोविभुः॥ एकवारंमयाराजन्नपराधःकृतःप्रभोः॥२७॥ टीका-हे दुर्मते मारुं वाक्य सांभळ, मने तो क्रष्ण वाहाला छे एकवार में एमनो अपराध करयो छे. 27 . ॥श्लोक। वछाहरणकतीरंनलब्धोमहिमाहरे : देवदेवस्यक्रष्णस्यकःकुर्यादप कारक॥२८॥ टीका-पूर्वे ऋण गायो दोहोता हता ते समयमां में बच्छर्नु हरण करि लिधुं त्यारे नवी श्रष्टीना वच्छकरिने गायो दोहोवालाग्या ए हरिनोमहिमा हुँ जाणुंछु माटे देवना देव एवा जे क्रष्णा तेनो अप्कार कोण करे एवं छे. 28 ॥श्लोक॥ विभोर्वचनमाकर्ण्यक्रष्णक्रोधेनडांगव : यस्यदेहेक्षमाशांतिकस्मात स्मिन्वलंभवेत्॥२९॥ टीका-समर्थ एवा ब्रह्मानां वचन सांनळीने ते जे कोई डांगव तेतो क्रोधवडे करीने अकळायां जाय छे अने वळी तर्क बांधे छे के, जेना अंगने विषे क्षमा शांति रहेली छे तेने बळ शानुं होय के ए मारुं रक्षण करे. 29 / // श्लोक // डांगवःशीघ्रमारूढोयत्रदेवोमहेश्वरः॥ नमस्कृत्यचगौरीशंडांगवो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. वाक्यमब्रवीत् // 30 // टीका-एम विचारीने ते डांगव उतावळो अश्वनि उपर प्रारो- अ. 22 हण करीने ज्यां महेश्वर देव छे त्यां आव्यो, अने गौरिना इश एवा जे शंकर तेने 5 नमस्कार करीने वाणि बोले छे. 30 ॥डांगवउवाच॥ डांगव बोलतो हवो; ॥श्लोक // देवदेवजगन्नाथगौरीनाथ जगत्पते कृष्णात्तुभयमापन्नोदेहिमेशरणंतव // 31 // टीका-हे देवना देव, हे जगंनाथ, हे गौरीनाथ, हे जगत्पते, ऋष्णे मने भय उत्पन्न करयो छे माटे शर्ण राखो तमारे शर्ण श्राव्योछु. 31. ॥श्लोक॥ तस्यतद्वचनं श्रुत्वाहरोवचनमब्रवीत्॥ देहिक्रष्णस्यतुरगीयदिजीवि तुमिछसि // 32 // टीका-तेनों वचन सांभळीने हर बोले छे हे राजा तुं क्रष्णने तुरगी आप, जो जिवq इच्छेतो. 32 ॥श्लोक॥ अनिरुद्धस्यचोद्वाहबाणयादवसंयुगे॥ अज्ञानेनक्रतंयुद्धहरिणासह नूपते // 33 // टीका-हे नूपते में कोइक समयने विशे अनिरुधना विवाहमां बाणासुरने यादवनो संग्राम थयो त्यारे अज्ञानवडे करीने हरि साथे हुँ लड्यो, त्यारकेडे मारे घणी मित्रता छे. 33 ॥श्लोक॥ ममापिवल्लभःऋष्णस्तस्यारिकोनरक्षति // शिवस्यवाक्यमाकर्ण्यनि- 22 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // श्वासंमंचतिनृपः // 34 // टीका-मने वाहाला एवा जे ऋष्ण तेना शत्रुने कोण / राखनारछे कोइ नहिं राखे एवां शिवनां वचन सांभळीने मुखथी निसासानाखेछे.३१ ॥श्लोक। गतोसौवायुवेगेनहस्तिनापुरमुत्तमंयत्रराजाघार्तराष्ट्रो // भीष्मोद्रोणो। जयद्रथः // 35 // टीका-वळी पोताना मनने विचार करे छे के चाल हस्तिनापर जउ / | एम तर्क बांधिने वायुवेगवडे करीने उत्तम एवं जे हस्तिनापुर तेने पाम्यो, जे ठेकाणे, / धार्तराष्ट्र, भिष्म, द्रोण, जयद्रथ, बिराज्यमान छे. 35 ॥श्लोक॥ कर्णोदुःशासनोद्रौणिभगदत्तश्चबलिंक : एतेचान्येचबहवोसभायांसं स्थिताविभो // 36 // टीका-अने वळि तेथकी बिजाय पण, कर्ण, दुष्यासन, द्रौणी, नगदत्त, बालिक, एथकी अन्य बिजाए पण सभामां विराज्या छे. 36 श्लोक॥ डांगवोडांगवद्भूमौपपातकौरवान्नृप // उवाचवचनंभूयोहदिसंजातवे पथुः // 37 // टीका-डांगव राजा डांगनी पेठे कौरव प्रत्ये साष्टांग, नमन करीने हृदयने विषे छुट्योछे कंपारो ते जेने एवोथको वारंवार वचन बोले छे. 37 डांगवउवाच॥ डांगव शुं बोले छे; ॥श्लोक॥शृणुदुर्योधननूपममापिमधुसूदनः तुरगीकारणंदेवआगतोऽहंनवत्पुरे // 38 // टीका-हे दुर्योधन भूप, तमे सांभळो मारी तुरगी क्रष्ण हरण करी जाय छे माटे तमारा पुरने विशे आव्योछु. 38 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. ॥श्लोक॥ पृथिव्यांकनवीरणनिराशांचक्रताकिमु // देहिमांशरणवीर,त्वत्समो अ. 23 नास्तिकोपरः॥३९॥ टीका-प्रथवीमांकोइ विरे मने शर्णनाप्राप्युंमाटे निराश थयोछु, हे भूपाळ तमारा सरखो कोइ शुरविर नथी एज हेतुथी तमे मने शर्ण राखशो. 39 ॥श्लोक॥ समर्थतेभ्रातृशतंयादवान्प्रतियुध्यति // डांगवस्यवचःश्रुत्वाचातन् दुर्योधनोऽब्रवीत् // 40 // टीका-हे महाराजा तमे यादव प्रति लडवाने सो भाइ समर्थछो एवां डांगवनां वचन सांभळीने दुर्योधन बोले छे. 40 दुर्योधनउवाच॥ दुर्योधन करण प्रत्ये शुं बोलतो हवो; ॥श्लोक॥ वयंयुद्ध समर्थाश्चमहांतोमात्रबंधवः॥ भ्रातापिभ्रातरंहन्यातत्पितापत्रंचमातलं॥४१॥ टीका-हे कर्ण राजा, आपणे युद्ध करवाने समर्थ छीए, अने क्षत्रीनो धर्म छे अनितिए चालनारने सिक्षा करवी. ते ठेकाणे नाइ, बेन, पिता, पुत्र, मामो होय, तथापि अनितिए चालनारने हणवो एम क्षत्रीनो धर्म छे. 41 ॥श्लोक। स्वधर्मेचनवेश्योह्यन्यधर्मेभयोभवेत् // शरणार्थीनृपोरक्ष्योभवतांय |दिरोचते॥४२॥ टीका-स्वधर्म पाळिए तो श्रेय थाय ने अन्य धर्मे भय उत्पन्न थाय | | माटे जो तमने रूचिकर होय तो पा राजानुं रक्षण करीए. 42 कर्ण उवाच॥ कर्ण दुर्योधन प्रत्ये बोलतो हवो; ॥श्लोक। नदेयंशरणंभ्रातः 23 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पांडवान्प्रतियो जयपांडवानांहरेर्षितिःनभूतोनभविष्यति // 43 // टीका-हे नाइ पांडव प्रत्ये मोकलो, आपणे शर्ण नथी राखवो पांडवने ने हरिने घणी प्रीति छे, हवे ए केवो क्षत्रीनो धर्म साचवे छे ते जुवो. 43 ॥श्लोक॥ अहंकारेणरक्ष्यतिपांडवावलवत्तराः अन्योन्यंचभवेद्वैरहरिपांडवयो मिथः // 44 // टीका-अहंकारवडे करीने पांडवो एनुं रक्षण करशे अने घणा बळवत्तरपणाने पाम्या छे माटे अन्योअन्न वैर थवा द्यो. 44 ॥श्लोक॥ करणस्यवचःश्रुत्वासर्वसाधुवदन्नृपाः निरुपणेडांगवोराजाजगाम इंद्रप्रस्थकं // 45 // टीका-करणनां वचन सांभळीने सर्वेए डोक हलावी अने खरं मान्युं तेथी डांगव राजा निराश थइने इंद्रप्रस्थ श्राव्यो. 45 ॥श्लोक // चतुर्योजनविश्लेशोकौरवान्पांडवान्प्रति इंद्रप्रस्थमाहाराजाराज्यं कुतिपांडवा : // 46 // टीका-कौरव अने पांडवने चार योजन छेटुं छे अने इंद्रप्रस्थमां पांडवो राज्य करे छे. 46 ॥श्लोक। रुदन्नलिनवन्नेत्रेगद्गदोडांगवानृप : सूर्यश्चास्तंगतोयावत्पांडवानांपुरे गतः॥४७॥ टीका-कमळना सरखां छे नेत्र ते जेनां, एवो डांगव राजा गदगद | कंठे रोतोथको जे वखते सूर्यास्त थवा लाग्यो ते समय पांडवनुं पुर ईंद्रप्रस्थ तेने For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie डाग. पाम्यो. 47 इतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्यानेडांगवस्यपांडवप्राप्तिर्नामपंचमोऽ 24 ध्यायः // 5 // इतिश्री तटीकायां रैव कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधर विरचितायां गामोट गामिनि व्याख्यायां पंचमोऽध्याय: 5 वैशंपायनउवाच॥ वैशंपायन ऋषि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा; ॥श्लोक॥ प्रवेशंनगरीमध्येपांडवानांचकारसः॥ सभायांचगतोराजास्त्रीचिन्हाअश्वनीरता // 1 // टीका-पांडवनी नगरी मध्ये ते डांगवराजा प्रवेश करतोथको, सायंकाल प्राप्त थयेथके स्त्रिरुपे थइ छे, घोडी ते जेनी एवो सनामां जतो हवो. 1 ॥श्लोक॥ नमस्कृत्यचपाश्चिउवाचडांगवोनृपः॥ गीरागद्गदयाराजहदिसंजात वेपथुः // 2 // टीका-हृदयने विशे छुटेछे कंपारा ते जेने एवो अने गदगद थइ गइछे गिरावाणि ते जेनी एवो ते डांगव पांडवोने नमस्कार करीने बेसे छे. 2 ॥डांगवउवाच॥ डांगव बोलतो हवो ;॥श्लोक॥ युधिष्ठिरनमस्तुभ्यंपांमुपुत्रःमहा बलं श्रीक्रष्णाद्भयमापन्नागतोऽहंनरेश्वर॥३॥ टीका-हे नरेश्वर,हे युधिष्ठिर सत्यवादि बाप,हे पांमुपुत्र तमने नमस्कार करुंछु,मने क्रष्णथकी भय घणो उत्पन्न थयो छे. 3 ॥श्लोक॥ शेषणरक्षितोनाहंसमुद्रेणनगेनच // ब्रह्मणाचशिवनापिकौरवैश्चंद्र || वंशजः // 4 // टीका-हे प्रभो मारु शेषे पण रक्षण ना करयुं समुद्रे पण . For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शर्ण न राख्यो, ब्रह्मा, शिव, अने चंद्रवंशी कौरवादि तेमणे पण शर्ण ना राख्यो, | माटे तमारे शर्ण आव्यो . 4 ॥श्लोक। पंचैतेलोकपालांशायुयंसर्वेमहारथाः॥ शरणार्थीअहंराजनक्षधर्मच क्षत्र // 5 // टीका-हे समर्थ तमे पांचे तो लोकपाळना अंशछो अने माहारथीछो, | सत्यवादि जाणीने तमारे शर्ण आव्योछु माटे क्षत्रीनो टेक राखो. 5 .. ॥श्लोक॥ एतावदुत्कावचनंपपातधर्मपादयोः॥ अश्रुपूर्णोक्षणोदीनंदृष्टवाप्रोवाच / // पांडवः // 6 // टीका-एवां वचन कहीने धर्मराजाना, बे पग कच्चे माथु मुक्युं, धर्म राजा डांगवर्नु दिनपणुं जोइने बोलता हवा.६ युधिष्टिरउवाच॥ युधिष्टिर बोलता हवा ॥लोक॥ भोनीमरणशार्दूलःअर्जुनो नकुलःसमः // नदत्तंशरणंचास्यक्षत्रिधर्मोविनश्यति // 7 // टीका-हे रणने विशे शार्दुल हे भिम, हे अर्जुन, हे निकुळ, हे सहदेव, जो आ राजाने शर्ण नहीं राखिए तो क्षत्रि धर्मनो नाश थइ जाय छे. 7 ॥श्लोक॥ अस्माकंवल्लभःक्रष्णोनकरिष्यतिसंगरं संयुगेयदिचायातियुद्धकुर्मो वयंतदा // 8 // टीका-परंतु आपणने क्रष्ण घणा वाहाला छे, माटे आ राजानो संग न करो, जो संयोग एनो करशो तो श्रापणे युद्ध करवू पडशे. 8 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. ॥श्लोक। धर्मपुत्रस्यवचनं श्रुत्वाभीमोऽब्रवीद्वचः // मातुलेयस्यदुहृदंकथंरक्षित 28 बांधवः // 9 // टीका-धर्मराजानुं वचन सांनळीने भिम बोले छे, रे भ्रात क्रष्णनो द्रोह करनारने केम रखाय. 9 ॥श्लोक॥क्रोधेनजल्पमानस्तुअर्जुनोमंदीरंगतः॥ क्रत्वाक्रोधंधर्मपुत्रंगतोभामो स्ववेश्मनि // 30 // टीका-क्रोधवडे करीने बोलतोथको अर्जुन पण पोताना मंदिर प्रति गति करेछे, ए प्रकारेनिम पण पोताना मंदिर प्रत्ये गति करेछे. 10 श्लोक // युधिष्ठिरणमनसिक्रत्वाचनिश्चयंहदि अहंएकोकरिष्यामिसहायमेन बांधवाः // 11 // टीका-तदनंतर, युधिष्ठिर राजा,पोताना मनमां निश्चय करिने कहे छे केहेराजन् हुं एकलो तारूंरक्षणकरनारोछु,मारा बांधवतो मने सहाय थतानथी.११ ॥श्लोक // नयोग्यमेमदाराजक्रष्णसाकंमिथोरण : // दत्वाश्विनींचरणयोर्नमत्वं जीवितेच्छया॥१२॥ टीका-तेमांय पण मारे क्रष्णनी साथे युद्ध करवू घटारत नथी, एज हेतुमाटे जो जिवq इच्छे तो क्रष्णने नमन करिने अश्वनि प्राप्य. 12 ॥श्लोक // डांगवंचतदाचोक्तागतोधर्मःस्ववेश्मनि तस्यरात्र्यांव्यतितायांप्रभाते | डांगवोऽब्रवीत् // 13 // टीका-डांगवने एवां वचन कहिने धर्म राजाय पण पोताना घरमा जता हवा, अने तेम करते करते रात्रि वित्या पछी प्रभात थवाना समयमा 25 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie डांगव शुं बोले छे. 13 डांगवउवाच // डांगव बोलतो हवो; ॥श्लोक॥ धिग्कुलंचंद्रजभूपाधिग्धर्मों धिग्बहुशताब्रह्महत्याभवेत्तेषांयुद्धकुर्वतिकातरं // 14 // टीका-चंद्रवंशना कुळने विषे उत्पन्न थयेलाने धिक् छे, तेमना धर्म नियमने पण धिक्छे, तेमना सर्वज्ञपणाने धिक् छे,शर्ण श्रावेलाने शणे न राखेतो ब्रह्महत्या होय तेम जाणेछेतथापिनथी राखता.१४ ॥श्लोक।इत्येवमुक्त्वावचनंगतोगंगातटेनृपः॥स्वदेह त्यागमश्वन्यामनसाधारणां दधौ // 15 // टीका-एवां बचन संभळावीने ते डांगव राजा पोतानो देह अश्वनि सुद्धा त्याग करवो धारिने गंगाना तृट प्रत्ये गति करे छे. 15 ॥श्लोक।गंगातीरसुखांसिनाऋषयोवेदपारगा केचिध्यानेनसहितामुनयोदिप्त तेजस // 16 // टीकान्ते गंगा तृटना किनाराउपर वेद वेदांगनोपारपामेला ऋषियो, सुंदीर तेजस्वी केटलायेक हरिनुं ध्यान धरे छे. 16 ॥श्लोक॥ तत्रगत्वाचतान्सन्निनामदंडवद्भवि // मुनयोमांमहासिद्धारक्ष्यांकुर्वत संस्थित H // 17 // टीका-तेमना समीप डांगव जइने दंडव्रत करे छे ने केहेछे के, हे तपस्वीयो, हे सिद्धो माहारुं रक्षण करो. 17 // श्लोक // डांगवस्यवचःश्रुत्वाअब्रुवन्ऋषयोवचः॥वयंतंचभजिष्यामोकस्माछ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. रणमाचरेत् // 18 // टीका-ते डांगवर्नु वचन सांभळीने ऋर्षाओ बोले छे के, रे अ. 26 भूप अमेज तमारी आशा राखीए छे जे तमे क्षत्रीछो माटे अमाझं रक्षण करशो. 186 ॥श्लोक। अस्माकंआशिषोसत्याकल्यातुनविष्यति तेषांवचनमाकर्ण्यागतो जान्हवीजले // 19 // टीका-परंतु अमे तो तने एटलो आशीर्वाद दैये छे जे ताहारूं कल्याण थशे एवां वचन सांभळीने ते डांगव गंगाना जळमां पेठो. 19 ॥श्लोक ॥गंगेगंगेतीगंगेतिमनुजासंस्मरंतिच॥ तेषांभुक्तिचमुक्तींवत्वंदद्या शोभने तथा॥२०॥ टीका-गंगामां उभोरहीने केहेछे के, हेगंगे हे गंगे हे गंगे, एवा शब्द जे नाहावाना समय बोले छ, तेमने भुक्ति मुक्ति आपनार तमेछो. 20 / ॥श्लोक // इत्येवमुक्त्वावचनंतुरगास्नापयन्नृपः स्वयंस्नातोमहाराजनमश्चक्रेच भास्करं // 21 // टीका-एवां वचन बोलीने तुरगाने स्नान करावे छे, अने पोते पण नाह्यछे, एटलुज नहीं पण सूर्यने सहस्र नमस्कार करे छे. 21 ॥श्लोक काष्टमानियसोराजाचितिक्रत्वाचसांप्रतं // अग्निंससमाधायअकरोच्च प्रदक्षिणं // 22 // टीका-तदनंतर ते राजा वनमाथी काष्ट एकठां करीने चीता खडकतो सतो अग्नी शळगावीने प्रदक्षिणा करतो हवो. 22 ॥श्लोक॥ ततःप्रभातसमयेसुभद्राक्रष्णबांधवा॥ सहस्त्रघेनुदानार्थागताजान्हवी 26 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org / तटे // 23 // टीका-ते समयने विषे प्रभात समयमा कृष्ण बांधवा जे सुभद्रा तेतो, / हजार घेनुनुं दान आपवा माटे झान्हवीना तृट उपर आव्यां छे. 23 ॥श्लोक।अभीमन्युसुतोतस्याःनववर्षोमहाबलः॥शतदासीभिसंयुक्तारथारोहा ददर्शह // 24 // टीका-अने तेनी साथे अभिमन्यु पुत्र नव वर्षनो बाळक बळवान् | रथ हाके छे, तथा सोतो दाशीश्रो छे. 24 ॥श्लोकास्किारप्रतिप्रोवाचसुभद्राससुतानृप // पश्पपश्पनरंकंचिदश्वनीसहिता व्रते॥ किंचिदुःखेनसंतप्तोदग्धुमिछतिकिंकरि // 25 // टीका-हे नृप हे जन्मेजय, ते। समयने विशे सुभद्रा पोतानी दाशीने केहे छे जे, जो जो आ कोण पुरुष अश्वनीयुक्त, अग्नी समीप व” छे, अने ते शा दुःखना कारणथी बळी मरवू इच्छेछे. 25 ॥श्लोक॥ तस्यावचनमाकर्ण्यगताराज्ञोसमीपतःप्रणम्यडांगवंदासीवचनंदम ब्रवीत् // 26 // टीका-ते सुभद्राजीनुं वचन सांभळीने कीकरी जे दासी तेतो डांगव राजा समपि जइने प्रणाम करती सती बोलती हवी. 26 ॥दास्युवाच // दासी शुं बोलती हवी; लोक // किमर्थदहसिदुःखंशंसमेतव / कारणं॥दासिवचामाकर्ण्यवाहवाक्यंसडांगव // 27 // टीका-हे राजन् तमेशा कारण माटे दहन थाओ ते मने संभळावो,एवां दासीनां वचन सांभळीने, डांगव बोलेछे. 27 | For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir श्र. डाग. ॥डागवउवाच॥ हवे डांगव शं बोलतो हवो; ॥श्लोक // तुरगीगृह्यतेको 27 ममापिचमहाबलात् // तस्मात्कनचवीरेणष्टथिव्यांनचरक्षितः // 28 // टीका-अरे बाई माहारा दुःख सरखं कोइने दुःख पडयुं नथी, जे माहारी घोडी कृष्ण बळवडे करीने विना अपराधे लेवी धारेछे,अने मने पृथ्वीमां कोई शरण राखतुं नथी. 28 लोक। स्वदेहंत्यत्तुमिछामिअश्विन्यासहकिंकरि तस्यतद्वचनं श्रुत्वाकिंकीशघ्र मागता॥२९॥ टीका-एज हेतुमाटे अश्विनि सुद्धां माहारो देह अग्नीने अर्पण करुंछु, || एवो वचन सांभळीने किंकरी सुभद्रा पासे आवती हवी. 29 ॥श्लोक। सुभद्रायाःसमिपंतूप्राप्यसर्वन्यवेदयत् // श्रुत्वाप्राह पुनर्राज्ञीममपार्वे समानय // 30 // टीका-सुनद्रानी पासे आवीने सघळी वात संभळावी तो, तो घणी दया उत्पन्न थइ, तेणे करीने दासीने आझा करी के ए राजाने माहारी पासे बोलावी लाव्य. 30 ॥श्लोक। किंकरीचपुनस्थानंयत्रराजासडांगव : आगछसमिपंतुतवदुःखंन्यवेदय // 31 // टीका-एम सानळीने ते दासी फरी राजा पासे जइने केहवा लागी के तमने सुभद्राजी तेडे छे, माटे तमे त्यां गति करो अने तमारं कारण संभळावो ए तमने सहाय करशेज. 31 27 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक॥ तस्यावचनमाकर्ण्यहर्षमापधनुर्धर : // श्रागतोशीघ्रमनयाराझीपार्थे समागमत् // 32 // टीका-ते दासीना वचन सांभळीने हर्षयुक्त थयो एवो जे डांगव राजा तेतो तात्काळ सुभद्राजी पासे जतो हवो. 32 ॥श्लोक॥ नमस्कृत्यसुभद्रांचप्रांजलिःप्रणतःस्थित : दृष्टवातत्रचराजानंसुभद्रा वाक्यमब्रवीत् // 33 // टीका-सुनद्रा पासे जइ बे हाथ जोडी नमस्कार करेछे, तेटलामां ते राजानुं उतरी गयेनु मुख जोइने सुभद्राजी बोले छे. 33 सुभद्राउवाच॥ सुनद्राजी बोलता हवा;॥श्लोकाकोसौत्वंराजरूपणकिमर्थदग्धु मिछसि सुनद्रावाक्यमाकर्ण्यराजावचनमब्रवीत्॥३४॥ टीका-रेतमे राजरूप कोणछो, अने केम बळवू इच्छोछो,एवां वचनसुनद्रानां सांभळीने तात्काळ राजा बोले छे. 34 / ॥डांगवउवाच॥ हवे डांगव शुं बोलतो हवो ; ॥श्लोक // अहंतुडांगवोराजा | काश्यांगंगातटेशुने॥ उर्वशीअप्सराहेयीरूपमास्थायचागता // 35 // टीका-हे मात, / शुभ एवं जे गंगातट ते उपर काशीपुर ते स्थळने विषे राज्य करनारो एवो हुं माहारु। नाम डांगव छे, ऋषिना शापथी घोडीरुप थयेली एवी जे उर्वशी तेतो माहारा भाग्यवडे करीने माहारा शीमाडामांथी मने प्राप्त थइ छे. 35 ॥श्लोकदैवयोगान्मयामातआनिताममवेश्मनि क्रष्णेनयत्समाख्यातंमांदेहीति For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie दाग भयान्वितः // 36 // टीका-हे मात ततो दैवयोगे करीने टुं मारा घरने विशे लाग्यो / अ 28 छु, ते वात क्रष्ण जाणीने माहारी पासे मागे छे. 36 ॥श्लोक। आगतोशरणार्थायकेनापिनचरक्षित : अश्विन्यासहमेदेहंत्यक्तुमिछामि / / सांप्रतं॥३७॥ टीका-मने कोइशरण राखे एवो विचार करीने निकल्यो सतो, कोणेय शरण न राख्यो, ते पीडाये करीने अश्वनी सुद्धा बळि मरवू इच्छुछु. 37 सुभद्राउवाच॥ सुनद्रा शुं बोलतां हवां ; ॥श्लोक॥ तस्यवचनमाकर्ण्यसुभद्रा प्राहसत्वरं // मादुःखंकुरुनृपतेरक्षितस्त्वंमयाविभो // 38 // टीका-तेनां वचन सांभळीने सुभद्रा बोले छे, हे नृपति तुंदुःख मां धरच, में तने शरण राख्यो. 38 ॥श्लोक॥ क्रष्णस्यभगीनिचाशुसुनद्रानामनामतः॥ यदिजानातिमेधातायुद्धार्थ / नागमिष्यति // 39 // टीका-हुँ क्रष्णनी बेन सुनद्रार्छ, अने ऋष्ण जाणशे के, डांगवने माहारी बेने शरण राख्यो छे, एटले ताहारी साथे युद्ध करवा नहीं आवे, ए प्रकारे ताहारूं समाधान करीश. 39 श्लोक॥ कदाचायातिसमरस्वामिमरणमारभेत् // नकरोतिपतियुदंउपाय शृणु / नूपते // 40 // टीका-एम करतां जो युद्ध करवाने क्रष्ण चढशे, तो माहारा स्वामी एमनी साथे युद्ध करतां हठवाना नथी, अने जो माहारा स्वामी क्रष्ण साथे युद्धे 28 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir || चढवानी ना केहेशे, तो आपण बीजो उपाय करीशं, ते तं भूपति सांभळ्य. 40 ॥श्लोक॥ त्वंचतेतुरगीराजन पुत्रयुक्ताअहंनृप तदादुतवहंसेवेदितिसत्याचमे प्रति H // 41 // टीका-जो कदापि माहरा स्वामि युद्ध करवानी ना केदेश, तोतो ढुं तथा तुं अने ताहारी घोडी एटलुंज नहीं पण माहारा अभिमन्यु सुद्धा अग्नीने नोग आपिशुं, एटले तात्काळ बळी मरीशुं ए माहारी सत्य प्रतिज्ञा छे. 41 ॥श्लोक // तस्यावचनमाकर्ण्यहर्षयुक्तोनराधिपः स्नानंचकारसानारीददादानं गवांनृप // 42 // टीका-एवां वचन झा सुभद्रानां सांभळ्यां के, तात्काळ डांगव | राजा हर्षयुक्त थइ जतो हवो, श्रने सुनद्रा ततो गंगा स्नान करीने ब्राह्मणोने गायोनां दान आपती हवी. 12 ॥श्लोक॥ सहिताडांगवेनापिईंद्रप्रस्थेजगामह // त्वरिताागताराज्ञीभीमसेन स्यवेश्मनि // 43 // टीका-तेथकी अनंतर ते डांगवने साथे लेइने सुभद्रा इंद्रप्रस्थमा आवी, अने पोतानो जे जेठ भीमसेन तेना मंदिरमा प्रवेश करे छे. 43 | इतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्यानेडांगवसुभद्रासमागमोनामषष्टोऽध्यायः // 6 // इतिश्री तटीकायां रैक कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधर विरचितायां गामोटगामिनि | व्याख्यायां षष्टोऽध्यायः // 6 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. ॥वैशंपायनउवाच॥ वैशंपायनमुनि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा; // लोक॥ 29 | उत्तीर्यकांचनरथात्पार्थपत्नीसुतान्विता // भीमसेनंनमस्क्रत्यमातातववचोऽब्रवीत्॥१॥ टीका-अर्जुननी स्त्री जे सुभद्रा ततो,पोतानोपुत्र जेअभिमन्युतेसुद्धां सुवर्णमयरथमाथी || उतरीने भीमसेनने नमस्कारकरेछे,अने नमस्कार करतांसतां सुभद्राजी वाणीबोलेछे.१ ॥सुभद्राउवाच॥ सुनद्राजी भीमसेन प्रत्ये शुं बोलतां हवां ; ॥श्लोक। भोता तशृणुमेवाक्यं स्वस्थचित्तेनभूपते॥धानीतोयंमहाराजशरणार्थीमयान्प॥२॥ टीका-धंघट तापीने सुभद्राजी के छे के हे जेठ पाप स्वस्थ चित्ते सांभळो, मेंहेतो आज | आ राजाने शरण राख्यो छे. 2 लोक। तस्यसंरक्षणंतातभवतांघटतेयदि भ्रातृवत्पालनीयोऽयमादुःखंप्राप्य तेकदा // 3 // टीका-हे तात मेंहे जेने शरण राख्यो, तेनुं संरक्षण तमारे करवूपडे, माटे भ्रातृ पुत्रादिकनी पेठे एने पाळो, जेणेकरीने ए दुःख न पामे. 3 ॥नीमसेनउवाच / / एम सांनळीने भीमसेन शुं बोलता हवा; ॥श्लोक। रक्षि | तोयंमयाभद्रेस्वस्थचित्ताग्रहंव्रज॥ एवंसंवदतेयावत्पंचालीतत्रचागता // 1 // टीका-हे स्त्रि तने दया उत्पन्न थइ तो माहारे एनुं रक्षण करवू, स्वस्थ चित्ते घरनां काम काज करो, एम वातो करे छे एटलामां पंचाली प्रावी पोकतां हवा. 4 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक। द्रौपद्यापतितापादेसुभद्रामाधवानुजा प्रसन्नाद्रौपदीप्राहशृणवाक्या / विशांपते // 5 // टीका-अने ज्यां द्रुपदीने श्रावतां दीठां त्यांतो, क्रष्ण बांधवा जे सुभद्रा, द्रुपदीने पगे पडे छे, अने ते जोइने द्रुपदी वचन बोलेछे. 5 ॥द्रौपदीउवाच॥ हवे द्रौपदी शुं बोलतां हवां ; ॥श्लोक। धन्यात्वंसापत्न्यातु पूर्णाःसंतुमनोरथा: जेष्टगहकिमर्थत्वंचागताकारणवद // 6 // टीका-हे सुनद्रे तमने। धन्य छ, तमारा मनोरथ परिपूर्ण हो, परंतु तमने हुं पुछुछु के आज जेष्टने | घेर क्यम आव्यां छो. 6 सुभद्राउवाच॥ एम सांभळीने सुभद्राजी शुं बोलतां हवां ॥श्लोक॥ अयंहि | डांगवोराजाक्रप्णागीतोशुभानने // गंगातीरेचदाहार्थंचितांप्राप्तश्चदर्शित : // 7 / / टोका-हे शुभानने द्रौपदी आ डांगव राजा क्रष्णथी भय पांमेलो गंगातीरे बळी मरतोतो, ते में नजरे दीटो. 7 ॥श्लोक। आनीतोमेमाहाराजाशरणार्थीद्रौपदीपति॥ समर्पितोनीमसेनंधात तूल्यंचपाल्यति // 8 // टीका-ते मेंहे दया आव्याथी शर्ण राख्यो सतो, भीमसेनने / सुप्यो छे, ते एने भाइ तुल्य पाळशे, एम प्रतिज्ञा करे छे. 8 ॥द्रौपदीउवाच॥ एम सांनळीने द्रौपदी शुं बोलतां हवां ; लोक॥ धन्यात्वंच। / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. वरारोहमादुःखंकुरुसुटते॥ तंत्वयाशुभंकर्मक्षत्रीधर्मश्चरक्षित H // 9 // टीका-धन्य छे तमने हवे राख्यो तो शोक ना करशो कारण के सारुं करयुं छे, तमे क्ष- 7 त्रिनो धर्म साचवी जाण्यो. 9 ॥श्लोक। प्रसन्नाहंतदाजातातवसंगसदावह्ययं पश्वात्प्रोवाचवायुजोसुभद्रांप्रति भारत // 10 // टीका-पांचाळी कहे के ढुं पण ताहारी जोडे प्रसन्न थइछु, एटलामां नीमसेन सुनद्रा साथे बोली उठेछे. 10 ॥भीमसेनउवाच॥ हवे भीमसेन सुभद्राने शं केहेता हवा; ॥श्लोक। गच्छगेहे यथातथ्यंसुनद्ररक्षितोमथा। अहंमृतोमृतेराझिमादुःखंकुरुसुटते // 11 // टीका-हे | सुभद्रे जाजा घरनां काम करच ! एनुं हुं रक्षण करीश, एने में शर्ण राख्यो दुःख मां घरीश हुँ जीवीश त्यांसुधी एने दुःख नहीं पडवा देउ. 11 . ॥श्लोक। नीमस्यवचनंश्रुत्वासुभद्रास्वग्रहंगताहर्षितो डांगवोराजाभीमेनसह नंदति // 12 // टीका-ए प्रकारे नीमनां वचन सांनळीने सुभद्राजी पोताना घर प्रत्ये गति करे छे,अने ते डांगव राजा हर्षित हर्षित थइने नीमसेन साथे आनंद करेछे.१२ ॥श्लोक॥ प्रसन्नोनूतदाराजाश्रुत्वावा युधिष्ठिरः॥ क्रष्णेनयत्कृतंकर्मतद्राजन्क | थयामिते॥१३॥ टीका-नीमे डांगवने शर्ण राख्यो ए वात युधिष्टिर सांभळीने प्रसन्न 30 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir थया,तद पश्चात् क्रष्णे शुक्रत्य करयु,ए कथा हे जन्मेजय तु सांनळ्य. 13 ॥श्लोक। चत्वारोसेवकाराजन्क्रष्णस्यचअतिप्रीयाः॥ माधवेनचमुक्तास्तेशोधने डांगवस्यच // 11 // टीका-हे जन्मेजय,क्रष्णने वाहाला एवा च्यार सेवक हता,तेने च्यारे दिशाये प्रेरया,कारण के तमे डांगवनो शोध करो,एने कोणे शर्ण राख्योछे. 14 ॥श्लोक॥ अागताप्रथमंतस्यनगरेजनमेजय लब्ध्वावापुनःप्राप्ताशेषनागस्य मंदिरे // 15 // टीका-ए सेवको प्रथमतो डांगवना नगरने विशेाव्या, प्राविने वार्ता जाणी के डांगव राजा शेषने शर्ण गयो छे,तेम जाणी शेषनाग पासे गति करेछे. 15 / ॥श्लोक // शेषात्तुतस्यवातिश्रुत्वागछन्नगालये // विध्यंचैवनमस्कृत्यप्रोचुस्ते / सेवकाहरे॥१६॥ टीका-शेषने सर्व वृत्तांत पुछयु,ते सांनळीने नगाळय जे विंध्याचळ | पर्वत,तेनी पासे श्रावता हवा,त्यां आवीने नमस्कार करता सता पुछछे. 16 ॥श्लोक // आगतोडांगवोराजाक्रष्णस्परिपुपर्वत // तेषांवचनमापाद्यनगेन / कथितंचतत् // 17 // टीका-हे पर्वत हश्यां क्रष्णनो शत्रु डांगव राजा आव्यो छे, ते सांभळीने पर्वते जबाप दीधो के में एने शरण राख्यो नथी, अने एतो समुद्र पासे गयो छे. 17 ॥श्लोक // गतास्तेवायुवेगेनसमुद्रांप्रतिनारत // सुभद्रात्तस्यवार्ताचश्रुत्तास्व For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie डोग. / स्थेनचेतसा // 18 // टौका-एरीते पर्वतनां वचन सांभळीने हे भारत क्रष्णना 31 अनूचरो समूद्र प्रत्ये जता हवा, अने जश्ने पुछे छे तो एणे डांगवने शर्ण नथी राख्यो, एम स्वस्थ चित्ते जांणी लीधुं. 18 ॥श्लोकगतास्तेब्रह्मणोपार्श्वनमस्क्रत्यपितामहं // प्रक्दस्तेमहाराजडांगवस्य विचेष्टितं // 19 // टीका-तदनंतर ते अनुचरो ब्रह्मापासे जइने नमस्कार करे छे, हे पितामह, तमारीपासे डांगव आव्यो हतो एनी अमने भाळ बतावो. 19 ॥श्लोक // ब्रह्मणाकथितंसर्वश्रुत्वाकैलासमागमत् हरस्पवचनात्सर्वेचागताहस्तनापुरे // 20 // टीका-ब्रह्माए संघटु वृत्तांत का जे माहारी पासे आव्यो हतो | परंतु में एने नथी राख्यो. अने कैलास प्रति गयो छे, एम खबर सांभळीने ऋष्णना अनुचरो हरपासे जइ पोहोच्या,अने शिवने पुछेछे तो शिवे पण तेने शर्ण नथी राख्यो / अने हस्तिनापुर गयो छे,एम सांभळी अनुचरो हस्तिनापुर गति करता हवा. 20 / ॥श्लोक॥ यत्रवैधार्तराष्ट्राश्वसर्वएवमहारथाः नमस्क्रत्यचराज्ञावैप्रोचुक्रष्णस्य | किंकराः // 21 // टीका-जे ठेकाणे धात्राष्ट्रर जे कोइ दुर्योधनादिक् सो भ्रात महा | बळवान बिराज्या छे,त्यां श्राविक्रष्णना किंकरो नमस्कार करताथका बोले छे. 21 ॥किंकराउचु॥ किंकरो शुं बोलता हवा; ॥श्लोक // अहोदुर्योधननृपक्रष्ण || For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्पारिर्भवत्पुरे दर्शयत्वमहाराजतदादुर्योधनोऽब्रवीत् // 22 // टीका-अहो इति / आश्चर्य हे दुर्योधन नुपति, ऋष्णनो रिपु डांगव तमारा पुरमा श्राव्यो छे ते अमले / देखाडो, ते सांभळी दुर्योधन बोले छे. 22 दुर्योधनउवाच॥ दुर्योधन शुं बोलतो हवो; // श्लोक // श्रागतोमत्पुरेसोयं अस्माभिर्नचरक्षितः गतोवैडांगवोराजापांडवानांपुरतथा // 23 // टीका-हे अनुचरो, ए मारा पुरने विशे आव्यो हतो परंतु में एने नथी राख्यो, ए डांगवतो पांडवना पुरने विशे गयो छे. 23 ॥श्लोक॥ भीमेनरक्षितोसोयंसुनद्रावाक्यकारणात्॥ एतछतंवचोऽस्माभिपांडवै रक्षितोसदा // 24 // टीका-एटलुंज नहीं पण भीमसेने सुभद्रानुं वाक्य पाळवाना हेतुथी पांडवोए एनुं रशण करयुं एम माहारा काने आव्युं छे. 24 ॥श्लोक। धार्तराष्ट्रस्यवचनंश्रुत्वाकृष्णस्यकिंकरा : परस्परंवदत्त्सर्वेकोविचारश्च क्रियतां // 25 // टीका-ए रीतनां दुर्योधननां वाक्य ऋष्णना किंकर सांभळीने परस्पर विचार करेछे ने आपणे शुं करवू. 25 ॥श्लोक // भीमसेनोमहाक्रोधीजानीयान्नोस्यशोधकान् // हनीष्यतिनसंदेहः नावकार्याविचारणा // 26 // टीका-अरे मित्रो भिमसेन तो महा क्रोधी छे ने For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir जाग. आपण डागवन शाधा काहाडन आपणे डांगवने शोघी काहाडनारा अनुचरो उश्ये एम जो भीमना जाणवामां थशे 32 तो आपणने मारशे एमां कांइ विचार करवानुं नथी. 26 ॥श्लोक // इत्येवंनिश्वयंक्रत्वागतास्तेद्वारकांप्रति श्रीक्रष्णस्यसमाख्यातंडांगव स्यविचेष्टितं // 27 // टीका-ए प्रकारनो मनने विशे विचार निश्चय करीने ते अनुचरो द्वारकां प्रति गति कर छे, अने सघळु ए डांगव राख्यानुं कारण क्रष्णने संभळावे छे. 27 ॥श्लोक।गतास्तेसेवकाराजस्वस्यस्वस्यचवेश्मनि श्रीकृष्णेनचयत्कृत्यंतद्राजन्क थयामिते // 28 // टीका-अने ऋष्णने संभळावता थका पोतपोताना धरने विप गति करे छे, तदनंतर ऋष्णे शुं करयु ए टुं तने संभळावूछु ते तुं सांभळ. 20 / ईतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्यानेसप्तमोऽध्यायः॥७॥ त्तटिकायां रैक्व कुलोद्भव || जयशंकर सुत गंगाधरक्रतडांगवो पाख्याने सुबोधनीन्याख्यायां सप्तमोऽध्याय // 7 // वैशंपायनउवाच॥ वैशंपायेन मुनी जैमीनी प्रत्ये बोलताहवाश्लोकानां पुरतोराजन्सात्यकिंबुद्धिसत्तम उवाचदेवकीपुत्रोपांडुपुत्रान्हसन्निव // 1 // * टीका-हे राजन् तदनंतर सात्यकीने आदि लेने, सघळा जादवो, ते प्रत्ये देवकीना पुत्र जे भगवान् तेतो हसताथका बोले छे. 1 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥क्रष्णोउवाच॥ ऋण ज्यादवो प्रत्ये शुं बोलता हवा; ॥श्लोक // सात्यकेशृणु / महाक्यंपांडवैर्ममहेलनं क्रतोनैचापराधश्चडांगवोरक्षितोयदि॥२॥ टीका-हे सात्वको माहारूं नवाइन वाक्य सांनळो, पांडवोए तो माहारी हेलना करी छे, जुवो आपणे घणु घणुं एमर्नु राख्युं छे, परतुं डांगवने एमणे शरण राख्यो. 2. ॥श्लोक // उपायोकश्वकर्त्तव्यशंसमेपांडवान्प्रति श्रीक्रष्णस्पवचःश्रुत्वासात्यकि वाक्यमब्रवीत् // 3 // टीका-हे यादवो हवे पांडवो साथे प्रापणे शो उपाय करवो, एवां क्रष्णनां वचन सांनळीने सात्यकी बोले छे. 3 ॥सात्यकीउवाच॥ सात्यकी शुं बोलता हवा; ॥श्लोक॥ आदौयुद्धंनकर्त्तव्यं पांडवावोसबंधिन: प्रद्युम्नंयोजयेदेकेसिक्षांददामिपांडवान् // 4 // टीका-हे प्रभो, आपणे प्रथम तो युद्ध एमनी साथे न करवू घटे, कारण के श्रापणा संबंधी केहेवाय, माटे करीने, प्रद्युम्नने मोकलो जे पांडवोने समजावे. लोक॥ सात्यकेर्वाक्यमाकर्ण्यसाधुसाध्वितिवादिनः प्रद्युम्नंरुक्मणीजातंप्राह लक्ष्मीपतिर्नुप // 5 // टीका-एवं वचन नगवान् सात्यकीन सांभळीने, सत्य कहोछो सत्य कहोछो एम केहेताथका,रुक्ष्मीना पुत्र जे प्रद्युम्नजी तेमने तेडीने केहेता हवा.५ ॥क्रष्णउवाच॥ हवे क्रष्ण प्रद्युम्नने शु केहेता हवा ; ॥श्लोक। गच्छपुत्रमहाबाहो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. इंद्रप्रस्थत्वमेवच सिक्षादेयायथातथ्यंपांडवानांविशेषतः // 6 // टीका-हे महा बाहो, 33 | हे बुद्धिमान् पुत्र प्रद्युम्नजी तुं ईंद्रप्रस्थ प्रयाण करच, अने जे ते प्रकारकडे करीने | 8 विशेषपणाथी पांडवोने समजाव्य. 6 ॥श्लोक॥ श्रुत्वावाक्यंकानदेवोप्रस्थितोपांडवात्प्रति रथेनैकेनवेगेनागतोईद्रप्रस्थके // 7 // टीका-ए प्रकारे पोताना पिताजीनां वचन सांभळीने, कामदेव जे प्रद्युम्नजी तेतो,पोतानापितानी अाज्ञा मानीने पांडवने शिखांमण देवानेअर्थे इंद्रप्रस्थ जवाने माटे,वेगवान रथमां बेसेछे,एटलुंज नहीं पण थोडाकाळे,इंद्रप्रस्थ पोहोचेछे.७ लोक॥ भीमसेनस्यसदनेागतोरुक्मणीसुत : अवतिर्यरथाकामोमंदीरेप्रविवे | शह॥८॥ टीका-इंद्रप्रस्थमां आदिने भीमसेननाघरमां रुक्मणीनो पुत्र प्रवेश करेछे, अने पोतानो रथ तेतो हयशाळामां छोडे छे. 8 ॥श्लोक॥ दृष्ट्रातंभीमसेनोवैउत्थितोपिमहासनात्॥आलिंग्यतांधृतवेयंनिश्पच बिजासने // 9 // टीका-एटलाथके अनंतर, ज्यां प्रद्युम्नने श्रावता दीठा के तात्काळ, भीमसेन पोताना आसनथी उठीने मळताथका,पोताना आसने बेसारता हवा. 9 . / ___॥ोवाचभमोवचनंप्रद्युम्नंप्रतिभारत॥ तदनंतर हे भारत, प्रद्युम्नजी साथे भीमसेन बोले छे. ॥भीमउवाच॥ भीमसेन शुं बोलता हवा ;॥श्लोक // कुशलीदेवकीपुत्रो| 33 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kailassagarsur Gyanmandie | कुशलिनोपिकृष्णय : द्वारकायांसदाकामयवक्रष्णौसदासुखं // 10 // टीका-हे प्रद्यु- // नजी सर्वे यादवो कुशल छे, देवकीना लाडकवाया क्रष्ण कुशल छे, साचुछे ज्यां ऋष्ण वसे छे त्यां कुशलता क्यम न होय, त्यांतो सदाय सुखाकारी समजुळू. 10 ॥श्लोक। किमेतत्कारणंतातागतस्त्वंनिवेदय भीमस्यवचनं श्रुत्वाप्रत्युवाचरति पतिः॥११॥ टीका-वारु बाप तुं शा कारण माटे श्राव्योछु,ते तुं मने संभळाव्य,एम भीमसेननां वचन सांभळीने रतिपति जे कामदेव तेतो भीमसेन साथे बोलतो हवो.११ प्रद्युम्नउवाच॥ प्रद्यनजी नीमसेन प्रति बोलता हवा ;॥श्लोक। सर्वेकशलिनोसंतिद्वारकायांनराधिप // आगतोऽहंमाहाराजडांगवस्यापिकरणात् // 12 // टीका-हे नराधिप हे भीमसेन, द्वारकामा सर्वेकुशल छे,तमने घणा मान्नथीबोलाव्या छे, अने माहारूं आवागमन तो डांगव राजाना कारणथी थयुं छे. 12 ॥श्लोक॥ श्रीक्रष्णेनचकथितंनघटत्वायुनंदनः // अस्माकंडांगवोचौरोरक्षितो शरणेकथं // 13 // टीका-श्रीकृष्णे कांछे के हे वायु नंदन, तमने बाटलंबधु घटे नहीं, अमारो डांगव चोर छे, तेने तमे क्यम राख्यो छे. 13 ॥श्लोक // उच्चाटयत्वंराजानंक्रष्णस्यापिसुखं भवेत्प्रद्युम्नस्यवचोश्रुत्वाभीमोड नूद्रक्तलोचन H // 11 // टीका-अद्यापि सुधी सघळूय सुख छे, परंतु तमारा कारणथी। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir डांग. क्रष्णने दुःख उपन्युं छे, जो तमे मानो तो सुख थाय, एवां वचन भीमसेन प्रद्युम्ननां भ सांनळीने, महा क्रोधातुर थयाथका, लाल लोचन करि नांखे छे. 14 श्लोक गच्छ!गच्छ!ष्णसुतनदेयोडांगवोनृपःकिंकरिष्यामिबालस्त्वंसद्योहन्मिन संक्षय H // 15 // टीका-जा!जा!क्रष्णासुत!!श्रा शुं बोले छे,माहारुं सत्य चुकववाने तुं आव्यो , परंतु ए डांगव तो माहारा प्राण साथे छे, अल्या तुंशुं करवानोछे?हवे बोलीश तो धोलो बे मारीश. 15 ॥श्लोक // नीतोक्रष्णसुतोराजन्भीमसेनस्यभाषणात् // त्वरितोउत्थितोभीतो धर्मपुत्रस्थवेश्मनि // 16 // टीका-हवे न्यां एवं भीमसेनना मुखमांथी सांभळ्युं के तात्काळ, ऋष्णसुत जे कोइ प्रद्युम्न तेतो, धर्म जे युधिष्टर तेमना मंदिर प्रति गति करे छे. 16 ॥श्लोक॥ युधिष्टिरश्चनकुलोअर्जुनोसहदेवक : पांचालीचैव कुंतीचसर्वधर्मस्य / मंदिरे // 17 // टीका-हवे ते ठेकाणे तो, युधिष्टिर, नकुळ, अर्जुन, सहदेव, पांचाली जे द्रुपदी,तेथकी अनंतर कुंता,सर्व बेशीने वातो करयां करेछे,अने सुभद्रा जे प्रद्युम्ननी फोई तेतो आघां पाछां खशी जाय छे. 17 ॥श्लोक // ज्ञात्वाप्रद्युम्नमायातंसुभद्राससुतानृप // भीमसेनस्कसदनेडांगवार्थ / 34 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मतानृप // 18 // टीका-प्रद्युम्नने प्रावतो जाणीने सुभद्राजी तेतो पोताना श्रनिमन्यु पुत्र सुद्धां, भीमसेनना घरने विशे ज्यां डांगवने राख्यो छे, ते ठेकाणे नेगां बेसतां हवा. 18 ॥श्लोक। प्रद्युम्नचैवदृष्टाचधर्मपुत्रोयुधिष्ठिर : अर्जुनश्चैवनकुलोमिलित्वास्थित मासने // 19 // टीका-अने युधिष्ठिर, अर्जुन, सहदेव, नकुळ तेतो प्रद्युम्नने जोइने एकबीजाने आलिंघन करता सता शुभासने बेसारे छे. 19 लोक॥ अन्योऽन्यकुशलंप्रष्टाप्रोवाचक्रष्णनंदनः॥ युधिष्ठिरंयथातथ्यं नीमसेनसनाषणं // 20 // टीका-एकबीजाने अंन्योअन्य कुशलता पुछीने, कृष्ण नंदन जे प्रधुम्न तेतो युधिष्टिरने केहे छे के भो धर्मराज आजतो मने भीमसेने वदु। भयभीत करी नांख्यो छे. 20 ॥श्लोक // उच्चाटनंडांगवस्यकथितंधर्मनंदनं प्रोवाचबांधवानाजाष्णिविग्रह। कातरः // 21 // टीका-हे धर्म नंदन भीमसेने डांगवने शरण राख्यो, तेणेकरिने / कृष्ण सुदां यादवोने त्रास पड्यो छे, जे हवे शुं करवं, पांडवोने आ रीत करवी | न घटे, कारण के ए आपणा संबंधी ठरवा माटे मने मोकल्यो छे, एम सांनळी युधिष्टिर कुंता माता प्रति बोले छे. 21 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. ॥युधिष्ठिरउवाच॥ हवे युधिष्ठिर कुंता प्रत्ये शुं बोलता हवा; लोक॥ शृणु अ. 35 देवियथान्यायंदेयोवैडांगवानृपः नकुलंप्रेरयमातीमतुविनिवारयेत्॥२२॥ टीका-हे देवी हे मात पारं यथा न्याय वचन तो ए छे के प्रा डांगव राजाने न राखवो, माटे करीने नकुलने त्यां मोकलो जे भीमने वारिने समजावे. 22 ॥श्लोक॥ एतावदुक्तावचनंनकुलःप्रेरितोनप // आगतोभीमसदनेक्रोधयुक्तंद दर्शतं // 23 // टीका-हे जन्मेजय, ए प्रकारे धर्म राजानां वचन सांनळीने कुंताए नकुलने प्रेरया सता भिम पासे आवे छे तो माहा क्रोधरुप भिमनां लोचन / जोइने अत्यंत भय पामतो हवो. 23 ॥श्लोक॥ मनसिभयमापन्नोनकुलोह्यब्रवीद्वच // नदेयोडांगवोभ्रातर्भत्रिधर्मों विनश्यति // 24 // टीका-नकुळ तो एवो नय पाम्यो के श्रा समय भिमसेन मारो घाट घडी नांखशे एम समजिने एन केहेवू हाये हा करेछे अने केहे छे के हे भ्रात डांगव राजाने क्रष्णने शरण करीए तो श्रापणो क्षविनो धर्म नाश थइ जाय, माटे करीने तेने ना आपवो. 24 ॥श्लोक॥ एतावदुक्तानकुळोभीमपार्थेनिवोशितः प्रद्युम्नोवचनंप्राहधर्मपुत्रं | युधिष्ठिरं // 25 // टीका-एवां वचन नकुळ कहिने भीमसेननी पासे बेसी रेहेतो हवा, 35 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अने तेने आवतां वार लागी तेथी प्रद्यम्नजि अकळाइने धर्म प्रति बोले छे. 25 ॥प्रद्युम्नउवाच॥ प्रद्युम्न शुं बोलतो हवो; ॥श्लोक // नायातोनकुलोतात सहदेवंतुरेय युधिष्ठिरस्यवचनात्सहदेवस्ततोगतः // 26 // टीका-हे तात हे धर्मराज नकुळ तो न अाव्या माटे सहदेवने प्रेरो एम केहेतामां सहदेवजी नीम पासे गति करे छे. 26 लोक॥ दैवज्ञेनहदिज्ञातंभीमोनमुंचतिनृपं॥ एतनिश्चयमाऋत्यंगत्वाभीमंवचो ब्रवीत् // 27 // टीका-सहदेव दैवज्ञ छे तणेकरनि पोताना हृदयमां चिंतन करे छे के कोइ काले भीम शर्ण राखेलाने मुके एम नथी एवो निश्चय करताथका भीम पासे जइने बोले छे. 27 सहदेवउवाच॥ सहदेव भीम पासे शुं बोलता हवा; ॥लोक॥ सर्वक्षत्रिपणं भ्रातरक्षितंवायुनंदन // तवसाकंयदून्संख्येयुद्धकुर्वेनराधीपः // 28 // टीका-हे श्रात तमे बदुल क्षत्रि धर्मनुं रक्षण करयुं छे, कारण के अनाथने शरण राख्यो, परंतु मने एटलं जावि सुजे छे के तमारी साथे यादवो अत्यंत युद्ध करो. 28 लोक॥ एतावदुक्तामाद्रीजस्थितोभीमस्यमंदिरे॥ प्रद्युम्नःप्राहनायातोकुंति प्रेरयवायुजं // 29 // टीका-एवां वचन कहीने माद्रीना सुत जे सहदेवजी ततो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. भीमना मंदिरमां बेशी रहे छे, विचारयुं के आपणे जो पाछा जइशुं तो सारु अ. 36 नरसु बोलवू पडशे, एटलामां वार लाग्याथी प्रद्युम्न युधिष्टिरने केहे छ, रे तात 8 सहदेव ना आव्या, वखत छे भीम साथे लढा थइ दशे माटे कुंताने मोकलो जेणे करीने भीम झट मानी जाय. 29 ॥युधिष्ठिरउवाच॥ युधिष्टर कुंता प्रति बोलता हवा; ॥श्लोक // गच्छमात यथातथ्यंभीमंतुविनीवारय / / वृष्णीनांपांडवानांचवैरंचैवभविष्यति // 30 // टीकाहे मात तमे जइने जे ते प्रकारे नीमने वारो, जो ए का नहीं माने तो पांडवो अने यादवोने अपार वैर बंधाशे. 30 लोक॥ प्रस्थितापुत्रवचनात्कुंतिभीमस्यमंदिरे दृष्टतोश्चैवपांचालिगतामातरम ब्रवीत् // 31 टीका-सदपुत्रनां वाक्य कुंता माता सांनळीने, भीमना मंदिर प्रत्ये गति करे छे, एटलुंज नहीं पण तेमनी पाछल पाछल द्रौपदी पण प्रवर्ते छे. 31 द्रौपदीउवाच॥ द्रुपदी कुंता माता प्रत्ये बोलतां हवां ; ॥श्लोक। शृणुतांवचनं / मातसुभद्रापुत्रसंयुता डांगवार्थशरीरंचत्यजतिससुतानृपः // 32 // टीका-हे मात तमे जो आग्रह करने वारशो तो सुभद्रा एना पुत्रने लेइने बळी मरशे एवू पण करयुं छे, माटे डांगवर्नु रक्षण करचा विना चाले एम नथी. 32 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक। मावारयभीमसेनंमाहापापंभवेत्तव // श्रुत्वावाक्यंतदाकुंतीभामंप्राप्ता वदेत्वच // 33 // टीका-माटे करीने हे मात तमे वारशो तो ए पातिक तमने वळगशे, एवां वचन द्रुपदीनां सांनळीने कुंताजी भीम प्रति बोले छे. 33 ॥कुत्युवाच॥ कुंताजी भीम प्रति शुं बोलतां हवा; ॥श्लोक॥ शृणपुत्रमहाबाहो धन्चकर्मकृतंशुभं अनित्यंशरीरंपुत्रतत्रकापरिवेदना // 34 // टीका-हे बाप माहारा बुद्धिवान् पुत्र, यादवो साथे आपणे घणुं हेत छे, परतुं जो सुभद्राये डांगव साथे बळी / मरवानुं पण करयूंछे, एज हेतुथी तुं शुभ क्रत्य कर छे, तेनुं रक्षण न थाय तो श्रा शरीर तो अनित्य छे, तेहेनी वेदना न राखतां क्षत्री, पण राख्य. 34 . श्लोक। कुरुष्णिसमंयुदंशोभनंचनविष्यति।एतावदुक्त्वावचनंस्थिताकुंतीच द्रौपदी 35 // टीका-हे दीकरा यादवो साथे युद्ध करच, ताहारो जय थशे, एवां वचन केहेताथकां एयपण बेशी रहे छे. 35 ॥श्लोक // प्रद्युम्नोतंचप्रोवाचधर्मपुत्रयुधिष्ठिरं नायातासर्वएतेचसमुद्रेनिम्नगा यथा // 36 // टीका-प्रद्युम्न युधिष्टिरने केहे छे के हे धर्मराज, आतो सद् त्यांने त्यां रह्यां, जे रीते नदीओ समुद्रने पामीने फरी ठेकाणे ना आवे, एवो न्याय वत्तैछे / ॥श्लोक। अर्जुनोप्रेरणीयोवैभामंतुविनिवारयत्॥श्रुत्वाप्रद्युम्नवचनंअर्जुनोवाक्य | For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. मब्रवीत् // 37 // टीका-ए हेतु माटे हे यूधिष्टीर बाप अजूनने मोकलो, जे भीमसेनने अ. 37 समजावे, एवां प्रद्युम्ननां वचन सांभळीने अर्जून बोलेछे. | श्लोकासक्रोधीभीमसेनोवैअहंचैवतुताद्रशः॥डांगवंतुहनिष्यामिनात्रकार्याविचारणा त्॥३८॥ टीका-अरे भाइ तुं मने मोकलछ, परंतु एभिमसेन अत्यंत क्रोधी अने श्राडा बोलोछे, माटे महाराथी ए सदन थशे नही, ढुं पण एना सरखो तिक्षण थइने डांगवनो घाट घडीश, ए वाते का विचार न करशो. ॥श्लोक। एतावदुक्तासंन्नरोअर्जुनोगतवान्नृपंतदाचद्रौपदीनारीसन्मखंचैवमाग ता॥३९॥ टीका-एवां वचन कहेतां सतां अर्जुन पण भीमना सदन प्रति गति करछे, ते समयमां द्रौपदी नारी वेगळे समीप आवीने बोलेछे. प्रोवाचअर्जुनंवाक्यंपांचालीप्रेमवल्लभा॥टीका-प्रेमवल्लना एवी जे कोइ पांचाली। तेतो अर्जून प्रति नम्र वाक्य बोले छे. द्रौपदीउवाच // द्रौपदी अर्जून प्रति शुं बोलती हवी. ॥श्लोक // कुर्वकिमुद्यतोनूत्वाडांगवंमाविमोचय // पत्नी चभवता राजन्पुत्रयुक्तानराधिप॥४०॥ टीकारे स्वामीनाथ शो उद्योग करवा आव्या, डांगवने || ना मुकावशो, अने जो मुकावशो तो सुभद्राए अने अभिमन्युए पण लीधेलंछे.॥४०॥ | ॥श्लोक॥डांगवार्थत्यजेत्प्राणान्पुत्रोतेमृत्युमाप्ससि॥श्रुत्वासद्रौपदीवाक्यंअर्जुनो 37 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नितवानहदि॥४१॥ टीका-डांगवने जो भीमसेन शरण नहीराखे तो, डांगवने अर्थे अनिमन्यु पोतानी मा सुद्धां प्राण त्याग करशे, एवां वचन द्रौपदीनां सांभळीने ते अर्जूनतो हृदयमांभयभीत थइ जायछे. ॥श्लोक॥ श्रागतोनीमसदनेनमस्कत्यस्वबांधवंप्रोवाचप्रेम्णावचनंभीमसेनेनरा धिप॥४२॥ टिका-भयभीत थया थका नीमना सदने आवीने नमस्कार करीतो हवा, अने तदनंतर भिमसेनप्रति प्रेम पूर्वक वाणी बोलेछे. अर्जुनउवाच अर्जुन भीम प्रतिशं बोलता हवा. ॥श्लोकानदयोडांगवोनिःकि किंकरिष्यतिरश्नयःद्राद्यागौरीनाथोवैसंगरेयदिजायत॥४३॥ टिका॥ हे भ्रात आपणे तो डांगवने ना आपवो, क्यम वारु ए यादवो शुं करवानाछे? विना अपराधे एनी अ श्वनी लेवी धारेछे. ठीकछे एमनी सहाय करवाने इंद्र महादेव संग्राम करशे तो शुं थवानुछे. श्लोक एतावदुक्त्वाावचनंअर्जुनोनकुलःसमः।कौंताचद्रौपदीराजनस्तदाप्रद्युम्नम ब्रुवन्॥४४॥ एवां वचनथी भीमना मंदीरने विषे अजून नकुल सहदेव कुंता द्रौपदी / संपेछे, एटलामा भिम उठीने युधिष्ठिरना मंदिर प्रति आवतो थको प्रद्युम्नने वच न संनळावेछे. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org डाम. श्लोक ॥गछगछदारवत्यांभवतांयादिरोचतेनदेयोडांगवोराजाशरणंयदिरक्षितः। अ. 38 45 // टीका-जाजा द्वारकांमां नाशिं जा, ताहारी रुचिमां आवे तेम करय, ए डांगवने 9 तो में शर्ण राख्योछे, तने सुंपवानो नथी.४५ ॥श्लोक // जयोवाअजयोवापिनजानेकिंभविष्यतिश्रुत्वावाक्यंपांडवानांप्रद्युम्नोह दिदुःखितः॥४६॥ टिका॥ जय थशे वा अजय थशे, ज्यम थवानुं होय त्यम थानो,ए वां पांडवोना वचन प्रद्युम्न सांभळीने मनमां खेद पामि जायछे. ॥श्लोक।क्रोशेनरथमारुह्यप्रद्युम्नोद्वारकांप्रति॥श्रागतोवायुवेगेनप्रद्युम्नोसुतसार थिः॥४७॥ टीकातदनंतर ते प्रद्युम्न तो, पोतानो रथ जोडावीने नूख्यो तरश्यो, द्वारकांना मारग प्रति गति करेछे, एटलुंज नही पण थोडा दिवसे द्वारकां पोंचि जायछे. इतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्यानेप्रद्युम्नप्रतिगमनोनामाष्टमोऽध्याय:८ इतिश्रीत्त / टीकायां रैव कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधर विरचितायांअष्टमोऽध्याय // 8 // वैशंपायनउवाच॥ वैशंपायनमुनि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा. श्लोकोजन्मे जयमहाराजप्रद्युम्नोग्रहमागतःसभायांसंस्थितासर्वेटश्नयोयेबलादयः॥१॥ टिका॥ हे जन्मेजयमहाराजप्रद्युम्न फीकुं म्हों लइने पोताने घेर अाव्या, अने झां बळदेवने For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org आदि लश्ने जादवोनी सनां नरइछे, त्यां गति करता हवा. ॥श्लोक। गत्वाक्रोधेनवचनंप्राहरुक्मणीनंदनः पितरंस्वंविनिंद्यायपांडवामर्षविह लः॥२॥ टिका।सभाना मध्ये जइने अत्यंत क्रोध युक्त पोताना पितरनी निंदा करवा लाग्या, जुवो तमे पांडवोने घणा चढाव्या तेमा मर्ष युक्त थइ गयाछे. प्रद्युम्नउवाच॥ हवे प्रद्युम्न पोताना पिता प्रत्ये शुं बोलता हवा. ॥श्लोक॥ भ वतामानितातातकोनजानातिपांडवान् // कर्मचकिशंयेशांकौरवामानतिासदा // 3 // टिका॥ोहो आज सुधी पांडवने कोण ओळखतुं, तमेज मानीता कर्याछे, एमनांक त्य केवांछे ते हवे जणाशे बिचारा कौरवने सदाय अमानीताराखोछो. श्लोक। कपिनामानितोवंक्षोगिरिरोहप्रंकुर्वतिअस्माभिर्मानितायावत्तावत्स्पर्दा कतान्पैः ॥४॥टिका-कोइपुरुष वानराश्रोने मान आपे तारे वानराओ पर्वत उपर कु दीने प्रसन्न रहे, एज रीते आपणे मानीता कर्या तो अाज सामा थवं इच्छेछे.. ॥श्लोक॥अपांडवींमहींकुर्मोवयंतातयथाकुल॥महतिअपमानंतुनाशंयातियवह | ॥५॥टिकाहे तात हे पिता मने एटलुं खोटु लाग्युं छे के, जो तमे अपांडवी प्रथ्वी करो, तथापि मने खेद नहीं अावे, कारण के मने अपमान घणुं कर्युछे, ए सघर्बुजा दवोने लांछनछे. 5 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. ॥श्लोक। पुत्रस्यवाक्यमाकर्ण्यनोवाचगरुडद्वजः॥क्रोधेनप्यपमानस्तुप्रोवाचरोहि अ. 39, पीसुतः॥६॥ टिका। पुत्रनां ए प्रकारे वाक्य सांभळीने गरुडद्वजगम खै गया, अने 9 रोहिणीना सुत जे बळनद्रजी ततो प्रद्युम्ननुं अपमान जाणीने महाक्रोधातुर होता हवा. // 6 // बळभद्रउवाच // बळभद्रजी यादवो प्रति बोलता हवा. ॥श्लोक॥ पांडवाश्चमहा बाहोसदासंग्रामभीरवः।कौरवैीडितास्तावदिप्रस्थंसमाश्रिता // 7 // टीका-ओहो पांडवनो छक वधी गयो, अने सदाय शुरापणु बतावेछे, खरुछे ज्यारे एम सत्ता दर्सा वेछे तो, जे समय कौरवोए पिडया ते समयना ईंद्र प्रस्थमां क्यम नाशी पेठाछे. ॥श्लोक॥ ततोभीमोमयायुद्धेयनडांगवरक्षितः॥क्रतवर्माऽवदत्तावन्नकुलोमेटतोयु धि // 8 // टीका-हवे तो बळभद्रजी कहछे महारेज भीम साथे युद्ध करवू, कारण के डॉ गवने राख्यो, एम कहेतांज क्रतवर्मा बोली उठया जे नकुळ साथे हूंज युद्ध करवानोछु | एरीते साम सामी प्रतिकात्रो करी लेछे. श्लोक।सात्याकिनासहदेवोत्रकरणयुधिष्टिरः // नोवाचदेवकिपुत्रोपांडवानांप्रीयोहरिः // 9 // टीका-सात्यकी कहेछे हूं सहदेव साथे लढीश, अक्रूर कहे छे के हुं यु-1 धिष्ठिर साथे लढीश, एम मांहीयो माही बोलेछे पण देवकीना पुत्र जे श्रीक्रष्ण तेतो 39 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir काइ बोलता नयी, जाणे छे के आभाविशुं थइ गयुं, म्हें तो आज सुधी पांडवोने प्रिय गण्याछे.॥९॥ श्लोक। संनद्धाःवश्नयोराजन्नृपैःकांचनसुप्रभैःप्रश्वैपारित्तिश्चैवकरीभिजनमेजय॥ // 10 // वैशंपायन कहे छे के हे राजन ए प्रकारे अन्योन्य एक बिजाना सामु जोड्ने सू वर्णमयछे प्रभाकांति ते जेनी एवा रथ अश्व ने हाथीभो तैयार कराविता हवा.॥१०॥ ॥श्लोक॥ सर्वएतेमहाराजनित्रतान गराबहिःज्ञातंतुपांडवैस्तावद्यादवानांरणोद्य मं॥११॥ टीका-हे महाराज ए प्रकारे सर्व यादवो पांडवो साथे संग्रामकरवाने अर्थनग रथी बहारय निसर्या, एवात पांडवोए जाणी तेथी सर्व मांहो माह्य विचार करवा लाग्या. // 11 // ॥श्लोक॥ विचारकततस्तेरात्रौतेपंचपांडवाः॥रणेकोबांधवोपुत्रःपिताचमातुलो यथा // 12 // टीका-रात्रिने विशे पांचे पांडवो विचार करेछे रे बांधवो ज्यम थवार्नु ह तुं त्यम थयुछे, हवे तो रणने विषे, बन्धु वर्ग पुत्र, मातुलेय ए रीतना जे संबंध ते क दापि न गणवा, एक न्यायपक्ष वा जवो, ए रीते क्षत्रिोना धर्मछे. ॥श्लोक // मातुलेयश्चक्रष्णश्वसंबंधनचपश्यतिसस्त्रियुद्धकुशलावयंसर्वेगुरोस्त / पात् ॥१३॥टिका-अर्जुन अभिमन्युने कहेछे रे पुत्र, कृष्ण तदारा मामा थायछे, परं / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डाग. तु ए संबंधनी प्रीति संग्राम समय न राखवी, आपण सउ गुरुनी सेवा वडे करीने यु अ. ४०द कुशल छइए, पछी ज्यम थवा काळ होय त्यम थयां जायछे. एनो शोक क्षत्रिने कदा | 9 पिन करवो. 13 ॥श्लोक // सुदर्शनस्यविद्यावैनाधितागुरुणातदा ॥देववादानवंवाथचक्रंछेदतिन मृषा // 14 // टीका-भीम कहे छे रे भाइयो, सर्व विद्यामां आपण कुशळ थया परंतु सु दर्शन चक्रने जितिए एवी विद्या कोणे अध्ययन करी नथी, अने ए चक्रतो केवूछे के देव दानव राक्षस सर्वनो नाश करे एवंछे,१४ ॥श्लोक // सुदर्शनस्यसीक्षार्थकोउपायश्चक्रियतांप्रोवाचधर्मराजोवैसहदेवंतथा नृप // 15 // हवे अापणे सुदर्शन चक्रने जितवानो शो उपाय करवो, एम भीम वाणीबो लेछे. एटलामां धर्म राजा सहदेव सामु जुवेने, युधिष्ठिरउवाच॥ हवे युधिष्टिर सहदेव प्रति शुं बोलता हवा, ॥श्लोक॥ दैवज्ञत्वं यथाभ्रातर्वदनोविजयोभवेत्॥प्रायशोचक्रजैत्रंचअस्त्रंकिंप्राहमाद्रिजः॥१६॥ टीका-हे। सहदेव भ्रात, तमे तो दैवज्ञगे, कोण उपायथी आपणो विजय थाय, एवात मने स मजावो, हे माद्रिना पूत्र आपणने एहवं अस्त्र क्याथी मळे के , चक्रने जिति शकीये.॥१६॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir सहदेवउवाच॥हवे सहदेव शुं बोलता हवा.श्लोक। हरौवैसेवनीयश्चयेनशांति | र्भवेन्नृप॥सहदेववचःश्रुत्वाभीमोकैलासमागमत्॥१७॥ टीका. हे नृप, हे युधिष्टि | र,चक्रने जितवानो तो एक उपायछे, जे भिमसेन महादेवनुं पाराधन करे, ते थकी कांइ वस्तु प्राप्त थशे. एवां वचन सांभळीने तात्काळ भीम कैलास प्रति जतो हवो. ॥श्लोक // तवगत्वाजगन्नाथदेवदेवमहेश्वरं तुष्ठावभीमोभक्त्यावैगौरीशंकरमेव च // 18 // टिका॥ त्यां जइने सुंदिर नृत्यवडे करीने शंकरचें मन रंजन करी दिधु, ते ज समय महादेवजी भक्तिभाव वडे प्रसन्न होता हवा. श्लोक ॥प्रसन्नोऽभूतदादेवःप्रोवाचवायुनंदनंवरंब्रूहिवरंब्राहियनशांतिर्भवेत्तव // 19 // टीका. प्रसन्न थश्न भीम प्रति वाणी बोलेछे, रे नृप तुं मारी पासे वर माग्य वर माग्य हूं तारा भाव वडे करीने संपूर्ण प्रसन्न थयोबु.१९ भिमउवाच॥भिमसेन महादेवजी प्रति शुं वोलता हवा. श्लोक // सुदर्शनजैत्र मस्त्रंचदेहिमपार्वतिपते॥दत्तागदाचमहतीचक्रवारयतिनृप // 20 // टिका हे पार्वति पते, जो तमे मने प्रसन्न थया हो, तो तो सुदर्शनने जितु, ए रीतनुं कांइ शस्त्र प्रापो एवं कहतांज शंकरेगदा पापी. जेणे करीने चक्र वधी शके नही. श्लोकागतोनीमसेनोवैवरंलब्ध्वामहेश्वरात्॥प्रसन्नापांडवाराजनस्वान्स्वां For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग, सर्वसमादिशन्॥२१॥ टिका-महेश्वर थकी वर पाम्यो एवो, अने महोटी मळीछे ग 41 दा ते जेने, एवो जे कोइ भीमसेन तेतो पोताना पूरमध्ये श्रावतो हवो, तेने जोड्ने पां 9 डवो प्रसन थया थका पोत पोतानां आयुद्ध संभाळी राखेछे.२१ श्लोक। वैराटगत्तरंचैवद्रुपदंससुतंनृपंपन्यांश्चैवतुभूपालान्कौरवान्पत्रमालिखन् 22 // टिका-तदनंतर पोतपोताना संबंधीत्रोने पत्र लखेछ, प्रथमतो वैराटमां उतरा कुंवर हस्तिनापुरमां दुर्योधनादि पांचाळ देशमां द्रुपद एम इष्ट मत्रिोए सहवर्तमान सर्वने लखी जणवेछे; एटलुज नही पण क्रश्ननी साथे लढवा सर्वने तेडावेछे. ___श्लोक // कृष्णेनलिखितंपत्रकौरवान्जन्मेजय // उभौगतौएकालंसेवीकृष्णध मयोः॥२३॥ टिका // वैशंपायन मुनि जन्मेजयने कदेछे के हे जन्मेजय, ए रीते कृष्ण पण पत्र लखीने कौरवादिकने तेडावेछे, ए बन्नेना सेवक एक कलाविच्छिन ह स्तिनापुरमा पहोंचे, अने एकज समयमांपत्रधातराष्टरने आपेले. 23 ॥श्लोक॥ तदाप्रोवाचसदसिधार्तराष्ट्रीस्वबांधवान्॥ हर्षेणमहतायुक्तोक्रश्नपांड वविग्रहात्॥२४॥ टिका-अत्यंत क्रष्ण पांडवनुं युद्ध जाणिने हर्ष पाम्यो, एवो जे दुर्योधन तेतो पोताना बांधवोने पत्र वांची संभळावे.२४ दुर्योधनन०॥ हवे दुर्योधन सभा मध्येशुं बोलतो हवो.॥श्लोक॥ करिष्यामो // 8 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वयंकावैगतिंगांगेयभानुजपवंऋष्णस्यधर्मस्यएककालंसमिपतुः // 25 // टिका-हे गां गेय हे नीष्मपिता बाप हे भानुज हे भाइ करण हवे आपणे शंकरर्बु घटे . क्रश्नअने धर्मराजानुं पत्र एक कलाविच्छिन एकज समयमा श्राव्यु बे. ॥श्लोक // ब्रूहिवाक्यंयथातथ्ययेननोसुखमस्तिच॥सुयोधनवचः श्रुत्वाभीष्मो वाक्यंतदाब्रवीत्॥२६॥ टीका-जेणे करीने आपणो कोइथी विरोध न थाय, एरीते यथा न्याय ज्यम घटे त्यम शुं करीशुं, एवां वाक्य दुर्योधननां सांभळीने भिष्मपिता बोलेछे.॥२६॥ भीष्मउवाच ॥भीष्मपिताशुं बोलता हवा, // श्लोक ॥संबंधोयादवैःसाकंपांड वानोस्वगोत्रिणःनैकस्यपक्षोकर्तव्यःरणेकस्यापिकौरवः // 27 // टीका-अरे दिकरा त्रा पणे गादव साथेय संबंधछे, एटलुज नही पण पांडवोये स्वगोत्रीछे, माटे कोइनो प क्ष आपणे करवो नही एम घटे छे, ॥श्लोक॥ अस्मानिर्दष्यनियंचयुद्धचसमरांगणेनविष्यतिनविष्यंचहौसमौकृष्णपां डवौ॥२८॥ टीका-अापणे तो संग्रामना समीप रहीने बेनुं युद्ध जोर्बु ज्यम थनार हो य त्यम थाय,कृश्न ने पांडव सरखा गपीये छीये.. ॥श्लोक // इत्येवंनिश्चयंक्रत्वादूसौंसिक्षितौनपगतौदूतौयथातथ्यवातीतांश For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 42 चतुःक्षणात् // 29 // टिका-ए प्रकारनो कौरवोये मन साथे निश्चय करीने, बंन्येना अ. दुतने शिखामण दिधी. अने ते दुतोये बन्नेने त्यां एजरीते संभळाव्युं. इलोक।पांडवैःसैन्यरचनाक्रताखांडवप्रस्थकोवादित्राणांमहानादोहयहेयपश्च भारत॥३०॥ टिका-ए थकी अनंतर पांडवोये पोतानुं सेन्य वधारीने, अत्यंत रचना करि दिधि, अने खांडव प्रस्थ वनने विषे, वादीत्रनानादे सहित हस्तीहयपेदल श पगारीने महाहर्षे अाव्या. 30 श्लोकोतदारथैर्वाजिभिश्चकारभर्जनमेजय ॥त्वरितंनिस्रतंसैन्यंईंद्रपस्थाद्विशे षतः॥३१॥ टिका-अने वळी हे जन्मेजय, हाथी घोडा रथ, सुंदिर प्रकारे ज्यम घटे त्यम उतावळा ईंद्रप्रस्थथी खांडववन प्रति वह्यां करेछे. 31 इतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्याने नवमोऽध्याय :9 इतिश्रीतहीकायां रैक कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधर विरचितायां गामोटगामिनीव्याख्यायां नवमोऽध्याय : 9 ___॥वैशंपायनउवाच॥ वैशंपायन मुनि जन्मेजयने कहेता हवा. // श्लोक॥ शृ णुराजन्प्रवक्ष्यामिक्रश्चनयत्क्रनपगत्वाच खांडवप्रस्थंवाक्यमतदुवाचह // 1 // // टिका।हे राजन तुं श्रेक चित्त वडे करीने सांनळय ढुं तने संनळावं कृश्न- सै |न्यपण खांडवप्रस्थ वनमां आव्युं, त्यां आगळ कृश्न परमात्माये शुं कर्यु, अने केवी 42 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाणी बोलता हवा. ॥श्रीकृश्नवाच // श्रीकृश्न पोताना भ्रातृ वर्गने शुं कहता हवा;॥श्लोक॥शृणु तांभ्रातरःसर्वेकोनजानातिपांडवान् नीमसेनंचकोजेतिवायुपुत्रंमहाबलं 2 टिकान्हे भ इओ तमे सांनळो, कोई हजी पांडवोना पराक्रम तमे नथी जाणता,तेमां वळी वायु पत्र नीमसेन तो महा बळवानछे, कोइ एने जीति शके एवं नथी, एम मर्म वाक्य बोलेछे.२ ॥श्लोक ॥बकोहतोमहादैत्योहेडंबोराक्षसोहतःमत्तनागसहस्त्रस्ययस्वदेहेमहाब लं॥३॥ टीकारे जुवो पूर्वे एमणे बक अने हेडंब राक्षस मार्योछे, अने ज्यारे दुर्यो धने विष खवरावाने जळमां नाखि दिधा, त्यारे पाताळमां जैने सदस्रफणाना नागने जीत्या एवो देह बळवानछे. ॥श्लोक। कीचकाघातितायेनएकैकस्तुपराक्रमैःक्षुधावैयदिजायेतधूल्याहारंप्रकूर्व ति॥४ टीका.बिच्यारा किचक सोभाइनो घाण वाळी नाख्यो. एवा पराक्रमी, अ ने वळी सूधा लागे तो धूळ पण फाकी जाय, एमना पराक्रममां शी मणाछे. ॥श्लोक॥ सोवैभीमोमहाकायो कस्माद्युद्धोजयोभवेत् // अर्जुनस्यापिसमरकेति टंतिनृपात्मजाः॥५॥ टीका-हे यादवो, हे भ्रात वर्गो, एवो नीमतो महोटी कायावा - - For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. ळोछे,एटलुज नही पण अर्जुनना सामो संग्राममा कोइ राजानो पुत्र उभो रही शके || एम नथी संभवतु. ॥श्लोक। हरश्वतोषितोयेनतालुबिंबाहतापुनःकोवेत्तिशक्रपुत्रस्यसंगरंभ्रातरोम म॥६॥॥टीका. जेणे महादेवजीने तुष्मान कर्याछे, एटलुज नही पण ताळूबिंबादि दैत्योने मार्याछे, हे महारा भातृवर्गो ए शक पुत्र, पराक्रम तमे कोण जाणोछो. लोक॥ सहदेवसमोराजन्नकश्चित्समरांगणेनकुलोपिमहावीरोमहाबलपराक मी॥७॥ टिका. अने वळी सहदेव समो, अने नकुळ समो, संग्रामनेविषे पराक्रमी कोइ जाण्यो नथी, एतो बे बळवान योद्धाछे. 7 ॥श्लोक // धर्मपुत्रोमहाराजोपांडवेयोमहारथःपांडवानपुरोद्धामवयंसर्वेऽल्पप्रा क्रमाः॥८॥ टीका. अने वळी धर्मपुत्र जे युधिष्ठिर तेतो, महा शुरा अने महारथी छे, प्रेम पांडवोनुं बळ वधी पडयुंछे, अने आपणतो सर्वे अल्पपराक्रमी दसैंयेछ, ए म्होटें आश्चर्यकारक भासेछ. 8 ॥श्लोक॥ पांडवाश्चमहावीराद्रोणाचार्येणशिक्षिताःवेपथुश्वशरीरेमेजायतेयदुपुंग व॥९॥ टीका-हे यदुना पुत्रो, पांडवोनुं विरपणु दोणाचार्य विद्या नणावीने वधा री दिधुछे, तेणे करीने महारा शरीरे वेपथु जे कंपारो तेतो अत्यंत थयां करेछे. का 13 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रण के शीरीते जीतिशुं.९ ॥श्लोक॥ क्रश्नस्यवाक्यमाकर्ण्यबलभद्रोऽत्यमर्षित उवाचवचनंनूयोगर्वेणजनमे जय // 10 // टीका॥हे जन्मेजयराजा, ए प्रकारे बळदेवजी कृष्णनां वाक्य सांनळीने महा गर्वे भरायला थका यादवो प्रति वाणि बोलता हवा. बलभद्रउवाच हवे बळभद्र शुं बोलता हवा, ॥श्लोक // त्वयाचरक्षितायावत्सदा स्तेकुंतिनंदनाःसुनद्राहरणेचाहंसंग्रामेविनिवारितः॥११॥ टीका-हे क्रश्नतेंज सर्वदा काळये कूताना पुत्रोनुंरक्षण कर्या कर्युछे, निकर आज पांडवो वधी न पडत, जो सु। नद्राना हरणमा ढुं संग्राम करतो, ते समय तें मने वार्यो नहोततो श्रा अवसर पांड वो बळ न पामत. ॥श्लोक // मोदकाविषसंयुक्ताभोजितापांडवैर्यदातदाचरक्षितास्तावत्त्वयासंग्राम भारुणा // १२॥जे समय विष युक्त मोदक कौरवे पांडवने खवराव्या, ते समय प ण ते रक्षण कर्युछे, तो आज ए तहारी साथे संग्राम करे. श्लोक।दुर्वासाश्चागतोयावद्वनसंवसतांसतां ॥शापतोरक्षितास्तावत्पांडुपुत्त्राऽ ल्पमेधसा॥१३॥ टिका॥ एटलुज नही पण जे समय पांडवो वनमां वस्ता ते समय // त्यां दुर्वासा मुनि श्राव्या, अने तेमने आदरसत्कार न कर्यो, ए कोपने लीधे शाप For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie डाग. || देता मुनिने युक्तिथी अटकाव्या, एवा तमे, अल्प बुद्धिवान पांडवोर्नु रक्षण करता | अ, 44 | फरोछो. 13 ॥श्लोक // लाक्षागारेत्वयाभ्रातर्सभामध्येचपांडवान् // दग्धंचखंडववनंरक्षिताते पुनःपुनः॥१४॥ टिका॥ हे भाइ तमे पांडवोने माटे थोडो श्रम कर्यो नथी. लाक्षागा रमां बळता उगार्या, अने वळी जे समय खांडव वनमां अग्नी उठ्यो, ते समय प ण तमे रक्षण कर्यु, एम वारमवार लपटायाछो. 14 ॥श्लोक॥ यदाकर्मक्रतंसर्वतदाप्राप्तंचदुष्कतपयसावर्धितेसोवर्धितरंसभक्षति॥ 15 // टिका. ज्यारे तमे एवां एवां क्रत्य कर्या, तहारे तमने आ समय आव्यो छे, तो हवे भोगवी ल्यो, ज्यम कोइ अल्पबुद्धिवान् दूध पाइने सर्प नछेरेछे. तोते विश धर तेने दंश करवू इच्छेछे. श्लोकसिंहभागंयथाद्वांक्षोभक्षतिजातमत्सरःअस्मद्भागोतदाभ्रातपांडवैर्भक्षितो नृप // 16 // टीका. जातमत्सरःनाम उत्पन्न थयोछे, मत्सर ते जेने, एवो जे शिश्राळ ते सिंहनो भाग. वांच्छेछे एज प्रकारे हे भ्रात ए प्रकारे पांडवो आपणो नाग भक्ष क रवो धारेछे. // 16 // ॥श्लोक॥चौरोवैडांगवोराजारक्षितोह्यल्पबुद्धिनिःनवैपितृस्वस्रेयाश्चपांडवा:वै 44 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |रिणःस्मृताः // 17 // टिका. खरुं छे के अल्पबुद्धि जे तणे करीने, प्रेरायला पांडवोए, आपणो चोर डांगव तेनुं रक्षण कर्युछे, एतो आपणा वैरी जणायछे. 17 ॥श्लोक।धन्यास्तेधार्तराष्ट्राश्चडांगवानचरक्षितः॥ त्वंचद्वषंप्रकुर्वाणोकौरवाहित कारकाः॥१८॥टिका. धन्य छे ए सोभाइ ध्रतराष्ट्रना पुत्रोने के जेमणे डांगवने शर्ण न राख्यो, तेना उपर तमे हे नाइ परिपूर्ण देश करेलो छे, पण आज जोताए आपणा हितकारकछे. 18 ॥श्लोक। सहदेवस्तुदैवझोनकुलोबालएवच ॥अत्याहारीसदाभीमोधर्मोधर्मभ्रतां | वरः // 19 // टिका. सहदेव तो देवझछे, बिजी कां अकल जणाती नथी, एम जोतां नकुळमां बाळ चेष्टाछे, अधिक विचार करीये छियेतो, निमसेन अत्याहारी,अने युधिष्ठीरतो महाराजा एना पाठ पुजनथी परवारे एवो नथी. ॥श्लोक॥ पंचमध्येरणेतिष्टेदेकोशक्रसुतोबलःतंचजेतुंरणेभ्रातर्समर्थोहंमहाबली॥ 20 // टिका॥ ए पांच जणामांथी रणमां उभो रहे एवोतो ईंद्र पुत्र अर्जून जणायछे, | अने ते बळवानछे, माटेहे भ्रात एने जितवाने तो हुँ बळवान बळभद्रछु कांइये चिंता न धारण करशो. 20 ॥श्लोक। इत्येवमुक्तावचनंतुश्नीमापबलोनृप // कृष्णोनह्यब्रवीत्किंचिन्नाभ्यनंद | For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग चनारत // 21 टिका. एवां वचन कहीने बळभद्र मनमां हर्ष पांम्यां करेछे, अने है! अ. भारत हे जन्मेजय, कृष्ण कांइ ते समय वाणी बोलता नथी, मौन रहाने सांभळ्यां| 10 करेछे.२१ श्लोक। तावत्तुपांडवाःसर्वेनिस्रताःनगराहिमृदंगशंखभेरीणांहयहेषैश्चनिर्ययु : 22 // तदनंतर ते समयमां नगरथी बाहार निसरीने मृदंग, शंख, भेरी नादे युक्त गजरथ हयारोहण करीने निमेला युद्ध प्रसंगे आवेछे. ॥श्लोक॥ श्रागतास्तत्रगांधारीसूनवोजनमेजयसैन्ययुक्ताश्चराजानोएकभागस माश्रिताः॥२३॥ टीका-हे जन्मेजय ते स्थळने विषे, गांधारीना पुत्र जे दुर्योधनादि क सर्वे सैन्यना समूह, रणनूमिमां आवीने एक भागनी जगोए आश्रम करछे. 23 श्लोक। नगताःपांडवान्मध्येयदुन्प्रतिनराधिपपश्यंतिस्ममहाराजभीष्मेणविनि।। वारिताः ॥२४॥टीका. भिष्मजीये वारेला के एकेनो पक्ष न करवो, तणे करीने युद्ध जोवाना मिषथी, एक नागेरहीने जोयां करेछे, पांडवोना सैन्यमांय नथी जता, अने यादवोनो पक्ष पण नथी करता. 24 ॥श्लोक ॥आकाशेदेवताःसर्वासस्त्रीकाःशंखनिःस्वनाः॥ पश्यंतितत्रगंधर्वानगाना गाश्चभारत // 25 // टिका हे भारत, हे जन्मेजय, ए युद्ध जोवाने माटे, देव गांध || or For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 अप्सरानो कुटुंब सहित, विमानमां बेशीने न्याळेछे, अने शंखनाद थयां करेछे.२५ | ॥श्लोक // सर्वेषांपश्यतांतावद्धर्मराजोस्वबांधवान् // ज्वाचसमरेनूयोवचनंजनमे | जय // 26 // टिका. सर्वना सांभळतां संग्रामने विषे, पोताना बांधवो प्रति वारंवार बोलता हवा. युधिष्टिरउवाच॥हवे युधिष्ठिर शुं बोलताहवा, श्लोक॥ शृणुतांनोनृपाःसर्वेया दवायुधिनिर्भयाः॥येषांक्रष्णोसदारक्षांकरोतिभ्रातरोमम // 27 // टीका. हे राजाओ सांभळो,श्रा यादवो युद्धने विषे निर्भयछे, एटले भय विनानो छे, कारण के कृष्ण जे नुं निरंतर रक्षण करे छे, तेने भय शांनो होय.. ॥श्लोक ॥रणश्चक्रियतांचात्रसर्वैश्चयदुपुंगवान् ॥वदतांविजयोकार्यःयेनस्वर्गेस खंभवेत् ॥२८॥टिका. माटे करीने यादवना पुत्रो साथे एवो संग्राम करो के गमे ते प्रकारे विजय थाय; जितोतो श्रा लोकमां यशछे, एम करतां जो हारशो तो स्वर्गना सुखने मळशो एमां कांइ संदेह नथी. 28 भीमन्वाच॥ एम सांनळीने भीमसेन बोलता हवा.॥ श्लोक // कस्मात्त्वंचमहा राजभयंप्राप्यसिसंग।यादवान्प्रतियोधारंजानिदीमांसदाभटं॥२९॥ टिका. हे धमराज, हे बांधव, तमे संग्राममां क्यम भय पामोछो, यादवनी प्रत्ये लडवाने हूं निरं For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग, तर सुरोछं, कांश चिंता न करशो. 29 46 // ॥श्लोक // किमेतेज्यादवाःराजन्सदासंग्रामनीरवः॥ वनिक्रश्नंसदाचाहंकपटेन श्र | चयुध्यति // ३०॥हे राजन् शुंए ते यादवो सदाय संग्राममां जीति जाय एवाछे | ढुंए कश्मनी वात सर्वे जाणुंछु निरंतर कपट युद्धना करनाराछे. 30 // श्लोक॥राजभ्योभयमापन्नोसमुद्रेशरणंगतःसदानीचकुलंतेषांयदुनापौरुषंकथं 31 // टिका. ज्यारेज्यारे हारिजाय त्यारे त्यारे क्षीर समुद्रमा जश्ने पेसे छे; सदा य एमनुं निचकुळछे, यदुकुळमां पुरुषातन शुं देखोछो. // 31 // .. ॥श्लोक। नधरानचराज्यंचपुरंनदेशउच्यते // ननादीनचराजेंद्रविवाहाराक्षसाः स्मृताः॥३२॥ टिका. एमने कांइ सुंदीर प्रथ्वी नथी खारो पाट द्वारकामां पडी रहे छे जोइये तो संदिर राज्यपण नथी, देश पण नथी, निरंतर दिनपणामां कापट्य करता फरेछे. जेटला विवाह कर्या तेय पण राक्षसी विवाह कर्याछे.३२ ॥श्लोक // किंकरिष्यतितेसर्वेनीमयुद्धप्रकुर्वतिमानयंकुरुराजेंद्रपष्यत्वंममपौरुषं // 33 // टिका. जे समय दं भिम एमनी साथे युद्ध करीश, ए समय ए शुं जितवा नाछे, माटे करीने हे आपणा सैन्यना राजाश्रो, भय मां धरशो, महारा युद्धनुं पुरु पातन जोयां करो. 33 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org ॥श्लोकातदायुधिष्ठिरोराजाप्रसनोजन्मेजय ॥सर्वतावत्सन्नदाश्चजाताश्चैवपर स्परं // 34 // टीका. एवां झां भीमनां वाक्य सांनळ्यां के युधिष्टिर राजा महा प्रस न थइ जता हवा. अने हे जन्मेजय ते समय सर्वे योद्धाश्रो, पोतपोतानां सस्त्रो सा वचते करी देता हवा. 34 इतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्याने संग्राम प्रवेशो नाम दशमोऽध्यायः // 10 // इतिश्रीतहीकायां रैक्व कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधर विरचितायां गामोटगामिनी व्याख्यायां डांगवोपाख्याने रणस्थळ प्रवेशोन्नाम दशमो ऽध्याय : 10 वैशंपायनउवाच॥वैशंपायनमुनि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा ॥श्लोक॥ पंच जन्यतदाक्रश्नोनिनादोच्चैःसदारणेअन्योन्यंचतदाराजवादिवाणिरणेपुनः॥१॥टीका,हे राजन,ते रणसंग्रामने विशे उंचा स्वरवडे करीने पंच जैन्य शंखनो नाद करता दवा, अने बन्ने तरफां वादिनना घोषो काडरने शुरपणु वधवा सरखा वर्तेछे. 1 ॥श्लोक॥ प्रटत्तोशस्त्रसंपातःरथारोहाश्चभारत॥ रामश्चभीमसेनश्चअन्योन्यत्र तिविव्यथुः॥२॥ टिका. अने हे भारत रथे बेग एवा पोतानां शस्त्र तिक्षण करीने ए। क बिजाने लडवा योग्य निरु धारे छे, ए प्रकारे बळराम अने भीमसेन्य अन्य लढे छे.॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग.. ॥श्लोक // सात्यकिधर्मपुत्रश्चप्रद्युम्नोसहदेवकःनकुलोकतवर्माचअक्रूराद्रूपदंप्रति 47 // // 3 // टिका. ए प्रकारे धर्मराजाने सात्यकी, प्रद्युम्न ने सहदेव, नकुळ ने कृतवर्मा | 11 अक्रूर ने द्रुपद राजा परस्पर संग्राम वर्तेछे, ॥श्लोक। पदातिनोपदातिश्चरथारोहारथान्प्रति // अश्ववाराअश्ववारान्अन्यो न्यमभिजघ्नतुः॥४॥टिका. पगे हीडनारा, पगे हीडनारा साथे, रथमां बेठेला रथ | वाळा साथे, गज अश्वे सहीत तेतो गज अश्वारोहि साथे, एम अन्योन्य श्रेक बीजा ने बाणक्षेपण करेछे. 4 श्लोक॥ रश्नीनांवासुदेवोपिपश्यतिरथमास्थितः // पांडवानामर्जुनश्चनकरोति रणंप्रभो॥५॥ टिका- हवे यादवोमां एक वासुदेव अने पांडवोमा एक अर्जुन तेतो रथमां बेठा थका जोयां करेछे, कोइ साथेलढता नथी, 5 श्लोक॥ कौरवाश्चप्रपश्यंतिएकस्थान्यव्यवस्थिताः आकाशेदेवताःसर्वेकोश्नरो हाःपुरस्त्रिय॥६॥ एक स्थलने विशे रह्या एवा जे कौरवो ततो युद्ध जोयां करेछे ,अने स्वर्ग थकी देवगणो पण जोयां करेछे. ॥श्लोक॥प्रोवाचरुक्मणीपुत्रोसहदेवंवचःशृणु॥ कुरुरणंमयासाकंपशत्वंममपौरु |पं॥७॥ टिका- एटलामां युद्ध करतां करतां रुक्मणीनो पुत्र प्रद्युम्न बोली उठेछे के, 47 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रे सहदेव तुंमहारुं वचन सांभळ्य, आ समय माहारी साथे धुद कस्य, अने माहा सं पौरुषत्वपणुं जो, हवे ढुं तने नही मुकु. ॥श्लोक // इत्येवमुक्तावचनंमुक्ताःपंचशिलीमुखाःत्वरितासहदेवेनच्छिन्नामध्येच भारत ॥८॥टीका-एवं वचन मुखथी बोलता थकां, पांच बाण भाथामांथी काढीने क्षेपण करे छे, एटलामां सहदेवजी ते तो, हे भारत, श्रावतांज श्रे बाणने छेदी नांखे // 9 // ॥श्लोक // नखप्रमाणामुक्ताश्चसहदेवेनतंप्रति // चतुर्भिश्चतुरोवाहांनेकेनद्वजमा पतत् // 9 // टीका- अने वळी प्रद्युम्न प्रति सहदेवजी वीश बाण नाखे बे, तेमां च्यार बाणे करीने प्रद्युम्नना रथाश्व पताकासुद्धा पतन थै जायछे. ॥श्लोक ॥एकेनसारथिःछीन्नोद्वाभ्याभग्नोरथश्चसःलग्नाद्वादशप्रद्युम्नंरणादप ससारह // 10 // टीका- एक बाण वडे करीने प्रद्युम्ननो सारथी नाश पामी गयो, बे बाण वडे करीने रथना चुरेचुरा थइ गया, एम बार बाण प्रद्युम्नने वाग्यां तेणे करीने पाकुळ व्याकुळ थया थका,प्रद्युम्नजी रथमांथी हेठळ पडीता हवा 10 // श्लोक // नकुलेनतथाराजनक्रतवर्माचपीडितः पपातमूर्छितोराजन्प्रथ्वरुिधिर || मुहहन्॥११॥ टिका- एज प्रकारे महारणने विशे, हे जन्मेजय राजन, नकुळजीये For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 11 डांग. क्रतवर्मा यादवने पिड्या, अने मूछौंगत थइने पृथ्वी उपर पड्या. सता शरीरथी श्र. 48 रुधिरना प्रवाह चाल्यां करेडे, ॥श्लोक // सात्यकीः धर्मपुत्रेणमूर्गचपातितोरणे // अक्रूरश्वतदाराजद्रुपदाद्गत चेतसः // 12 // टिका- अने बळी रणभूमिने विषे ए प्रकारे सात्यकी यादवने धर्मपु। त्रे मूर्गगत्त कर्यो, अने अक्रूरजी ध्रुपद राजाथी हारय पांमी गया. 12 ॥श्लोक॥ अनिरुद्धेनसहसाह्यभिमन्युश्चपीडितः॥तदाशिखंडिनाकानिरणेच पसर्पितः // 13 // टिका- एक यादवोमां अनिरुद्धना सुरपणाथी अभिमन्यु पिडा पाम्यो, तेने जोड़ने शिखंडीए कानिने हाथे पकडीने पगडयो, हेवं दारुणयुद्ध एस मय होतुं हq. ___॥इलोक॥पदातिनोपदातिनिर्वाहैीहाश्यनाशिता : सर्वेतेयादवानीका भूभ्यांपे तुश्चमूर्षिताः॥१४॥ टिका. अने रणने विषे दारुण युद्ध समयमां पगे पाळा युक्त र | थारुढे यादवो नाशि जता हवा. एम केटलाएक यादवो नूमीमां पडेला मूर्छागत | होता हवा. ॥श्लोक॥ बळवायुजयोयुद्धश्रणुत्वंजनमेजय ॥हलंचप्रनुणामुक्तंभीमस्यापरिना। रत // 15 // दीका.हे जन्मेजय ते समयमां बळदेवजीए वायुना पुत्र भीमसेन तेनुं 48 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir महापराक्रमी युद्ध देखीने हळ मुसळ लेइने नीमसेन उपर मुकता हवा. 15 ॥श्लोक // तेनछिन्नंशिरोतस्यनितंरुधिरंमहत् // तेनहलेनसोहृदयेपीडितोऽ. पतत्॥ 16 // टिका-तदनंतर हळ प्रहारबडे करीने भिमना मस्तकमांथी, रुधीर प्र वाह स्त्रवतों थको पृथ्वी उपर पडी जाय छे, एटलुज नही, पण अत्यंत पिडा पामेछे. 16 ॥श्लोक // पुनश्चउत्थितोनूमौमुशलंप्रमुमोचह ॥आगतंत्वरितंहस्तेगृहीतंपांडु सूनुना // 17 // टिका. एटलामांवळी पृथ्वी उपरथी भिम गठ्यो, के त्वरित पार्छ / मुशल बळदेवजीये फेंक्युं, तेतो आवतांज भिमसेने झाली लीधुं, ए रीते परस्पर युद्व करे छे. 17 लोक॥ तदादश्चरामश्चपदातिशागतोरणे // लग्नश्चभीमसेनवैबाहुयुद्धप्र कुर्वतु // 18 // टीका॥ते समय तो बळराम महाक्रधातुर थइने, रणस्थलमां, बाहुए भूजा ठोकता थका, बाहु युद्ध वर्तछे. 18 ॥श्लोक // उभौतौमदिरामत्तोमहारोषणदंशितौ // तयोयुद्धमनूद्राजंसर्वलोकन यंकरं // 19 // टिका- बन्ने जण मदोन्मत्तपणावडे करीने दांत पिसता थका लढ्यां / करेछे, एवू नयंकर युद्ध भासेछे. 19 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग, // श्लोक // शिरसाशिरमाक्रष्टंमुष्टिनामुष्टिमापतत् / शंखलाचक्रवत्तमन्योन्य' अ 19 मपिजघ्नतुः॥ 20 // टिका. एक बीजाना मस्तक एक बीजाने साथे पछाडेछे, एक 11 विजाने मुष्ठिनोना प्रहार करेछे, अने एक बिजाने वारे घडीए मूछींगत करी देछे. ॥श्लोक॥ ललाटेताडितोमुष्टिःभीमरामेणभारत॥ मुष्टिप्रहारनिहतोमूर्छितोनि | पपातह // 21 // टिका. एक समयतो बळरामे निमसेनने मुष्टिप्रहार कर्यो, ते करीने पिडा पामेलो एवो जे भिम तेतो मूर्टीगत थइने पिडातो हवो. 21 श्लोकापुनश्चस्मारितंतेनमुशलंनिसनुना // तदाचत्थितोभीमतिष्टतिष्टेतिचा ब्रवीत् // 22 // टीका. अने वळी ते भिमशेन मूीगत पड्यो ते समय, भिमने मर्ण प माडवा बळरामे झां मुशळ संनाळ्युं, ते समय तो निम सचेत थइने बलरामने कहे || छे के, नभो रहे उभो रहे, एम नापण कर्या करेछे. 22 ॥श्लोक // मुक्ताचवायुपुत्रेणबलस्योपरिसागदा // लग्नाचशिरसिवेगाधिरंबदु / नित्रतं 23 टीका-अने वळी एम नाषण करतो एवो जे निमसेन तेतो बळरामउपर गदा क्षेपण करेले, तेणे करीने बळरामना मस्तकमांथी रुधीरनो स्त्राव थायछे, एज | रीते त्यां युद्ध वःछे. ॥श्लोक // सपपातमहिप्रष्टोततःक्रूध्धश्चपांडवः॥रणेचप्रहनन्सर्वान्यादवानी 49 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कयुथपान्॥२४॥॥टीका. अने वळी जे समय बळराम एथ्वीनी पिठ उपर मुर्छौंग त पडया,तदनंतर निमसेन बिजा यादवो उपर प्रहार करतो भ्रमेछे, अने एम इच्छे बे के सर्वे यादवोनो हुँ नाश करी ना, ए रीते महा संग्राम मचे. 24 ॥श्लोक // किचिगीताश्रराजद्रभीमपाधैवचोऽवदन् / पाहिपाहीतिभीमेनकुर्मो माभयमेवच // 25 टीका. केटलाएक यादवोनी तरफना राजाओ तो भिमसेनने कहे छे के, भो राजेंद्र, अमारु रक्षण करो रे रक्षण करों, जेणे करीने अमारा पुत्रदारा श्रोना भेगा थइये, एम नबता पूर्वक दंडवत करेछे. श्लोका सचेतोभूतदारामोसस्मारहलमुशली मुक्तौभीमोपरिभारदैलोक्यस्यच संक्षयात् 26 // टिका हवे बळराम ते समय सचेत थाने पोतार्नु हळ मुसळ संभाळे बे, अने जूछे के यादवोनों घाण वाळयो, तेम समजीने नीम उपर हळ मुशल मुकता थका त्रैलोक्यनो भार मुकता हवा.२६ ॥श्लोक // तदाघनछदादेवाःभयधाहेतिचशः गदाचक्षिप्तानीमेनतयोपरिचना शितौ २७ाटिका अने ते समयतो आकाशमां झम घनछद होय नहीं तेज रीते देवमा त्रो नय पामी जायछे; के आ बळराम शुं करशे, एम जोतां जोतां तो बळरामनेयपण गदा मारीती हवी. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 7 . डांग श्लोक // शोणितस्यसरिज्जाताशेवालाशिरजाःस्मृताःएवंविधंतदाजातंद्रुतोरा | मश्चवायुजं 28 // टिका. अरे ए युध्धने विशे तो, शोणीतनी नदी वहेवा लागी, आंतरडांना शेवाळ चालवा लाग्या, ए रीते निमशेननुं बलराम प्रति युध्ध होवा लाग्युंछे. 28 ॥श्लोक // पुनर्मुक्तागदातेनजीमेनजनमेजय॥ लग्नाचहदयेतस्यपपातगत्तचेत नः॥२९॥ टीका.॥हे जन्मेजय राजा एटलामां तो फरीने बलरामने निमसेने ग दा मारी, अने ते गदा हृदयने वच्ये वागवाथी गतचेतन गयुंडे चैतन्य ते जेनुं श्रेरिते बळनद्रजी मूगंगत होता हवा,२९ ___ श्लोक // तदाध्धश्चक्रनश्चमुक्ताकौमोदकीगदा // पपातपन्नांकुंतीजोमुखाद्रू धिरमुहमन् 30 // टिका. ते समयतो बळन जेन मृत्यु पान्या न होय ए रितनुं पुद्गुळ जोइने क्रश्नपर्मात्मा महा क्रोधायमान थया थका कुँतिना पुत्र जे भिम तेना नप र कौमोदिक नामनी जे गदा तेसो प्रहार करता इवा, ते जे कोइ प्रहार तेणे क रीने भिमसेनना मुखमाधी रुधिर वहन होतुं हवं. 30 ॥श्लोक ॥तदाचशक्रपुत्रश्चअपश्यद्रथमास्थित : // भ्रातृदुःखेनसंतप्तोगांजीवंध नुराददे // 31 // टिका. अने ज्यां कृष्णनी गदानो प्रहार शक पुत्र जे अजून ते रथ 50 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मां बेठो थको जूवेडे, अने पोतानो भाइ जे भिम तेना दुःखथी संतप्त थयो थको गां| जिव धनुशनो टंकार करेछ.३१ ॥श्लोक ॥देवदत्तंनिनादोचैःहयघोषेननिस्वनैः भीतश्चदेवकीपुत्रोसशाडचापमा ददे // 32 // टिका. अटलूज नही पण अर्जन तेतो देवदत्तनामा शंखना नाद वडे क रीने त्रैणे लोकने निती पमाडेछे, अनेए भिती वडे करीने देवकीना पुत्र जे कृश्न ते |तो, शाग्डनामा धनुष्य चडावी देछे. ॥श्लोक // पंचजन्यनिनादेनरथारोहोरणेगतः॥ ननौतोक्रोधसंतप्तौतिटेतिवा क्यमाहतुः॥३३॥ टीका. पंच जन्यशंखनो नाद करता हवा, अने रथमां बिराजेला एवा ऋष्ण ने अर्जुन ते तो, क्रोधे त्राकुळ व्याकुळ थया थका एक विजाने तिरस्का रनां वचन बोलेछे. 33 ॥श्लोक ॥आकाशेतत्रईद्रश्चपितामहोथशंकरः अन्येचखेचरायक्षाःपश्यतिकिंभ विष्यति॥३४॥॥ टीका- एवं अर्जुन अने ऋश्ननुं महा युद्ध जोश्ने ईद्र, ब्रह्मा, शंकर,अने बिजा अन्य यक्ष, अने ग्रहो जोता थका वाणी बोलेने के, रे दैव हवे किंभवि यति आगळ शुं थशे ए कांइ कहि शकातुं नथी. 34 इतिश्रीमहाभारतेडांगोपाख्याने क्रश्नार्जून युद्ध संभवोनाम एकादशोऽध्यायः / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. // 11 // इतिश्री तट्टीकायां रैक्व कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधर विरचितायां एका | 51 दशोऽध्याय : // 11 // ॥वैशंपायनउवाच॥वैशंपायनमुनि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा, ॥श्लोक ॥श्रणु त्वंटेकचित्तेनपारिक्षिद्वचनंमम॥ सर्वेषांपश्यतांतावक्रश्नोवचनमब्रवीत् ॥१॥टिका.हे परिक्षतना पुत्र, हे जन्मेजय राजा, एक चित्तवडे करने तुं सांभळ्य, ते युध्धने वि षे सर्वना जोतां क्रश्न शुं बोलता हवा, ए हूं तने संनळावुछु. 1 ॥श्री कृष्ण उवाच ॥श्रीक्रश्न शुं बोलता हवा. ॥श्लोक // पांमुपुत्रमहाबाहोपां || डवानांधनुर्धरः॥ जगतित्वंचविख्यातोममसाकंरणंकुरु॥२॥ टिका- हे पांडपूत्र हे पां डवोना मध्ये धनुर्धर, अर्जून बाप, जगतमां तुं तो महा विख्यात थइ गयोई. परंतु तुं मदारी साथे एक वार युद्ध करच, तेणे करीने महारुं चित्त प्रसन्न थै जशे. ॥श्लोक॥ त्वंचद्रोणेनचाधिताधनुर्विद्याचशंकरात् // नत्वंपिवस्वस्त्रेयाश्चमातुले योह्यहंतव // 3 // ॥टीका-शंकरना प्रसादवडे करीने पामेला एवा जे द्रोणगुरु ते ना थकी ते धनुर्विद्या भणी, ते गर्वने लीधे, पिता वर्ग, स्वसूरवर्ग अने मातुलवर्गि हूं ए कोइ तहारी गणनामां हवे नथी एवोज निश्चय थै जाय. 3 ॥श्लोक॥ हृदयेबलमानीयकर्त्तव्योरणसंगरः॥ यूयंचैवतुराजानोवयंनीचकुलस्म 51 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताः॥४॥ टीका- माटे हवे तो हृदयमां बळ आणीने संग्राम करो, तमे तो महोटा राजा छो, अने अमे तो निचकुल आहिर्जाति कहेवाया बैये, श्रे रीते क्रष्ण अर्जून प्र ति बोलता हवा.४ ॥श्लोक। विभोर्वचनमाकहास्यंकुर्वन्वदनवचःअर्जुनश्चमहाराजमातुल्यकपि द्वज.॥६॥ टिका-मातुलेय पणानोबे संबंध ते जेने, एवा अनेक बे, द्वज चिन्ह ते जेनुं एवो जे अर्जुन तेतो समर्थ एवा जे प्रभू तेमनां वचन सांभळतो थको, हास्य रुप वच न बोलेछ.५ ॥अर्जुनवाच० अर्जून वोलता हवा, इलोक // नत्वंनीचकुलेजातःकपटेनत्वयापु राबकाद्याःयेचकंसाद्याःराजानोघातिताःपुरा॥६॥ टिका- भाइ हुँ तमने निचकूळ मा रे मोढेथी नथी कहेतो, परंतु तमे तो पूर्वे बककंसादि राजाश्रोने कपटथी मारी नाख्या छे, एशंका मने थयां करेछे. माटे न्याय युद्धमा कुशल रहेज्यो.६ ॥श्लोकातंह्येतत्वयाकृश्नपश्यत्वंममपौरुषं // त्वंचसर्वजगन्नाथोअहंचैवपुराधि | पः॥७॥टिका. अने जो तमे त्यांय पक्षथी मारी साथे युद्ध करशो तो श्रा समय मा हारु पुरुषातन जोइ लेज्यो, तमे तो सर्व जगतना नाथ कहवात्रोछो, अने हुँतो एक पु. राधिप राजा वर्तृळू.७ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. ॥श्लोक ॥वसमुद्रोतडागंचक्वपंकोकचंदनःक्वसिंहोक्कहरिणश्चवलंमेपश्यसंगरे॥८ अ५२ टिका, क्यां समुद्र अने क्या तळाव, क्यां चंपक अने क्यां चंदन, क्यां सिंह ने क्या 12 हरणी, एमछे तोयेपण श्रा समयमा महारु बळ जुत्रो. 8 ॥श्लोक॥ इत्येवमुक्त्वावच सहदेवचोऽब्रवीत् // 0 // टिका.ए प्रकारे कृष्ण प्रत्ये। कहिने अर्जून जे तेतो सहदेव प्रत्ये बोलता हवा. . अर्जुनयाच० अर्जुन शुं बोलता हवा. ॥श्लोक // त्वंचनातर्महाप्राज्ञदैवज्ञोसी चनमृषा॥भवत्वंसारथिर्नेद्यक्रष्नेनसहसंगरः 9 // टीका. हे सहदेव, हे भात तुं महा| प्राज्ञ, डाह्यापण नो भरेलोड्रं, एटलुज नही पण दैवनी रचनाने जाणीशके एवो तहा। रो महिमा कोइ दिवस असत्य न वर्ते माटे करीने जोतुं महारो सारथी एटले रथ हां कनारो थाय, तो हुँ निश्चयपणावडे क्रष्णनी साथे संग्राम करु. 9 सहदेवउवाच॥हवे सहदेव शुं बोलता हवा.॥श्लोक ॥वासुदेवस्यसंग्रामेजयो ऽस्माकंभविष्यति॥इत्येवमुक्तामाद्रिजो॥ रथारोहश्वभारत॥१०॥ टीका, वारु ठिक | नाइ धनुर्धर अर्जुन श्रा कार्यमां आपणो जय थशे, एवं वचन बोलीने माद्रिनो पुत्र | जे सहदेव तेतो क छपाळतो थको रथ हांकया बेशी जतोहयो, ए प्रकारे वैशंपायन जन्मजय प्रत्ये बोले. 10 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie ॥श्लोक॥ तावच्चद्रपत्रेणमुक्ताःपंचशीलिमुखाःआगताःत्वरितापादौक्रश्नस्यपेतु राज्ञया॥११॥ टिका. अने जे समय सहदेवजी सारथी थया के तात्काळ, ईंद्र पुत्र जे अर्जून तेमणे पांच शर मुक्या, तेतो क्रश्ननी प्रदक्षिणा फरीने पादारविंदने नम न करेछे. 11 ॥श्लोक ॥तावक्रश्नेनतेपूर्वपूजिताःजनमेजय // श्रागताश्चपूनर्नूपयत्रसोकुंतीनंद नः // 12 // टीका-जे समय अर्जुनना बाण क्रष्णना समीप श्राव्या, ते समय एबाण नुं पूजन भगवाने कर्यु, अने हे जन्मेजय जे समय पूजन कर्यु के तात्काळ,ए बापत्र जूनना नाथामां पेशी जता हवा 12 ॥श्लोक॥द्रष्ट्रास्वमार्गणान्जिप्नुधनुःघोषांश्चकारह // तिष्टेतिप्रवदन्वाक्यंसप्त बाणान्मूभोचह 13 टिका. पोतानां क्षेपण करेला बाण पाछा आव्या, तेजोइने को घे भरायलो जे अजून तेतो फरीने धनुषना टंकार करेछे, एटलुंज नही पण उभा रहो उभा रहो, एम कहीने सात बाण मुकेछे. ॥श्लोक। चर्भिश्चतरोवाहानेकेनसारथिंप्रभोःएकेनताडयत्क्रप्नंचैकनसहजोरथः 14 // टिका. तेमांना चारबाण वडे करीने च्यार अश्व, रथना नाश पाम्या, एक बा वडे करीने सारथी मूछींगत थयो, एक बाणे द्वजा सहित रथ भागि गयो, अने ए| For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie डांग, क बाण कृष्नने वाग्यो तेणे करीने मूछौंगत होता हवा.१३ 53 ॥श्लोक॥ रथेद्वितीयेआसीनोरोषेणद्वारकापति ॥पंचबाणान्मुमोचाथअर्जुनंप्रति 12 | भारत ॥१५॥॥टिका. ते समय भगवान महाक्रोधे भरायला सता विजा रथमां बेशी ने द्वारकांना पति एवा कृष्ण तेतो अर्जून प्रति पांच वाण मुकेछे.१५ ॥श्लोक॥ एकेनताडितोवाहाप्रेरकोजन्मेजयश्चत्वारोचार्जूनंलग्नाहृदयगतवेतनः 16 // टिका. एक बाण बडे करीने अश्व नाश पामि गया, एक बाण वडे करीने सारथि मूगत थयो, अने च्यार बाण अजूनने वाग्या, तेणे करीने छातिमांधी रुधिर वहेवा मांडयुं, एटलुंज नही पण काजून महाअचेत थइ जतो हवो,१६ ॥श्लोक।वाचदेवकीपुत्रोनमत्वमेनराधिपसचेतोऽनूतदाराजापांडुपुत्रोऽत्रवी द्वचः ॥१७॥टिका अजून जे समय अचेत थयो ते समय कृष्ण कहेछे के, हे राजन्तु जो मने नमे तो श्रा समय तने जिवतो राखु, एम सांनळतांज सचेत थइने कृष्णसा मु भाषण करतो हवो. - अर्जनउवाच॥हवे अर्जुन कृष्ण साथे शुं बोलता हवा.॥श्लोक। वयंचैवतराजा नोक्षत्रिवद्धिनर्धराःनिर्मलोसामवंशश्चकस्मान्मलांछितःक्रतः // 18 // टिका रे कृ / ष्ण ढ तने शाथी नमु, ढुंतो सोमवंशी राजार्छ, महारा कुळने विशे कांइ लांच्छन न 53 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir थी, निर्मळ न्याय रितथी ढुं तमारी साथे लढु छु, कारण के ए क्षत्रीने म्हें शर्ण राख्योछे. 18 लोक। इत्येवमुक्त्वावचनंजग्न्यास्त्रंसंदधेरणातनबाणेनसहसाह्यग्निवृष्टि ह्यभू न्नृप // 19 // टीका. हे जन्मेजय ए प्रकारे बोलतो एवो अर्जुन तेतो, यादव प्रति श्री ग्न्यास्त्र बाण मूकतो हवो, अने ए बाणवडे करीने तो. यादवनी सैन्यामां महाभग्नी वर्ते जायचे. 19 ॥श्लोक ॥दग्धंटनीबलंसवीक्ष्यदीनश्रियःपतिः पार्जन्यंपांनुपूत्रायमुमोचशांत पावकं // २०॥टिका.॥ दाझ्या दाझ्या थै रह्या एवा जे कोइ यादवो, तेनं दुःख श्री। पति भगवान जोइने मेघ वरसावि दे छे, तेणे करीने सर्व यादवो ठंडा थइ जायछे. ॥श्लोक // क्रोधेनदेवकीपुत्रंनागास्त्रंसंदधेरणेशतशोह्यभवन्नागावष्टितःऋष्णस्यं दने ॥२१॥टिका. अने जे समय भगवाने पावकने शांत करीनाख्यो, ते समय अजने क्रोधवडे करीने नागास्त्र मुक्युं, ए नागास्त्र वडे करीने हजारे हजारो नाग सर्व / | यादवोने अने कृष्णनारथने वेंटइ वळता हवा. // श्लोक // निजंचगारुडंकृष्णोमुमोचनयविहलं॥ नष्ठाश्चपन्नगाराजन्नादंचक्रेज नार्दनः // 22 // टीका. ते समय तो भये विहवल एवा जे कोइ कृश्न तेतो गरुडास्त्र For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir श्र डांग'मुकी देछे अने ए गरुडात्र वडे करीने सर्वे नाग मात्र नाशि जायछे.ते समय भगवान 54 शंखनाद करेछे. ॥श्लोक // तदाचपर्वतास्त्रंतुसंदधेचंद्रवंशजः॥पाषाणाःपतितास्तेषांनग्नाश्चहय | कुंजराः॥२३॥ टिका अने ज्यां नाग मात्र नाशिं गया के,महाक्रोध वडे करीने अर्जू न परवतास्त्र मुकेछे. अने ते पाषांण यादवो उपर पडेछे, तेणे करीने. यादवोना हाथी घोडा पायदळ सर्व कचरायां जायछे. ॥श्लोक ॥केषांचिच्चरणाभग्नाभग्नग्रीवास्तथापरे // यदनांनासिकाभग्नाःनग्न शीर्षासबाहव॥२४॥टिका. केटलाएकतो ए रणसंग्रामथीनाशि छुटेछे, केटलाएकनी ग्रीवायो जे डोको ते वांकी थै जायछे, केटेलाएकयादवोनी नासिको रुधिरे चुयांकरेछे केटलांएकनां मांथा फूटे, तेणे करीने यादवना सैन्यमां नंगराण पडी जायछे.२४ ॥श्लोक तदातेशरणंजग्मुर्वीसुदेवंजगत्पति॥प्रोवाचदेवकीपुत्रोमाभयंकुरुतांजनाः 25 // टिका. अने ज्यारे यादवो बहु नय पाम्या, त्यां नगवानने शर्ण गया ने कहेवा लाग्या, हे प्रभो अातो महादुःख थइ पडयुंछे, एम सांभळीने भगवान कहछे के ह वे मां अकळाशो, एनो उपाय खोळी काढुछू. 25 ॥श्लोक // इत्येवमुक्ताक्रश्नमुक्तमस्त्रंचपावननिक्षिप्तावारिधिमध्येपर्वतावायुना 51 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // नृप॥२६ टिका. ए प्रकारे कहिने नगवाने पवनास्त्र मुक्यं, तेणे करीने पर्वत मावस | मुद्रमा जइने पडता हवा.२६ - श्लोक ॥तदाद्धोमहावीरोपांमुपुत्रोधनंजयः॥संदधेविजयनामबाणंकालोपमंच। त // 27 टिका- तदा कहतां ते समय पांडुपूत्र महाविर एवोजे अर्जूनं, तेणे तो धनुष्यनी प्रत्ययचा चढावाने विजय नामनो बाण मुक्यो, ए बाण केवो के यादवोने काळ सादृश थइ पड्योछे. श्लोकातेनबाणेनसहसाभग्नंशाधनुःकरात्॥रथश्चभग्नसकलातिलशस्तुलनाः। क्षणात्॥२८॥टीका. ते बाण वडे करीने सहसा कहेतां अकस्मात, भगवानना रथ के शाकुनामा धनुष नागी जतुं हवु. एटलुंज नही पण क्षणवारमा रथना चूरे | चूरा थइ जता हवा. केनी पेठे के, ज्यम पोपटामांथी तिल वेराइ जाय, एजरीते प रडां पेंजणीओ जूदी होती हवी. ॥श्लोक // प्रदक्षिणंभ्रमन्तावत्क्रष्णोदेवकीनंदनः ॥हाहाकारोमहानासीदेवा हाहेतिचुक्रुशुः॥२९॥ टिका. अने तदनंतर ए बाण कृश्ननी प्रदक्षिणा करेछे, ते जो इने सैन्यमा हाहाकार होतो दवो, अने देव मात्र चिकित् थइने कहेछे के रे दैव ह। वे शुं थशे. एम संग्रामने विशे थयां करे. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir श्लोक // सचेतोभूतदाक्रश्नःपाणिनामृज्यचक्षुषिचक्रंसुदर्शननामसमादायच 55 रोषत॥३०॥ टिका. अने भगवान ए बापना भनकाराथी मूछ गत थइ गएला थका 12 ठीने पोतानां जे लोचन पाणी वती धूवे छे, धोइने रोप वडे करीने सुदर्शन चक्र चढावेछे.३० // श्लोक // पांडुवंशविनाशायगृहीतंचसुदर्शनं // मूर्छयापतितोनीमोतदाकाले ह्यजागरत्॥३१॥टिका. ज्यम पांकु वंशनो नाश करवो, धारयो होय नही शुं, ए रीते महा क्रोधायमान थएला एवा कृष्णने जोइने निमशेन पृथ्वी उपर पडतो हवो. // 31 // ॥श्लोक।। दष्ठंविनुकरेचक्रनीमेनवायसनुना॥ आझयागणनाथस्यगदांजग्राहपां डवः 32 // टिका. ए रीते भिमसेने प्रनुना हाथमां चक्र जोयु, के तात्काळ उठीने ग णपतिनुं स्मर्ण करतो सतो, मोटी गदा धारण करेछे. 32 ॥श्लोक।मुक्तंसुदर्शनंतस्मैअर्धपंथानमागतमुक्ताचभीमसेनेनगदावेगेनभारत // ३३॥टिका अने ज्यां सुर्दशन चक्र अर्ध श्राव्यु के, निमसेने तात्काळ गदा मुकी ते णे करीने सामसामुंगदा चक्र ने युद्ध होतु हवं. ॥श्लोक // गदयाताडितंचक्रंचक्रणसागदाप ॥ग्नातीवर्धमानौतीगतोखेप्रति 55 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie भारत // ३४॥टिका. हे जनमेजय, हे भारतं, ते समय केवं आश्चर्य कारक थयुं. के गदा चक्र उपर पडे ने चक्र गदा उपर पडे, ए रीतेवधतां वधतां सूर्य मंडळ सुधी। चढी जायछे. // 34 // ॥श्लोक ॥अग्निदृष्टिःह्यभूत्तावत्सर्वेषांपश्यतांनृणांपश्यतिपांडवानीकानयो / | कौरवानृप॥३५ टीका. सर्व नरोना देखतां ते समय अग्नीनी दृष्टी होती हवी. तेतो पां| डवोनुं सैन्य, यादवो अने कौरवो देखेछे. ॥श्लोक ॥भीताश्चदेवताःसर्वा:पिनाकिंशरणंगताःउचुस्तेनयभीताश्चईवाद्याः य क्षगुह्यकाः॥३६॥ टिका. ते समय तो सर्व देव मात्र बिता थका भय पामिने इंद्रय क्ष गुह्यक पिनाकी जे महादेव तेने शरण जश्ने वाणी बोले. ॥श्लोक // उचुःनमस्तेमहादेवनमस्तेपार्वतीपते॥किंभविष्यतिदेवेशप्रलयःकिंन विष्यति // 37 // हे महाराज हे महादेव हेपार्वतिपते हेदेवेश दवे शुं थशे, आते प्रलय | कहेवाय के शुंए अमने समजावो.३७ / महादेवव्याच।महादेव देवोने शुं संभळावताहवा.।श्लोक॥प्रलयोनास्तिभोदेवाःनर्व। शीशापकारणात् ॥श्निपांडवसंग्रामोजातोवैजनमेजय॥३८॥ टिका हे जनमेजय ते / समय महादेवजी देवोने कहछे के भोइति संबोधने हे देवो आ कांइ प्रलय नथी आ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. तो उर्वशीना शाप कारणथी यादव पांडवनो संग्राम थायजे. 38 अ५६ ॥श्लोक // सप्तार्धवजसंयोगोजायतेयदिचामराः // स्वस्थंभवेत्तदासर्वमानयंकु। 12 रुतांचयत् ॥३९॥॥टिका- हे देवो विशो नही बिशो नही सातनुं अर्ध साडा त्रणव ज एकठां थशे, एटले सर्व शमी जशे माटे भय न धरशो. ॥श्लोक।इत्येवंकथितंवाक्यंशिवनवासवान्प्रति॥आगतोदेवसहितोतत्रस्थानेहरः स्वयं ॥४०॥टीका-ए रीते महादेवजीए ईंद्रने वचनं का, ते सांनळीने शंकर सुधां। सर्व देवो रणसंग्राम जोयां करछे.. ॥श्लोक॥ तत्रमारुतकौबेरधर्मनैरुतपावकाःवरुणोवसवोऽष्टौचसिदाचारणपन्नगाः। 41 // टिका. ते ठेकाणे मरुत जे वायु देव कुबेर धर्म नैरुत अग्नी, वरुण, अष्टवसु, | सिद्ध, चारण पन्नग सर्व जोयां करेछे.४१ ॥श्लोक। ब्रह्माद्याःरुषयःसर्वेईंद्राद्यादेवतागणाःागतास्त्वरिताराजगृणभूमौ चभारत४२ टिका.एटलुंज नही पण ब्रह्माने आदि लइने सर्व रुषीमंडळ, ईंद्रने आ दि लश्ने सर्व देव ते ठेकाणे प्रावी पोच्याछे. 42 ॥श्लोक ॥क्रत्वाप्रणामंविधिवत्क्रष्णंचयदुपुंगवं // स्तुतिकुतिराजेद्रेगदाचक्रम थानृप॥४३॥ टीका. जे समय चक्रने ने गदाने घणु युद्ध थयुं, ते समय विधिवत स For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir र्व देवो क्रश्न अर्जून प्रति स्तुति करे. देवाग्चुाहवे देवो केवी स्तुति करता हवा ॥श्लोकानमस्तेमच्छरुपायकूर्मरुपा यतेनमः॥वाराहायनमस्तुभ्यं नृसिंहायनमोस्तुते॥४४॥ टिका हे मच्छारुप धारण क रनारा कुर्म रुप धरनारा, वराहरूप धरनारा, नृसिंह तमने नमस्कार करु . ॥श्लोक।वामनायनमस्तुभ्यभार्गवायचतेनमः॥रामायरामक्रश्नायबूद्धकल्कीभ्यां नमोनमः 45 // टिका. एटलुज नही पण वामन, भार्गव, राम, रामकृष्ण, बुद्ध अने कल्की ए दशे अवतार तेने नमन करिए ब्येि.४५ ॥श्लोक॥ त्राहित्राहिरमाकांतविश्वंपाहिजगत्पते॥गदाचक्रसमायोगादग्धालोका स्त्रयःप्रनो॥४६॥टिका हे महाराज, हे विश्वपते जगतनी रक्षा करो,गदाने चक्रना। संयोगथी त्रैणलोक दाझी जायजे. ___श्लोक। वार्यत्वंचमहाराजभवेत्स्वस्थंगदारिणि // तावच्चश्नयोराजन्पांडवामेल नंययुः॥४७॥ देवो कहेछे केहे महाराज हे भगवन् हवे तमे चक्र अने गदाने वारो,जे णे करीने जगत स्वस्थ थाय नही तो प्रलयाग्निवडे करीने विश्व प्रलय थै जशे, एवां वचन सांनळी भगवाने क्रोध समाव्यो; अने यादवो सहित पांडवना सैन्यमां मळ | वा श्रावता हवा. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग, ॥श्लोक।सर्वेषांपश्यतांक्रश्नोसहदेवंवचोब्रवीत्॥ किंनविष्यतिदैवशीघ्रकथयां 57), डव // 48 // टिका सर्वना जोतां भगवान सहदेवने वचन कहेछे. रे दैवज्ञ हवे शुंथशे,ते 13 मने कहि संभळाव्य. ___ सहदेवउवाच // सहदेव ऋष्ण प्रत्ये बोलता हवा श्लोक // सप्ताईवजसंयोगोउर्व शिशापमोचिता॥ौवजौचतदाजातौसार्धमेकंनविष्यति॥४९॥टिका.हे महाराज सात नुं अर्ध जे साढात्रण,एटलां वन ज्यारे एकठां थशे त्यारे उर्वशीनो शाप मुकर जशे, माटे सांप्रतकाळ बे वज युद्धे चढयाछे... ॥श्लोकाविनाचअंजनेयंवैनसमर्थोकश्चवारण।बोधयत्वंमहादेवहनुमंतंकपिनृपं // ॥५०॥टिका मारेकरीने अंजनिना पुत्र हनुमान विना बिजो कोइ वजने वारे एवून / थी एज हेतुथी हे महादेव कपिवरने बोध करवो घटेछे. श्लोक। सर्वेषांपश्यतांतावहनुमंतंरथेस्थितं ॥उवाचदेवकीपुत्रोवाक्यमेवारतो पमं // 51 // टिका एवां वचन सहदेवजीनां सांभळीने, सर्व धनुष्यना धारण करनारा राजाश्रो रथमां बेठा जुवेने तेमना सांनळतां देवकीना पुत्र नगवान् अमृत तुल्य शुं बोलता हवा.५१ इतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्याने क्रश्नार्जुन यो द्वादशोऽध्यायः॥१२॥ इतिश्री 57 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तट्टीकायां रैक्व कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधरविरचितायां गामोटगामिनी व्याख्या यांद्वादशोऽध्याय // 12 // ॥श्रीकृष्ण उवाच ॥श्री कृष्ण भगवान हनुमान प्रति बोलता हवा ॥श्लोक॥ एह्या गच्छमहाबुद्धे वायुपुत्रमहाबल // नास्तिमेवल्लनोकोपि॥ त्वत्समोवानराधिप // 1 // ॥टिका॥ हे महावुद्ध वायुपुत्र बळवान, तमारा सरखो कोइ मने वहालो नथी। माटे अहियां आवो. ॥श्लोक॥ वारयत्वंगदारीणीशीघ्रंयत्नश्चक्रियतां॥त्वरितोह्यागतोपार्श्वक्रश्नस्य भीमबांधवः // 2 // टिका एवं कहेतांमांज भीमबंधु जे हनमान ते कृष्णनी आज्ञा मा। गे छे, कृश्न कहेछे के भाइ तुं उतावळो आ शत्रु रुपीणी जे गदा तेने निवारण कर.२॥ ॥श्लोक॥ हनुमांस्तुनमस्कारंक्रतबांसात्वतांपतिद्रूतोशीघ्रंतदाकाशेजग्राहचगदा रिणी॥३॥ टिका. वळी कृष्ण कहे के दे हनुमंत तने नमस्कार करुयूं, एटलूं कहेतां मांज हनुमंत शीघ्र आकाशमां कुद्या, अने उतावळा शत्रु रुपिणी गदाने झाले. ॥श्लोक। गदावामनग्रहीतादक्षिणेनसुदर्शनं॥वार्धतंचशरीरंतुवानरेणचभारत॥ 4 // टिका. हे भारत ते हनुमानजी जे तेमणे तो वाम हाथे गदाने झाली, अने दक्षि ॥श्लोक // अश्वत्थामाबलियासोहनुमंताविभिषण॥कप:परशुरामश्चसौतेचिरनिवीनः॥१॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग ण हाथे सुदर्शन पकडयुं, एरीते शरीर वानरे वधारी दीधैं.१ ॥श्लोकातदाचभयमापन्ना ॥खेचरादेवगह्यकाः॥देवाश्चकृश्नंस्तुन्यतिपाहिपाहि 13 जगत्प्रभो॥६॥ टिका. ते समयतो अवकाश मार्गे महायुद्ध थयुं, तेणे करीने ग्रहगण जे सूर्य तारा चन्द्र अने देवो सर्वे अकळावा लाग्या, एटलूंज नही पण देव सर्व कृ ष्णनी स्तुति करवा लाग्या, भो नगवन् पाहि पाहि, अमारु रक्षण करो रक्षण करो, ए रीते स्तुति कर्या करेछे. ॥श्लोक॥ तदाचकेशवोराजन्॥सहदेवंवचोब्रवीत् ॥टिका ते समय हे राजन केशव सहदेव प्रति बोले. ॥श्रीकृष्णउवाच॥हने कृष्ण सहदेव प्रति शं बोलता हवा. ॥श्लोक॥ ब्रूतदैवज्ञ वचनं // महाप्राझमहाबल॥क्रियतांकउपायश्च // कथ्यतांशंभवेत्सुरान्॥६टिका हे डाह्यापण नरला बळवान दैवज्ञ बाप सहदेवजी सर्व देव मनुष्योने सुख थाय अने आ युद्ध बंध थाय एवो शो उपाय करिशुं ते मने कही संभळाव्य.६ ... ॥श्लोक ॥गदेयंपार्वतीशस्यचक्रमेचसुदर्शनं // तृतीयोहनुमान्वरोित्रयाणांकाग तिर्वद॥७॥ टीका, आजे कोइ गदा तेतो पार्वतीना इश जे शंकर तमणे अलीबे, अ I ने चक्रए मारु मुकेल, एटलुंज नही पण त्रीजो हनुमंत वजमयछे, ए युध्ध शी तेि For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie पार पडशे, कारण के केवी गत थशे. // 7 ॥श्लोक // इत्येवंकथितंबाक्यंश्रीकृष्णेनमहात्मना // प्रोवाचसहदेवश्वसंगरे स्थितान्नुपान्॥८॥ टिका- महात्मा एवा जे श्रीकृष्ण तेमणे सहदेव प्रति ए रीते | वाक्य का, ते सांभळतां सर्व राज्य मंडळना समिप उना रहीने सहदेवजी बोलेछे. सहदेवउवाच॥हवे सहदेवजी शुं बोलता हवा, ॥श्लोक॥ श्रणुतांदेवकीपूत्रबहू नारोनवेद्भविपतंतोगंबरादेतेरसातलगतामही॥९॥ टीका. हे देवकीना पूत्र भग | वान तमे सांनळो, आसमय पृथ्वी पर अनितीरुपि भार बह वधी गयोछे, मा टे करीने जो ए त्रयणे वजो जो आकाशथी नीचे पडशे तो, पृथ्वी रसाताळ जती रदेशे. 9 ॥श्लोक॥ तेषांभारसहोभीमोनान्योस्तिपुरुषोनवी॥अस्याप्रष्टोवत्रंचबहिभीम जनार्दन // 10 // टिका. माटे करीने ए त्रयणे वचनो भार भिम विना बिजो पुरुषकोइ सहन करे एवं नथी, कारण के निमर्नु अरधु अंग पण वज, माटे करीने हे कृष्ण भिमने कोइ राजी करीने संनळावो. ___ श्लोक॥श्रणुराजन्प्रवक्ष्यामि जन्मेजयमहायशाःसप्तार्धवजसंयोगोजातोस्मिन् / शापकारणे // 11 // टिका. हे महा यशश्वी जन्मजय तुं सांनळ्य,हुं तने संभळावू / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डॉग. उर्वशीनी शाप मुक्त थवाने काजे, साढावणवजनों संयोग हवे थशे. ॥श्लोक // एकंवचंगदाप्रोक्ताद्वितीयंचक्रमुच्यते तृतीयंहनुमान्प्रोक्तोनीमप्रष्ठो| 13 |र्धमुच्यते // 12 // टिका- हे नृप एक वजर तो गदा छे, बिजूं वजर चक्र छ, त्रीजू व जर हनुमन्त, अने अरg वजर एक पासानु भिमनुं अंग, ए साढा त्रण वजरनो सं| योग थशे.१२ ॥श्लोक।। सर्वेतेपांडवानीकाःयादवैः सहमीलिताःत्यक्तंबैरंतदासःननीमेननरा ध्रिप॥१३॥ टिका.वैशंपायन मनि जन्मेजयने कहछे के हे नराधिप, यादवोने पांड वोये वैर मकी दीधां, ने भेगा नळी गया,परंतु निमसेनतो रोसे नराणा रह्या, एम ने तो कांइ गमतु आव्युं नही. ॥श्लोक॥ तदाब्रह्माचक्रष्णश्चरुद्रोशकस्तथैवचाभाभिःसहितोराजाधार्तराष्ट्रः / सुयोधनः॥१४॥ ते समयतो, ब्रह्मा क्रष्ण रुद्र ईंद्र अने सो नाइयो सुधां दुर्योधनरा जा एकठा थजायछे.१४ ॥श्लोक // द्रोणश्चैवकृपाश्चैवनीष्मोकर्णजयद्रथौदेवाश्चदानवायक्षाः सिद्धचारण। पन्नगाः // 15 // टीका. एटलूंज नही, पण द्रोणाचार्यजी, कृपाचार्यजी, भिष्म, ! कर्ण, जयद्रथ, देव दानव, यक्ष सिद्ध चारण पन्नग सुध्धां जेटला त्यांछे, ते एकठ। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir थइ जायछे. 15 ॥इलोक। युधिष्टीरोऽर्जूनश्चैवसहदेवादयश्चयेागतास्त्वरिताःसर्वेपत्वभीमोसडां गवः ॥१६॥॥टिका- अने वळी अजूंन यूधिष्टिर सहदेव तेयपण तेमना भेगा थया थ का सर्व मंडळ विचार करीने भिम अने डांगव ज्यां उभा छे त्यां नव दशाए पासे आवे. 16 ॥श्लोक॥ नमस्कृत्यंचतेसर्वेभीमसेनमहाबलं प्रोचुस्तत्रिदशाराजन्भयविहवल लोचना: // 17 // टिका-महा बळवान् एबा जे नीमसेन तेने सर्व मंडळी नमस्कार / करीने, भयवडे करीने विहवळ छे, लोचन ते जेमनां, एवा जे देवो तेतो भीमनी स्तुति करे छे. 17 देवाउचुः॥ हवे देवो केवी रिते भीमनी स्तुति करेछे ; ॥श्लोक॥ धन्यधन्यमहा बाहोपांडुपुत्र महाबल ॥रक्षितोक्षत्रिधर्मश्चडांगवोशरणेगतः॥१८॥ टिका-धन्य धन्य हे पांडूना पुत्र नीमसेन तमने धन्य छे, डांगवने शरणे राख्यो ए पण तमारंसिद्ध छे, तमे जेवो क्षत्रिनो धर्म राख्यो, एवो कोइए राख्यो नथी. 18 ॥श्लोक॥ पाहिपाहिमहाराजप्रष्ठंधारयसंगरे॥ वानरारिगदानांचभारंसहमहा वलात् // 19 // टिका-हे बलवान् वीर हवे तो क्षमा करो क्षमा करो, श्रा संग्रामने For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. वीशे हवे तो तमारु वजप्रष्ट धारण करी राखो, जेणे करीने हनुमंत चक्र ने गदा, त्र, 60 तेनो भार सहन थाय. 19 ॥नीमउवाच॥ हवे नीमसेन देवो प्रत्येशुं बोलता हवा ; ॥श्लोक॥ केयूयंयादवा केचपांडवानांप्रियंकरा आगतानोरणेजेतुंयादवामसबंधिनः // 20 // टीका-श्रा समयमां तमेय कोणछो, यादवे कोण छ, माहारा संबंधी एवा जे यादव तेमने रणमा जितवा अाव्याछे, अने वळी कहे छे के पांडवतोत्रमने प्रियकरछे, एम अहंकारमा बोल्यां करे छे. 20 ॥श्लोक। वैरिणस्तेचजातावैवासुदेवोविशेषतः अयादवीधरांकर्तुसमर्थोऽहंसुरेश्वराः // 21 // टीका-अने वळी आ समय यादवो तो माहारा शत्रज थया छे तमां वासुदेव तो विशेशे करीने शत्रुता जणावे छे,माटे करीने हे बाप हे ईंद्र हवे तो हुं नहीं के यादवो नहीं एम अयादवी पृथ्वी करवी ईच्छुडूं. 21 ॥श्लोक।भीमस्यवचनं श्रुत्वादेवास्त्रासंसमाययुः॥पुनःप्रोवाचवचनंवायुजंदेवकी || सुतः // 22 // टिका-एवां भीमसेननां वचन सांभळीने देवमात्र त्रास पामी गया, अने फरीने वायूज जे भीम ते प्रति वचन बोले छे. 22 ॥क्रष्णउवाच॥ क्रष्ण भीम प्रति शुं बोलता हवा; ॥श्लोक॥ धन्यधन्यमहावीर : For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रोषंमोचयसंगरात्॥ प्रलयश्चभवेद्वीरकाशोभाजायतेतव // 23 // टिका-हे महावीर / तने धन्य छे धन्य छे, हवे तो रोष मुकी दे, हे वीर जगतनो प्रळय थशे तेमा ताहारी शी शोभा छे. 23 ॥श्लोक॥ सदायूयंमहावीर्याःक्षत्रिवधिनुर्धरा : वयंचनीचतांप्राप्तानराज्यफल्गु प्राक्रमा : // 24 // टिका-सदाय भाइ तुं महा विर्यवान छ, ताहारा जवो क्षत्री धर्मनो राखनारो में दीठो नथी, हुँतो ताहाराथी निच पराक्रमी डूं, ज्यम सिंह ने शीआळ ए प्रमाणे गणती छे. 24 ॥श्लोक। प्रजापालनषष्ठ्यांशोराजनीतिर्महाबल एतेक्षत्रिगुणाःप्रोक्तारहितस्तै नरोधमः॥२५॥ टीका-प्रजान पालण करीने षष्ठांश लेवो ए राजनीतिनो धर्म छे,ते क्षत्रीपणुं ताहारामां दिसे छे,अने एथी उलटो चाले ते अधर्म कहेवाय. 25 ॥श्लोक। वयंतुदासतांप्राप्ताःभीमसेनंमहाबल ऋष्णस्यवचनंश्रुत्वाहास्यंचक्रेस पांडवः // 26 // टीका-भाइ हवे ढुं श्रा समय दासताने पांम्यो, अने तुंतो महा। वळ पराक्रमी छु, एवा ऋष्णनां वचन सांभळीने सघळाय राजाश्रो पांडव सुद्धा हसवा लाग्या. 26. ॥श्लोक॥ आनीतातुरगीराजन्डांगवस्यसमीपतः धृतंचहृदयंतस्याःटष्टेभीमेन For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग, पश्यतां // 27 // टिका-हेराजन हे जन्मेजय,ते समय तात्काळ डांगव पासेथी घोडी श्र. 63 लेइने वन- पासु तेनी पीठ उपर मुंकी भीमसेन नभो रहेछे,अने वळी आगळ पाछळ 13. जुवे छे के रखेने कपट करीने क्रष्ण लेइ जाय नहीं. 27 ॥श्लोक // पतितोहनुमान्वीरोगदाचक्रसमन्वित : भीमष्टष्टेऽपतत्सर्वसप्तार्धवच संगमः // 28 // टीका-घोडीनी पीठ उपर भार देइने उना रह्या छे,ते समय काळमां, हनुमंत गदा चक्र समन्वित भीमना एष्ठ भागे पडीता हवा,ते समय साढा त्रण वचनो संयोग थइ जतो हवो. 28 ॥श्लोकात्यक्त्वाचतुरगीदेहं उर्वशीशापमोचिता सर्वेषांपश्यतांतावछुभानारीबनू वह // 29 // टिका. महामुनिना शाप थकी उर्वशी मुकइ गइ, अने सर्व सैन्यना जोत | जोतामां अश्वनीरुपनो त्याग थइने महा अप्सराहोती हवी. ॥श्लोक। गत्वाकृष्णस्यचरणेपपातदंडवद्भविसर्वान्देवान्नमस्क्रत्यगतास्वर्गस्ववे इमनी॥३०॥टिका. अने जे समय नारि रुप थइ के तात्काळ, कृष्ण परमात्माना चर णनेजइने नमस्कार कर्यो, एटलुंज नही पण सर्वे देव मात्रने नमस्कार करती थकी विमाने बेशी स्वर्ग मार्गे गति करछे.. ॥श्लोक।अन्योन्यत्यक्तवैराश्चरश्नयोपांमुनंदनाःआगताःकौरवैःसाकंईंद्रप्रस्थन- 1 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राधिप॥३१॥ टिका. अने ज्यां अप्सरा स्वर्ग गइ के, तात्काळ, उनी जे यादवो अ ने पांडवो तेने तेनां वैर नाश पामी जतां हवां,एटलूज नहीं पण कौरव सुधां यादवो ने तेडीने ईंद्रप्रस्थमां गति करेछे. ॥श्लोक। पांडवैःपूजीतासर्वेदेवर्षिपितृमानवाः ॥भोजिताश्चपरांन्नेनतत्रयेसंगता नृप॥३२॥ टिका. पांडवो घेर श्राविने देव सपिपितरनु यजन करता थका,सर्वने मिष्ठा नवळे करीने नोजन करावेछे. लोकानीमस्यवचनाद्राजाडांगवोपश्यतांनृणां ॥पपातकृश्नचरणेदंडवद्भविसं स्थितः॥३३॥ टिका तदनंतर भिमना वचन थकी, ते डांगव राजा कृष्णना चरण कम कने नमने कर.३३ ॥श्लोक ॥पाहिपाहिजगन्नाथक्षतुमर्हसियादवकृष्णप्रोवाचवचनंगच्छराज्यंकुरुन् / प ॥३४॥॥टिका. हे महाराज हे जगन्नाथ, महारु रक्षण करो, म्हें तमने अोळख्या नहता तमारी सत्ता म्हारा जाणवामां न आवी. हवे मने शरण राखो, म्हारा सर्वअ / पराध क्षमा करो, एवं सांभळीने ऋष्ण कहेछे के, जा राजन् सुखेथी तुं तहारा देश मां राज्य करय. 34 ॥श्लोक। माभयंकुरुराजेंद्रउर्वशीशापकारणात् एतत्क्रमियाराजन्नमवैरंभवत्पु। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग, नः 35 टिका. दे राजन दवे तुं जय मां धरीश, मारे कांश तारी साथे वैर नथी, | अ 62 आ उर्वशीनो शाप मुक्त थवाना हेतुथी या सर्व कृत्य कर्युछे, .. // श्लोक ॥भीमंचैवनमस्क्रत्यनमस्क्रत्यचअर्जुनं // कुंतीचद्रौपदीभद्रांतथावा न्यान्सुरान्नृप // 36 // टिका. भीमनेने,चपुनःअर्जूनने तदनंतर कुंता द्रुपदी सुभद्रा, बीजा सर्वे राजाोन डांगव नमस्कार करेछे. ॥श्लोक। गतःकाश्यांनृपोराज्यंचकारसुखकाम्यया सर्वेतेयादवाद्वारामत्यांनृप समागताः 37 // टिका. तदनंतर ते डांगव राजा पोताना काशीपुर प्रति गमन करे छे, अने सर्व यादवो द्वारका प्रति गमन करेछे. 37 ॥श्लोक॥ कोरवादस्तिनगरेगतास्तेजनमेजय // देवाश्चदानवायक्षाःसिद्धचारणप नगाः॥३८॥ टिका हे जन्मेजय राजा कौरव पण हस्तिनापुर विशे गया, देव दा | || नव यक्ष सिद्ध, पन्नग तेयं पण पोत पोताने स्थानके जइ पोचेछे. 38 ॥श्लोक // स्वस्वस्थानेगताःसर्वेब्रह्मारुद्रमुनिश्वराः॥ वार्तीतेपांडवानांचकुर्वतोज। यनिस्वनैः॥३९॥ टीका. ब्रह्मा रुद्र ईंद्र अने बिजा मुनिश्वरोपोत पोताने स्थानके ज ता हवा, अने अखिल ब्रह्माडमां वात चालि के पांडवोनो जय थइ गयो, ॥सुतऊवाच॥ सुत पुराणिक रुपियो प्रत्ये बोलता हवा. ॥श्लोक॥ अणुतांशौ / 62 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नकमुनेडांगवस्यकथानकं // दृश्नीपांडवयोःस्पर्धाकार्तिताचतवाग्रतः ॥४०॥॥टिका. हे शौनकादिकमुनिश्रो, डांगवनु कथानक अने यादव पांडवने स्पर्धा थइ ते समयनो // इतिहास में तमने संभळाव्यो, // श्लोक // अवापितामहकयांजनमेजयनूपतिः॥प्रीतःप्रसन्नहृदयोरुषिसप्तमपु | जयत्॥११॥ टिका ए इतिहास पोताना पितामहनामुखथी जनमेजय राजा सांभळीने प्रसन्न हृदय होतो हवो, अने सर्व रुषी मंडळने पूजतो हवो.४१ ॥श्लोक // ददौदानंतदाराजाभूमिगौहयकुंजरान् // वैशंपायश्चप्रीतश्चदत्वाशी चवनंगतः४२॥ टिका हर्षयुक्त जनमेजय राजा सांनळीने, भूमी गायो, हय कुंजरो नां दान यथार्थ रीते करितां हवां, अने तदपश्चात् वैशंपायनमुनि जनमेजय राजाने आशिर्वाद दश्ने वनप्रति तपश्चर्या करवाने गति करता हवा. ॥श्लोक॥ तत्रगंगाचयमुनाकुरुक्षेत्रंचपुष्करंतत्फलंसमवाप्नोतिनश्यतित्रिविधंत्र घः 43 ॥टिका. आजे कोइ ऋष्णन किर्तन सांनळेछे तेने गंगा यमनां, कुरुक्षेत्र प ष्कर ए सर्व तिर्थो नहावानु फळ प्राप्त थायछे एटलुंज नही पण सर्व पाप तेनां मुक्त थइ जायछे. 43 ॥श्लोक॥ यजनात्सेवनाद्विश्नोःस्नानादानाजपातपात्॥यत्फलंचनवेत्सर्वंतत्फ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. लंक्रष्णकीर्तनात् ॥४४॥टिका माटे करीने अाश्रावसरेतो यज्ञसवन स्नानदान ज | श्र, 63 पतपादिकथी पण नगवतनुं किर्तन सांनळवं, ते फळनी तुलनाने एके श्रावतं नथी. 13 इतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्याने उर्वशमिोक्षो नाम त्रयोदशोऽध्यायः॥१३॥ इतिश्री महानारते डांगवोपाख्याने उर्वशीमोक्षनिरुपणातहीकायांक्व कुलोद्भव ज यशंकर सत गंगाधर विरचितायां त्रयोदशोऽध्याय॥१३॥ ॥श्लोक॥ अच्युतंकेशवरामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवंहरे॥ श्रीधरंमाधवं | गोपिकावल्लभश्रीजानकीनायकंरामचंद्रनजे // 1 // ॥श्लोक // त्रिनंदेष्ठादिक्येशुभशरदिवर्षेशकवरो॥ऽष्टबाणेत्यष्ठौवाश्विनसफल मासेधवळके // सुपक्षेद्वीपुर्णेचांद्रदिनपतौवैतिथीवरे॥धनिष्ठानक्षत्रे॥गरकरणकेगंजयु जके // 2 // ॥षेलग्नेपेको नभवतिग्रहोंऽशानवधरा॥स्थितात्तस्माल्लग्ना गुणपरिमिते / भौमगुरवौ।तुरियेशुक्रोवै॥शानिरविबुधाःकतवरसे॥दशेचेद्रोंतेगुर्गणनकरगंगाधरजनौर। ॥इति टिका कारस्य जन्म सुचना // समाप्त॥ ॥श्री संवत् 1913 ना वर्षे शाके 1778 प्रवर्त्तमान्ये उत्तरायनगतेश्रीसूर्य|ष मासे क्रष्णपक्षे 3 भौमवासरे महेता गंगाशंकरेगस्वहस्तलिखितं // श्री॥ श्री॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ..नामां' तथा पंचभाइनी पोळमां महेता तमां मी. मंचरजी जम शेदजी पोष्टवालानेत्यां। दासनी दुकानेथी निचे ल खेलां पुस्तको मळशे. त 1-0. ०रतिस्वयंवर lllo 1.0.0 साधमती माहात्म 06. सहित 0.12.. आशीर्वाद नाटक .10. देका साये 0.12.. कमळाकुमारी नाटक 11 0.8.. कनाडा नाटक / 610 2-0.. भागवत सार 0.2.. नांदारशाह बहादशाहनी वात 60 ' तथा नाटको अने परचुरण वातोना पुस्तको For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दे पोताना समशेर बहादुर प्रेसमां छापी प्रसिद्ध कर्यु. मित्वनो एक प्रसिधकारे पोताने स्वाधीन राख्यो. For Private and Personal Use Only
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________________ www.kobairthorg Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir FREGAMANNARENERA SEX ईति श्री डांगवोपाख्यान सटिक PRESEASERIES भाबी कैसामनागर हरि शान दिश श्री महावार जन भाराधना AKAAS For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मासिक For Private and Personal Use Only