________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |रिणःस्मृताः // 17 // टिका. खरुं छे के अल्पबुद्धि जे तणे करीने, प्रेरायला पांडवोए, आपणो चोर डांगव तेनुं रक्षण कर्युछे, एतो आपणा वैरी जणायछे. 17 ॥श्लोक।धन्यास्तेधार्तराष्ट्राश्चडांगवानचरक्षितः॥ त्वंचद्वषंप्रकुर्वाणोकौरवाहित कारकाः॥१८॥टिका. धन्य छे ए सोभाइ ध्रतराष्ट्रना पुत्रोने के जेमणे डांगवने शर्ण न राख्यो, तेना उपर तमे हे नाइ परिपूर्ण देश करेलो छे, पण आज जोताए आपणा हितकारकछे. 18 ॥श्लोक। सहदेवस्तुदैवझोनकुलोबालएवच ॥अत्याहारीसदाभीमोधर्मोधर्मभ्रतां | वरः // 19 // टिका. सहदेव तो देवझछे, बिजी कां अकल जणाती नथी, एम जोतां नकुळमां बाळ चेष्टाछे, अधिक विचार करीये छियेतो, निमसेन अत्याहारी,अने युधिष्ठीरतो महाराजा एना पाठ पुजनथी परवारे एवो नथी. ॥श्लोक॥ पंचमध्येरणेतिष्टेदेकोशक्रसुतोबलःतंचजेतुंरणेभ्रातर्समर्थोहंमहाबली॥ 20 // टिका॥ ए पांच जणामांथी रणमां उभो रहे एवोतो ईंद्र पुत्र अर्जून जणायछे, | अने ते बळवानछे, माटेहे भ्रात एने जितवाने तो हुँ बळवान बळभद्रछु कांइये चिंता न धारण करशो. 20 ॥श्लोक। इत्येवमुक्तावचनंतुश्नीमापबलोनृप // कृष्णोनह्यब्रवीत्किंचिन्नाभ्यनंद | For Private and Personal Use Only