________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie डाग. || देता मुनिने युक्तिथी अटकाव्या, एवा तमे, अल्प बुद्धिवान पांडवोर्नु रक्षण करता | अ, 44 | फरोछो. 13 ॥श्लोक // लाक्षागारेत्वयाभ्रातर्सभामध्येचपांडवान् // दग्धंचखंडववनंरक्षिताते पुनःपुनः॥१४॥ टिका॥ हे भाइ तमे पांडवोने माटे थोडो श्रम कर्यो नथी. लाक्षागा रमां बळता उगार्या, अने वळी जे समय खांडव वनमां अग्नी उठ्यो, ते समय प ण तमे रक्षण कर्यु, एम वारमवार लपटायाछो. 14 ॥श्लोक॥ यदाकर्मक्रतंसर्वतदाप्राप्तंचदुष्कतपयसावर्धितेसोवर्धितरंसभक्षति॥ 15 // टिका. ज्यारे तमे एवां एवां क्रत्य कर्या, तहारे तमने आ समय आव्यो छे, तो हवे भोगवी ल्यो, ज्यम कोइ अल्पबुद्धिवान् दूध पाइने सर्प नछेरेछे. तोते विश धर तेने दंश करवू इच्छेछे. श्लोकसिंहभागंयथाद्वांक्षोभक्षतिजातमत्सरःअस्मद्भागोतदाभ्रातपांडवैर्भक्षितो नृप // 16 // टीका. जातमत्सरःनाम उत्पन्न थयोछे, मत्सर ते जेने, एवो जे शिश्राळ ते सिंहनो भाग. वांच्छेछे एज प्रकारे हे भ्रात ए प्रकारे पांडवो आपणो नाग भक्ष क रवो धारेछे. // 16 // ॥श्लोक॥चौरोवैडांगवोराजारक्षितोह्यल्पबुद्धिनिःनवैपितृस्वस्रेयाश्चपांडवा:वै 44 For Private and Personal Use Only