________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org दाग 10 सांप्रतं // 49 // यका-हे दुर्बुद्धे ! महा गर्वनी नरेली तुं ईंद्रना मुख भागळ नृत्य करवा पाप नथी तुंतो भुलोकने विशे घोडी थइने सांप्रतकाळ पञ्च. 49 ___॥श्लोक // तदाचंद्रश्चभीतोवैदेवाःसर्वेमुनीश्वरप्रोचुःक्षमस्वभोयोगिन्याहिपाहि जगद्गुरो // 50 // टीका-मुनिनां क्रोधमय वचन सांभळीने ईंद्र तथा देवो भयभित थई गया अने सर्वे मुनिनी प्रार्थना करवा लाग्या, हे योगीराज जगत्गुरु रक्षण करो रक्षण करो क्रोधने शमावो. 50 ॥श्लोक॥अज्ञानात्कथितंवाक्यंचानयाभोद्विजोत्तम प्रसन्नोभवविद्रशापंमोचय सात्रतं // 51 // टीका-दे लगवान् अग्नानथके एवां एणे पाचर्ण करयां हे द्विजोत्तम प्रसन्न थइने एने शापथी मुक्त करो. 51 लोक॥ दुर्वासाःअण्वताप्राहसर्वेषांनिशिउर्वशी। स्त्रीदिनेतुरमीदवाभविष्यति वचोमम // 52 // टीका-सर्व देवोनां दीन वाक्य सांभळीने दुर्वासा प्रसन्न होता हवा, अने सर्वना सांभळतां शापर्नु निवारण करे छे के हे उर्वशी तुंदिवसे तुरगी। अने रात्रीए स्त्रीरुप थजे एवं माझं वचन छे. 52 लोकसप्ताईवजसंयोगान्मोक्षश्चैवभविष्यति एतावदुतावचनंजगामसवने मुनिः // 53 // टीका-साडावण वजनो संयोग थयेसते तारो मोक्ष थशे ए प्रकारनां 10 For Private and Personal Use Only