________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मनने विशे विचार करे छे. 45 ॥श्लोक॥ यत्रवैनगवान्द्रोब्रह्माभानुश्ववासव : तवयोग्याममक्रीडाजटिलेष कदानाहि // 46 // टीका-अहो ! था जटीलना आगळ मारु नृत्य मिथ्या जशे, मारु नृत्य तो शाक्षात् भगवान् रुद्र ब्रह्मा भानु ईंद्र, तेने जोवा योग्य छे कारण के ते समजी शके छे. 46 ॥श्लोक। वृद्धोवैबधिरश्चांधःकिंजातिःकिंस्वरान्मुनि : एतावदुत्काशृंगारान्विपरितान्दधौचसा॥४७॥ टीका-अरे! श्रा मुनि तो घणा वृद्ध अने काने पण सांभळता नहीं होय, अने नेत्र पण अंध जेवां देखाय छे, ए भारा मधुर स्वरने शुं शांभळशे, एम विचारीने अवळा विप्रित शणगार धारण करे छे. 47 ॥श्लोक // कुपितोमुनिशार्दूलोदुर्वासाउशिनृपधिग्रूपं धिक्कलागानमनिनिंद सिचापले // 48 // टीका-हे नृप, हे जन्मेजय, उर्वशीना उलट पालट शणगार जोइने अने तेना मनोविचार जाणीने, दुर्वासा महा कोपायमान थइने निंदा करता हवा, हे चपळे तारा रुपने धिक् छे तारा गानने तारी कलाने तारा नृत्यने पण धिक् छे, एम कहेताथका शाप दे छे. 48 ॥श्लोक // गणमहतायुक्तासींद्रयोग्याहिनोशि॥ भूलोकंपश्पदुर्बुद्धेतुरगाभव || For Private and Personal Use Only