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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. ॥श्लोक ॥वसमुद्रोतडागंचक्वपंकोकचंदनःक्वसिंहोक्कहरिणश्चवलंमेपश्यसंगरे॥८ अ५२ टिका, क्यां समुद्र अने क्या तळाव, क्यां चंपक अने क्यां चंदन, क्यां सिंह ने क्या 12 हरणी, एमछे तोयेपण श्रा समयमा महारु बळ जुत्रो. 8 ॥श्लोक॥ इत्येवमुक्त्वावच सहदेवचोऽब्रवीत् // 0 // टिका.ए प्रकारे कृष्ण प्रत्ये। कहिने अर्जून जे तेतो सहदेव प्रत्ये बोलता हवा. . अर्जुनयाच० अर्जुन शुं बोलता हवा. ॥श्लोक // त्वंचनातर्महाप्राज्ञदैवज्ञोसी चनमृषा॥भवत्वंसारथिर्नेद्यक्रष्नेनसहसंगरः 9 // टीका. हे सहदेव, हे भात तुं महा| प्राज्ञ, डाह्यापण नो भरेलोड्रं, एटलुज नही पण दैवनी रचनाने जाणीशके एवो तहा। रो महिमा कोइ दिवस असत्य न वर्ते माटे करीने जोतुं महारो सारथी एटले रथ हां कनारो थाय, तो हुँ निश्चयपणावडे क्रष्णनी साथे संग्राम करु. 9 सहदेवउवाच॥हवे सहदेव शुं बोलता हवा.॥श्लोक ॥वासुदेवस्यसंग्रामेजयो ऽस्माकंभविष्यति॥इत्येवमुक्तामाद्रिजो॥ रथारोहश्वभारत॥१०॥ टीका, वारु ठिक | नाइ धनुर्धर अर्जुन श्रा कार्यमां आपणो जय थशे, एवं वचन बोलीने माद्रिनो पुत्र | जे सहदेव तेतो क छपाळतो थको रथ हांकया बेशी जतोहयो, ए प्रकारे वैशंपायन जन्मजय प्रत्ये बोले. 10 For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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