SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie ॥श्लोक॥ तावच्चद्रपत्रेणमुक्ताःपंचशीलिमुखाःआगताःत्वरितापादौक्रश्नस्यपेतु राज्ञया॥११॥ टिका. अने जे समय सहदेवजी सारथी थया के तात्काळ, ईंद्र पुत्र जे अर्जून तेमणे पांच शर मुक्या, तेतो क्रश्ननी प्रदक्षिणा फरीने पादारविंदने नम न करेछे. 11 ॥श्लोक ॥तावक्रश्नेनतेपूर्वपूजिताःजनमेजय // श्रागताश्चपूनर्नूपयत्रसोकुंतीनंद नः // 12 // टीका-जे समय अर्जुनना बाण क्रष्णना समीप श्राव्या, ते समय एबाण नुं पूजन भगवाने कर्यु, अने हे जन्मेजय जे समय पूजन कर्यु के तात्काळ,ए बापत्र जूनना नाथामां पेशी जता हवा 12 ॥श्लोक॥द्रष्ट्रास्वमार्गणान्जिप्नुधनुःघोषांश्चकारह // तिष्टेतिप्रवदन्वाक्यंसप्त बाणान्मूभोचह 13 टिका. पोतानां क्षेपण करेला बाण पाछा आव्या, तेजोइने को घे भरायलो जे अजून तेतो फरीने धनुषना टंकार करेछे, एटलुंज नही पण उभा रहो उभा रहो, एम कहीने सात बाण मुकेछे. ॥श्लोक। चर्भिश्चतरोवाहानेकेनसारथिंप्रभोःएकेनताडयत्क्रप्नंचैकनसहजोरथः 14 // टिका. तेमांना चारबाण वडे करीने च्यार अश्व, रथना नाश पाम्या, एक बा वडे करीने सारथी मूछींगत थयो, एक बाणे द्वजा सहित रथ भागि गयो, अने ए| For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy