SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // श्वासंमंचतिनृपः // 34 // टीका-मने वाहाला एवा जे ऋष्ण तेना शत्रुने कोण / राखनारछे कोइ नहिं राखे एवां शिवनां वचन सांभळीने मुखथी निसासानाखेछे.३१ ॥श्लोक। गतोसौवायुवेगेनहस्तिनापुरमुत्तमंयत्रराजाघार्तराष्ट्रो // भीष्मोद्रोणो। जयद्रथः // 35 // टीका-वळी पोताना मनने विचार करे छे के चाल हस्तिनापर जउ / | एम तर्क बांधिने वायुवेगवडे करीने उत्तम एवं जे हस्तिनापुर तेने पाम्यो, जे ठेकाणे, / धार्तराष्ट्र, भिष्म, द्रोण, जयद्रथ, बिराज्यमान छे. 35 ॥श्लोक॥ कर्णोदुःशासनोद्रौणिभगदत्तश्चबलिंक : एतेचान्येचबहवोसभायांसं स्थिताविभो // 36 // टीका-अने वळि तेथकी बिजाय पण, कर्ण, दुष्यासन, द्रौणी, नगदत्त, बालिक, एथकी अन्य बिजाए पण सभामां विराज्या छे. 36 श्लोक॥ डांगवोडांगवद्भूमौपपातकौरवान्नृप // उवाचवचनंभूयोहदिसंजातवे पथुः // 37 // टीका-डांगव राजा डांगनी पेठे कौरव प्रत्ये साष्टांग, नमन करीने हृदयने विषे छुट्योछे कंपारो ते जेने एवोथको वारंवार वचन बोले छे. 37 डांगवउवाच॥ डांगव शुं बोले छे; ॥श्लोक॥शृणुदुर्योधननूपममापिमधुसूदनः तुरगीकारणंदेवआगतोऽहंनवत्पुरे // 38 // टीका-हे दुर्योधन भूप, तमे सांभळो मारी तुरगी क्रष्ण हरण करी जाय छे माटे तमारा पुरने विशे आव्योछु. 38 For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy