________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. वाक्यमब्रवीत् // 30 // टीका-एम विचारीने ते डांगव उतावळो अश्वनि उपर प्रारो- अ. 22 हण करीने ज्यां महेश्वर देव छे त्यां आव्यो, अने गौरिना इश एवा जे शंकर तेने 5 नमस्कार करीने वाणि बोले छे. 30 ॥डांगवउवाच॥ डांगव बोलतो हवो; ॥श्लोक // देवदेवजगन्नाथगौरीनाथ जगत्पते कृष्णात्तुभयमापन्नोदेहिमेशरणंतव // 31 // टीका-हे देवना देव, हे जगंनाथ, हे गौरीनाथ, हे जगत्पते, ऋष्णे मने भय उत्पन्न करयो छे माटे शर्ण राखो तमारे शर्ण श्राव्योछु. 31. ॥श्लोक॥ तस्यतद्वचनं श्रुत्वाहरोवचनमब्रवीत्॥ देहिक्रष्णस्यतुरगीयदिजीवि तुमिछसि // 32 // टीका-तेनों वचन सांभळीने हर बोले छे हे राजा तुं क्रष्णने तुरगी आप, जो जिवq इच्छेतो. 32 ॥श्लोक॥ अनिरुद्धस्यचोद्वाहबाणयादवसंयुगे॥ अज्ञानेनक्रतंयुद्धहरिणासह नूपते // 33 // टीका-हे नूपते में कोइक समयने विशे अनिरुधना विवाहमां बाणासुरने यादवनो संग्राम थयो त्यारे अज्ञानवडे करीने हरि साथे हुँ लड्यो, त्यारकेडे मारे घणी मित्रता छे. 33 ॥श्लोक॥ ममापिवल्लभःऋष्णस्तस्यारिकोनरक्षति // शिवस्यवाक्यमाकर्ण्यनि- 22 For Private and Personal Use Only