________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक॥ तद्भवाद्रक्षभोस्वामिन्त्राहित्राहिमहाप्रभो॥विरंचिर्वाक्यमाकर्ण्यप्रत्य। वाचनृपंप // 26 // टीका-हे प्रभो ए नयथकी मने उगारो, उगारो, एवां वचन | विरंचि सांभळीने डांगव प्रत्ये बोले छे. 26 ब्रह्मोउवाच॥ ब्रह्मा शुं बोलता हवा; ॥श्लोक // दुर्मतेशृणुमहाक्यमस्माकं वल्लभोविभुः॥ एकवारंमयाराजन्नपराधःकृतःप्रभोः॥२७॥ टीका-हे दुर्मते मारुं वाक्य सांभळ, मने तो क्रष्ण वाहाला छे एकवार में एमनो अपराध करयो छे. 27 . ॥श्लोक। वछाहरणकतीरंनलब्धोमहिमाहरे : देवदेवस्यक्रष्णस्यकःकुर्यादप कारक॥२८॥ टीका-पूर्वे ऋण गायो दोहोता हता ते समयमां में बच्छर्नु हरण करि लिधुं त्यारे नवी श्रष्टीना वच्छकरिने गायो दोहोवालाग्या ए हरिनोमहिमा हुँ जाणुंछु माटे देवना देव एवा जे क्रष्णा तेनो अप्कार कोण करे एवं छे. 28 ॥श्लोक॥ विभोर्वचनमाकर्ण्यक्रष्णक्रोधेनडांगव : यस्यदेहेक्षमाशांतिकस्मात स्मिन्वलंभवेत्॥२९॥ टीका-समर्थ एवा ब्रह्मानां वचन सांनळीने ते जे कोई डांगव तेतो क्रोधवडे करीने अकळायां जाय छे अने वळी तर्क बांधे छे के, जेना अंगने विषे क्षमा शांति रहेली छे तेने बळ शानुं होय के ए मारुं रक्षण करे. 29 / // श्लोक // डांगवःशीघ्रमारूढोयत्रदेवोमहेश्वरः॥ नमस्कृत्यचगौरीशंडांगवो For Private and Personal Use Only