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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. ॥श्लोक॥ पृथिव्यांकनवीरणनिराशांचक्रताकिमु // देहिमांशरणवीर,त्वत्समो अ. 23 नास्तिकोपरः॥३९॥ टीका-प्रथवीमांकोइ विरे मने शर्णनाप्राप्युंमाटे निराश थयोछु, हे भूपाळ तमारा सरखो कोइ शुरविर नथी एज हेतुथी तमे मने शर्ण राखशो. 39 ॥श्लोक॥ समर्थतेभ्रातृशतंयादवान्प्रतियुध्यति // डांगवस्यवचःश्रुत्वाचातन् दुर्योधनोऽब्रवीत् // 40 // टीका-हे महाराजा तमे यादव प्रति लडवाने सो भाइ समर्थछो एवां डांगवनां वचन सांभळीने दुर्योधन बोले छे. 40 दुर्योधनउवाच॥ दुर्योधन करण प्रत्ये शुं बोलतो हवो; ॥श्लोक॥ वयंयुद्ध समर्थाश्चमहांतोमात्रबंधवः॥ भ्रातापिभ्रातरंहन्यातत्पितापत्रंचमातलं॥४१॥ टीका-हे कर्ण राजा, आपणे युद्ध करवाने समर्थ छीए, अने क्षत्रीनो धर्म छे अनितिए चालनारने सिक्षा करवी. ते ठेकाणे नाइ, बेन, पिता, पुत्र, मामो होय, तथापि अनितिए चालनारने हणवो एम क्षत्रीनो धर्म छे. 41 ॥श्लोक। स्वधर्मेचनवेश्योह्यन्यधर्मेभयोभवेत् // शरणार्थीनृपोरक्ष्योभवतांय |दिरोचते॥४२॥ टीका-स्वधर्म पाळिए तो श्रेय थाय ने अन्य धर्मे भय उत्पन्न थाय | | माटे जो तमने रूचिकर होय तो पा राजानुं रक्षण करीए. 42 कर्ण उवाच॥ कर्ण दुर्योधन प्रत्ये बोलतो हवो; ॥श्लोक। नदेयंशरणंभ्रातः 23 For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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