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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पांडवान्प्रतियो जयपांडवानांहरेर्षितिःनभूतोनभविष्यति // 43 // टीका-हे नाइ पांडव प्रत्ये मोकलो, आपणे शर्ण नथी राखवो पांडवने ने हरिने घणी प्रीति छे, हवे ए केवो क्षत्रीनो धर्म साचवे छे ते जुवो. 43 ॥श्लोक॥ अहंकारेणरक्ष्यतिपांडवावलवत्तराः अन्योन्यंचभवेद्वैरहरिपांडवयो मिथः // 44 // टीका-अहंकारवडे करीने पांडवो एनुं रक्षण करशे अने घणा बळवत्तरपणाने पाम्या छे माटे अन्योअन्न वैर थवा द्यो. 44 ॥श्लोक॥ करणस्यवचःश्रुत्वासर्वसाधुवदन्नृपाः निरुपणेडांगवोराजाजगाम इंद्रप्रस्थकं // 45 // टीका-करणनां वचन सांभळीने सर्वेए डोक हलावी अने खरं मान्युं तेथी डांगव राजा निराश थइने इंद्रप्रस्थ श्राव्यो. 45 ॥श्लोक // चतुर्योजनविश्लेशोकौरवान्पांडवान्प्रति इंद्रप्रस्थमाहाराजाराज्यं कुतिपांडवा : // 46 // टीका-कौरव अने पांडवने चार योजन छेटुं छे अने इंद्रप्रस्थमां पांडवो राज्य करे छे. 46 ॥श्लोक। रुदन्नलिनवन्नेत्रेगद्गदोडांगवानृप : सूर्यश्चास्तंगतोयावत्पांडवानांपुरे गतः॥४७॥ टीका-कमळना सरखां छे नेत्र ते जेनां, एवो डांगव राजा गदगद | कंठे रोतोथको जे वखते सूर्यास्त थवा लाग्यो ते समय पांडवनुं पुर ईंद्रप्रस्थ तेने For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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