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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir थया,तद पश्चात् क्रष्णे शुक्रत्य करयु,ए कथा हे जन्मेजय तु सांनळ्य. 13 ॥श्लोक। चत्वारोसेवकाराजन्क्रष्णस्यचअतिप्रीयाः॥ माधवेनचमुक्तास्तेशोधने डांगवस्यच // 11 // टीका-हे जन्मेजय,क्रष्णने वाहाला एवा च्यार सेवक हता,तेने च्यारे दिशाये प्रेरया,कारण के तमे डांगवनो शोध करो,एने कोणे शर्ण राख्योछे. 14 ॥श्लोक॥ अागताप्रथमंतस्यनगरेजनमेजय लब्ध्वावापुनःप्राप्ताशेषनागस्य मंदिरे // 15 // टीका-ए सेवको प्रथमतो डांगवना नगरने विशेाव्या, प्राविने वार्ता जाणी के डांगव राजा शेषने शर्ण गयो छे,तेम जाणी शेषनाग पासे गति करेछे. 15 / ॥श्लोक // शेषात्तुतस्यवातिश्रुत्वागछन्नगालये // विध्यंचैवनमस्कृत्यप्रोचुस्ते / सेवकाहरे॥१६॥ टीका-शेषने सर्व वृत्तांत पुछयु,ते सांनळीने नगाळय जे विंध्याचळ | पर्वत,तेनी पासे श्रावता हवा,त्यां आवीने नमस्कार करता सता पुछछे. 16 ॥श्लोक // आगतोडांगवोराजाक्रष्णस्परिपुपर्वत // तेषांवचनमापाद्यनगेन / कथितंचतत् // 17 // टीका-हे पर्वत हश्यां क्रष्णनो शत्रु डांगव राजा आव्यो छे, ते सांभळीने पर्वते जबाप दीधो के में एने शरण राख्यो नथी, अने एतो समुद्र पासे गयो छे. 17 ॥श्लोक // गतास्तेवायुवेगेनसमुद्रांप्रतिनारत // सुभद्रात्तस्यवार्ताचश्रुत्तास्व For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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