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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie डोग. / स्थेनचेतसा // 18 // टौका-एरीते पर्वतनां वचन सांभळीने हे भारत क्रष्णना 31 अनूचरो समूद्र प्रत्ये जता हवा, अने जश्ने पुछे छे तो एणे डांगवने शर्ण नथी राख्यो, एम स्वस्थ चित्ते जांणी लीधुं. 18 ॥श्लोकगतास्तेब्रह्मणोपार्श्वनमस्क्रत्यपितामहं // प्रक्दस्तेमहाराजडांगवस्य विचेष्टितं // 19 // टीका-तदनंतर ते अनुचरो ब्रह्मापासे जइने नमस्कार करे छे, हे पितामह, तमारीपासे डांगव आव्यो हतो एनी अमने भाळ बतावो. 19 ॥श्लोक // ब्रह्मणाकथितंसर्वश्रुत्वाकैलासमागमत् हरस्पवचनात्सर्वेचागताहस्तनापुरे // 20 // टीका-ब्रह्माए संघटु वृत्तांत का जे माहारी पासे आव्यो हतो | परंतु में एने नथी राख्यो. अने कैलास प्रति गयो छे, एम खबर सांभळीने ऋष्णना अनुचरो हरपासे जइ पोहोच्या,अने शिवने पुछेछे तो शिवे पण तेने शर्ण नथी राख्यो / अने हस्तिनापुर गयो छे,एम सांभळी अनुचरो हस्तिनापुर गति करता हवा. 20 / ॥श्लोक॥ यत्रवैधार्तराष्ट्राश्वसर्वएवमहारथाः नमस्क्रत्यचराज्ञावैप्रोचुक्रष्णस्य | किंकराः // 21 // टीका-जे ठेकाणे धात्राष्ट्रर जे कोइ दुर्योधनादिक् सो भ्रात महा | बळवान बिराज्या छे,त्यां श्राविक्रष्णना किंकरो नमस्कार करताथका बोले छे. 21 ॥किंकराउचु॥ किंकरो शुं बोलता हवा; ॥श्लोक // अहोदुर्योधननृपक्रष्ण || For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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