________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्पारिर्भवत्पुरे दर्शयत्वमहाराजतदादुर्योधनोऽब्रवीत् // 22 // टीका-अहो इति / आश्चर्य हे दुर्योधन नुपति, ऋष्णनो रिपु डांगव तमारा पुरमा श्राव्यो छे ते अमले / देखाडो, ते सांभळी दुर्योधन बोले छे. 22 दुर्योधनउवाच॥ दुर्योधन शुं बोलतो हवो; // श्लोक // श्रागतोमत्पुरेसोयं अस्माभिर्नचरक्षितः गतोवैडांगवोराजापांडवानांपुरतथा // 23 // टीका-हे अनुचरो, ए मारा पुरने विशे आव्यो हतो परंतु में एने नथी राख्यो, ए डांगवतो पांडवना पुरने विशे गयो छे. 23 ॥श्लोक॥ भीमेनरक्षितोसोयंसुनद्रावाक्यकारणात्॥ एतछतंवचोऽस्माभिपांडवै रक्षितोसदा // 24 // टीका-एटलुंज नहीं पण भीमसेने सुभद्रानुं वाक्य पाळवाना हेतुथी पांडवोए एनुं रशण करयुं एम माहारा काने आव्युं छे. 24 ॥श्लोक। धार्तराष्ट्रस्यवचनंश्रुत्वाकृष्णस्यकिंकरा : परस्परंवदत्त्सर्वेकोविचारश्च क्रियतां // 25 // टीका-ए रीतनां दुर्योधननां वाक्य ऋष्णना किंकर सांभळीने परस्पर विचार करेछे ने आपणे शुं करवू. 25 ॥श्लोक // भीमसेनोमहाक्रोधीजानीयान्नोस्यशोधकान् // हनीष्यतिनसंदेहः नावकार्याविचारणा // 26 // टीका-अरे मित्रो भिमसेन तो महा क्रोधी छे ने For Private and Personal Use Only