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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥क्रष्णोउवाच॥ ऋण ज्यादवो प्रत्ये शुं बोलता हवा; ॥श्लोक // सात्यकेशृणु / महाक्यंपांडवैर्ममहेलनं क्रतोनैचापराधश्चडांगवोरक्षितोयदि॥२॥ टीका-हे सात्वको माहारूं नवाइन वाक्य सांनळो, पांडवोए तो माहारी हेलना करी छे, जुवो आपणे घणु घणुं एमर्नु राख्युं छे, परतुं डांगवने एमणे शरण राख्यो. 2. ॥श्लोक // उपायोकश्वकर्त्तव्यशंसमेपांडवान्प्रति श्रीक्रष्णस्पवचःश्रुत्वासात्यकि वाक्यमब्रवीत् // 3 // टीका-हे यादवो हवे पांडवो साथे प्रापणे शो उपाय करवो, एवां क्रष्णनां वचन सांनळीने सात्यकी बोले छे. 3 ॥सात्यकीउवाच॥ सात्यकी शुं बोलता हवा; ॥श्लोक॥ आदौयुद्धंनकर्त्तव्यं पांडवावोसबंधिन: प्रद्युम्नंयोजयेदेकेसिक्षांददामिपांडवान् // 4 // टीका-हे प्रभो, आपणे प्रथम तो युद्ध एमनी साथे न करवू घटे, कारण के श्रापणा संबंधी केहेवाय, माटे करीने, प्रद्युम्नने मोकलो जे पांडवोने समजावे. लोक॥ सात्यकेर्वाक्यमाकर्ण्यसाधुसाध्वितिवादिनः प्रद्युम्नंरुक्मणीजातंप्राह लक्ष्मीपतिर्नुप // 5 // टीका-एवं वचन नगवान् सात्यकीन सांभळीने, सत्य कहोछो सत्य कहोछो एम केहेताथका,रुक्ष्मीना पुत्र जे प्रद्युम्नजी तेमने तेडीने केहेता हवा.५ ॥क्रष्णउवाच॥ हवे क्रष्ण प्रद्युम्नने शु केहेता हवा ; ॥श्लोक। गच्छपुत्रमहाबाहो For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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