SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir विद्रतवागमनकारणं // 37 // टीका-इंद्र बोलता हवा; हे महाराज प्राज़नो दिवस धन्य छे, अने मारा सुक्रतने धन्य छे; हे प्रभो तमारा सरखा मुनेंद्र पधारया है विप्रेद्र तमारीशी इच्छाछे अने तमारु आवागमन शाकारणेछेते,मने अाज्ञाकरो.३७ ॥श्लोक।।।दुर्वासाउवाच॥ अहंजरटोजातोक्छुकालंतपःस्थित इंद्रियाणांचों पार्थमागतोऽहंसुरेश्वर // 38 // टीका-दुर्वासा बोलता हवा; हे सुरेश्वर हुँ तप करी करीने बहु कालथी सुकाई गयोधू, माटे मारी इंदित्रीने संतोषवाना का| रणथी तारी पासे श्राव्योछु. 38 ॥श्लोक // ऋषेर्वचनमाकय॑यत्क्रतंहारणातदा सुगंधललेपेननित्यं स्नानसमा | चरेत् // 39 // टीका-ते समयने विशे मुनिनां वचन द्रिराजा सांभदिने नाना प्रकारनां सुगंधीमय तैल चोलताथका मुनिने स्नान करावे छे. 39 श्लोकभक्ष्यंचतुर्विधंस्वादुषसैश्चरमान्वितं पुष्पाणांवासनानित्यमांद्रियाणां चतुष्टये // 40 // टीका-स्नान कराया अनंतर सवासी पुष्पना हार कंठे आरोपण करी दिधा छे, नाना प्रकारना पस स्वादिष्ट भक्षने वास्ते तथा इंद्रियोना संतोषने वास्ती महो आगळ मुकी दिधा छे. 40 ॥श्लोक // नानाविधाचनाकस्यशोभाद्रष्टाहिजैनवै सर्वोमनोरथस्तस्यपरिपूर्णो For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy