________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. अ.२ जे दुर्वासा मुनी श्राव्या छे. 32 . ॥लोक॥ प्रतिहारोगतःशीघ्रमिंद्रप्रोवाचप्रेमत : दुर्वासामनिरायातःपोलिकायां नरोत्तम // 33 // टीका-ए प्रकारे दुर्वासानां वचन साभलिने ते जे कोइ प्रतिहार ते तो महा प्रेमवडे करीने ईंद्रना सन्मुख थयो थको बोले छे के हे नरोत्तम हे सुरेश्वर श्रापना धामने विशे दुर्वासा मनी पधार्या छे. 33 ॥श्लोकाप्रतिहारस्यकथनादत्थितस्त्रिदशैसह॥ आगतस्त्वरितोराजादुर्वासायत्र तिष्ठति // 34 // टीका-एवं वचन प्रतिहारेका के तेज समय महेंद्र पोताना प्रासनेथी उठीने सर्व सभा सहीत ज्यां दुर्वासामुनी उभाछे,ते स्थळने विशे श्रावता हवा.३४ ॥श्लोक॥ नमस्कृत्यचयोगींद्रनृत्यवादित्रनिस्वनैः आनितःसदसिराजनिषसाद निजासने॥३५॥ टीका-प्राचीन महायोगेंद्र एवाजे कोइ दुर्वासामनी तेमने नमस्कार कराने गीत वाजिंत्र वगडावता थका सभाने विशे पोताना श्रासन उपर बेसारेछ. 35 ॥श्लोक // पादौ प्रक्ष्याल्यविधिवदुपवीतंददौदरि : अर्धपाद्यंतदाक्रत्वावासवो वाक्यमब्रवात् // 36 // टीका-ए जे कोइ हरी जे ईंद्र ततो विधीवडे करीने अर्धपाद्य पुजन् करताथका उपवित अर्पण करीने हाथ जोडीने वाणि बोलता हवा. 36 . ॥श्लोक॥ ॥ईंद्रउवाच॥ धन्योहंकृतकृत्योहंमग्रहत्वेसंमागतद्ः // किंकरिष्यामि For Private and Personal Use Only