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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मतानृप // 18 // टीका-प्रद्युम्नने प्रावतो जाणीने सुभद्राजी तेतो पोताना श्रनिमन्यु पुत्र सुद्धां, भीमसेनना घरने विशे ज्यां डांगवने राख्यो छे, ते ठेकाणे नेगां बेसतां हवा. 18 ॥श्लोक। प्रद्युम्नचैवदृष्टाचधर्मपुत्रोयुधिष्ठिर : अर्जुनश्चैवनकुलोमिलित्वास्थित मासने // 19 // टीका-अने युधिष्ठिर, अर्जुन, सहदेव, नकुळ तेतो प्रद्युम्नने जोइने एकबीजाने आलिंघन करता सता शुभासने बेसारे छे. 19 लोक॥ अन्योऽन्यकुशलंप्रष्टाप्रोवाचक्रष्णनंदनः॥ युधिष्ठिरंयथातथ्यं नीमसेनसनाषणं // 20 // टीका-एकबीजाने अंन्योअन्य कुशलता पुछीने, कृष्ण नंदन जे प्रधुम्न तेतो युधिष्टिरने केहे छे के भो धर्मराज आजतो मने भीमसेने वदु। भयभीत करी नांख्यो छे. 20 ॥श्लोक // उच्चाटनंडांगवस्यकथितंधर्मनंदनं प्रोवाचबांधवानाजाष्णिविग्रह। कातरः // 21 // टीका-हे धर्म नंदन भीमसेने डांगवने शरण राख्यो, तेणेकरिने / कृष्ण सुदां यादवोने त्रास पड्यो छे, जे हवे शुं करवं, पांडवोने आ रीत करवी | न घटे, कारण के ए आपणा संबंधी ठरवा माटे मने मोकल्यो छे, एम सांनळी युधिष्टिर कुंता माता प्रति बोले छे. 21 For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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