________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir डांग. क्रष्णने दुःख उपन्युं छे, जो तमे मानो तो सुख थाय, एवां वचन भीमसेन प्रद्युम्ननां भ सांनळीने, महा क्रोधातुर थयाथका, लाल लोचन करि नांखे छे. 14 श्लोक गच्छ!गच्छ!ष्णसुतनदेयोडांगवोनृपःकिंकरिष्यामिबालस्त्वंसद्योहन्मिन संक्षय H // 15 // टीका-जा!जा!क्रष्णासुत!!श्रा शुं बोले छे,माहारुं सत्य चुकववाने तुं आव्यो , परंतु ए डांगव तो माहारा प्राण साथे छे, अल्या तुंशुं करवानोछे?हवे बोलीश तो धोलो बे मारीश. 15 ॥श्लोक // नीतोक्रष्णसुतोराजन्भीमसेनस्यभाषणात् // त्वरितोउत्थितोभीतो धर्मपुत्रस्थवेश्मनि // 16 // टीका-हवे न्यां एवं भीमसेनना मुखमांथी सांभळ्युं के तात्काळ, ऋष्णसुत जे कोइ प्रद्युम्न तेतो, धर्म जे युधिष्टर तेमना मंदिर प्रति गति करे छे. 16 ॥श्लोक॥ युधिष्टिरश्चनकुलोअर्जुनोसहदेवक : पांचालीचैव कुंतीचसर्वधर्मस्य / मंदिरे // 17 // टीका-हवे ते ठेकाणे तो, युधिष्टिर, नकुळ, अर्जुन, सहदेव, पांचाली जे द्रुपदी,तेथकी अनंतर कुंता,सर्व बेशीने वातो करयां करेछे,अने सुभद्रा जे प्रद्युम्ननी फोई तेतो आघां पाछां खशी जाय छे. 17 ॥श्लोक // ज्ञात्वाप्रद्युम्नमायातंसुभद्राससुतानृप // भीमसेनस्कसदनेडांगवार्थ / 34 For Private and Personal Use Only