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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. मब्रवीत् // 37 // टीका-ए हेतु माटे हे यूधिष्टीर बाप अजूनने मोकलो, जे भीमसेनने अ. 37 समजावे, एवां प्रद्युम्ननां वचन सांभळीने अर्जून बोलेछे. | श्लोकासक्रोधीभीमसेनोवैअहंचैवतुताद्रशः॥डांगवंतुहनिष्यामिनात्रकार्याविचारणा त्॥३८॥ टीका-अरे भाइ तुं मने मोकलछ, परंतु एभिमसेन अत्यंत क्रोधी अने श्राडा बोलोछे, माटे महाराथी ए सदन थशे नही, ढुं पण एना सरखो तिक्षण थइने डांगवनो घाट घडीश, ए वाते का विचार न करशो. ॥श्लोक। एतावदुक्तासंन्नरोअर्जुनोगतवान्नृपंतदाचद्रौपदीनारीसन्मखंचैवमाग ता॥३९॥ टीका-एवां वचन कहेतां सतां अर्जुन पण भीमना सदन प्रति गति करछे, ते समयमां द्रौपदी नारी वेगळे समीप आवीने बोलेछे. प्रोवाचअर्जुनंवाक्यंपांचालीप्रेमवल्लभा॥टीका-प्रेमवल्लना एवी जे कोइ पांचाली। तेतो अर्जून प्रति नम्र वाक्य बोले छे. द्रौपदीउवाच // द्रौपदी अर्जून प्रति शुं बोलती हवी. ॥श्लोक // कुर्वकिमुद्यतोनूत्वाडांगवंमाविमोचय // पत्नी चभवता राजन्पुत्रयुक्तानराधिप॥४०॥ टीकारे स्वामीनाथ शो उद्योग करवा आव्या, डांगवने || ना मुकावशो, अने जो मुकावशो तो सुभद्राए अने अभिमन्युए पण लीधेलंछे.॥४०॥ | ॥श्लोक॥डांगवार्थत्यजेत्प्राणान्पुत्रोतेमृत्युमाप्ससि॥श्रुत्वासद्रौपदीवाक्यंअर्जुनो 37 For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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