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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक। मावारयभीमसेनंमाहापापंभवेत्तव // श्रुत्वावाक्यंतदाकुंतीभामंप्राप्ता वदेत्वच // 33 // टीका-माटे करीने हे मात तमे वारशो तो ए पातिक तमने वळगशे, एवां वचन द्रुपदीनां सांनळीने कुंताजी भीम प्रति बोले छे. 33 ॥कुत्युवाच॥ कुंताजी भीम प्रति शुं बोलतां हवा; ॥श्लोक॥ शृणपुत्रमहाबाहो धन्चकर्मकृतंशुभं अनित्यंशरीरंपुत्रतत्रकापरिवेदना // 34 // टीका-हे बाप माहारा बुद्धिवान् पुत्र, यादवो साथे आपणे घणुं हेत छे, परतुं जो सुभद्राये डांगव साथे बळी / मरवानुं पण करयूंछे, एज हेतुथी तुं शुभ क्रत्य कर छे, तेनुं रक्षण न थाय तो श्रा शरीर तो अनित्य छे, तेहेनी वेदना न राखतां क्षत्री, पण राख्य. 34 . श्लोक। कुरुष्णिसमंयुदंशोभनंचनविष्यति।एतावदुक्त्वावचनंस्थिताकुंतीच द्रौपदी 35 // टीका-हे दीकरा यादवो साथे युद्ध करच, ताहारो जय थशे, एवां वचन केहेताथकां एयपण बेशी रहे छे. 35 ॥श्लोक // प्रद्युम्नोतंचप्रोवाचधर्मपुत्रयुधिष्ठिरं नायातासर्वएतेचसमुद्रेनिम्नगा यथा // 36 // टीका-प्रद्युम्न युधिष्टिरने केहे छे के हे धर्मराज, आतो सद् त्यांने त्यां रह्यां, जे रीते नदीओ समुद्रने पामीने फरी ठेकाणे ना आवे, एवो न्याय वत्तैछे / ॥श्लोक। अर्जुनोप्रेरणीयोवैभामंतुविनिवारयत्॥श्रुत्वाप्रद्युम्नवचनंअर्जुनोवाक्य | For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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