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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie ॥श्लोक // गृहित्वातर्वशीराजाहृदयेहर्षपरितः श्रागतोनगरीमध्यप्रविष्टोनिज वेश्मनि॥३३॥ टीका-एरीते प्रतिज्ञा करतो सतो,धोडीरुप एवी जे उर्वशी तेने दोरीने, हृदयमां परिपुर्णछे हर्ष ते जेने एवो जे डांगव,ते तो पोताने घेर लावीने बांधतोहवो.३३ . ॥श्लोक // सौवर्णश्चंद्रकोबद्धःपताकाभिश्चतोरणे : दीपमालाचपात्रेषुबद्धासा तुरगीनृप // 34 // टीका-पोतानो जे सुंदीर निवास तेने विशे सुवर्णमय चंदरवा बंधावीने, तोरण दीपमाळे सहवर्तमान रचना रचावतोथको घोडीने वांधे छे. 34 . ॥श्लोक // दिवसेवाहनंगछेत्रात्रौभोगेननंदनि, राजातुडांगवोराजन्मोहितो माययावतु // 35 // टीका-ए राजाने एवोतो श्रानंद भराइ गयो छे के, दिवसे वाहन करेछे ने रात्रीए भोग तृष्णा पुरी पाडे छे, एरीते हे जन्मेजय राजा डांगव तो मायाना मोहमां लपटातो हवो. 35 ॥श्लोक॥ शतशोशेवकास्तस्यारक्षार्थमोचितास्तदा // डांगवोहर्षमापेदेवहुरंग समारतः॥३६॥ टीका-अने वळी एटलुंजनहीं पण,हजारहजारोसेवको घोडीनारक्षपाळ कस्याछे,सुंदीर खोराक खवरावेछे अने ए डांगवराजा श्रानंदमां दिवस निर्गमन करयां जायछे.३६ शतिश्रीमहाभारतेडांगवोपास्यानेडांगवतुरगीसमागमोनामतृतियोऽध्यायः॥ तटीकायांरैक्क कुलोद्भव जयसुत गंगा०विरचितायां त्रतियोऽध्यायः३, For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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