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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. 14 ॥श्लोक। परहस्तेनदातव्यातदागछामितेग्रह। उर्वशीवाक्यमाकण्यपश्चात्प्रो वाचडांगवः॥२९॥ टीका-तेमाटे जो कदापी तमे प्रतिज्ञाकरो के मने बिजानेनसुंपवी, तोहं तमारी साथे आq,एबुंवाक्यडांगवसांभळीने मनसाथे विचार करवालाग्यो.२९ ॥श्लोक॥ ॥डांगवउवाच॥ तमात्माचममात्माचोकोवैद्वितियोनहि अन्येभपान कुर्वतिममवैभववासनां // 30 // टीका-मन साथे विचार करीने डांगव बोले छे ; हे सुंदरी तारो आत्मा ने महारो आत्मा एक गणीश माटे तुं महारी साथे गति करव, बिजा नूप महारा वैभवनी कदापी वासना नहीं करे. 30 ॥श्लोक॥ यदिदैवश्चकुपितःशरणाश्चैवदेवताः नरक्षेछरणंकोपिभस्मसात्तवसंगतः // 31 // टीका-जो कोइ समय महारा उपर देव कोपायमान थशे, तोयपण ढुं अनुष्ठानादिक प्रयोगे करीने तने नहीं मुंकु, तेम करतां उपाय नहीं चाले तो तहारी साथे बळि मरीश ए रीतनी प्रतिज्ञा करे छे. 31 ॥श्लोक।सत्येनसूर्यस्तपतिसत्येनवातिचानिलः वन्हिर्दहतिसत्येनस्वागच्छभवनं मम // 32 // टीका-हे प्रीय सत्यवडे करीने पृथ्वी रही छे, सत्यवडे करीने सूर्य नारायण तपे छे, सत्ये करीने वायू वाह्य छे, सत्यवडे करीने अग्नी दहन करे छे, माटे | महारी सत्य प्रतिझा छे, तने हुं परने हाथ नहीं जवा देउ. 32 For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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