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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यक्षणी नथी, राक्षसी नथी परंतु ढुं ईद्रने वाहाली उर्वशी अप्सराछु. 24 ॥श्लोक॥ पूर्वकर्मविपाकेनदुर्वासाःकुपितोमयि शापितामहाराजागतातवसंनिधी // 25 // टीका-हे महाराज पूर्व कर्मना विपाकवडे करीने दुर्वासाए मने शाप | दीधो तेणेकरीने तमारा वनना सानिद आवीने आ महाकष्ट भोगवुछु. 25 ॥श्लोक॥ सप्ताईवजसंयोगेभवेन्मोक्षोममापिच कदावातस्यसंयोगोहरिर्जाना तिकोनच // 26 // टीका-मने कष्ट क्यां सुधी छे के साढात्रण वजनो संयोग थाय | त्यां सुधीज, अने साढावण वचनो संयोग थयेथके हुं मोक्षपद पामीश, अने ए | साढात्रण वज क्यारे भेगां थशे ए परमेश्वर विना कोइ जाणतु नथी. 26 ॥श्लोक॥ प्रसंन्नोडांगवोराजाप्रतिवाचंवदेत्पुनः श्रागछमदग्रहदोविपट्टराज्ञीसदा / | नव // 27 // टीका-तेम सांनळतांज डांगव राजा प्रसन्न थइ गयो; अने ते स्त्रिप्रत्ये | बोलवा लाग्यो रे कंदर्प वर्धिनी, तुंमहारे घेर हीड्य हुं तने पट्टराणी स्थापुछु. 27 / उर्वशीउवाच॥॥श्लोक॥ यदित्वंमांचनयसिनगरेयुवतिसमां श्रुत्वान्येबहवो। भूपात्रागछंतिममेप्सया // 28 // टीका-उर्वशी बोलती हवी; हे राजन् हुं दिवसे | घोडीरुपर्छ तथापि, मने स्त्रिनीपेठे नगरमां लइ जशो त्यारे बीजा भूप जाणशे तो। || तमारी केड लेशे, अने मने लेइ जवानी इच्छा करशे. 28 For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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