________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सांप्रतं // 20 // टीका-हे शुभेतं ते ब्रह्माणीकुं, कींवा इश्वरीछु, कींवा दुर्गाछु, कींवा डाग. | इंद्राणीछु, कींवा लक्ष्मीछु, में तने तुरगीरुप दीठी छे, अने सांप्रतकाल सुंदिर स्त्रीरुप देखाउछु तेनुं कारण कहे. 20 ॥श्लोक // राझोवचनमाकर्ण्यसोर्वशीप्राहसत्वरं, अहंकर्मविपाकनप्राप्ताचक्लेश मीद्रशं // 21 // टीका-एवां राजानां वचन, ते उर्वशी सांनळीने राजा प्रत्ये बोले छे, हे राजन् मारा कर्मना विपाकवडे करीने आवो क्लेश पामिछु. 21 ॥लोक॥ त्रोटिताकिमयावल्लीछेदितंसरसस्तटं गूरूनिंदाकृतामेऽद्यसत्यामलाछनंधृतं // 22 // टीका--रे भावी में ते शं वेलो तोडी हशे, कींवा तलाव पुरयां हशे, कींवा गूरूं निंदा करी दशे, जे त्रा मने लांच्छन थयु. 22 ॥श्लोक // कन्याविक्रयभोजेनपोशितंशरिरंमया // गर्वस्यकारणाद्राजन्प्राप्ता दुःखंसुदुःसहं // 23 // टीका-हे राजन कंन्या विक्रय करीने जे पैशाथी पोतान उदर पोषण करयुं होय तो श्रावू दुःख पमाय, परंतु आ देहे तो गर्वना कारणथी श्रा दुःसह दुःख पांमिछु. 23 ॥श्लोक // नाहंदेवानदैत्येंद्रीयक्षिणीराक्षसीमता // अहंभोउर्वशीनामअप्सरा / सुरवल्लभा // 24 // टीका-हे राजेंद्र हुं देवी नथी, हुं दैत्य योनि नथी, इंद्राणी नथी, 13 For Private and Personal Use Only