________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक // वैशंपायनउवाच॥ एकदातस्यनगरनारदोमुनिर तमः परिममन् / टाग. जटाभारंवीणांबिधन्मनोरमां // 1 // टीका-वैशंपायन मुनि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा; एक दिवसने विशे डांगवना नगरमां सुंदिर वीणा वगाडता एवा अने मस्तकने विशेछे जटाभार ते जेने, एवा भ्रमताथका नारद मुनि प्रवेश करे छे. 1 ॥श्लोक॥ राजद्वारेगतःशीघ्रप्रविष्टपूर्वपोलिका द्वितीयांतृतीयांत्यक्त्वाह्यागत स्तस्यवेश्मनि // 2 // टीका-केवी रीते के पहेली बिजी विजी पोच्ने उल्लंघन करीने, ज्यां राजद्वार छे त्यां उतावळा द्रोडे छे. 2 लोक॥ दृष्टवातुडांगवोराजास्वासनादुत्थितोनृप पूजितोविधिवद्राजाकथांकुर्व न्ससंस्थितः // 3 // ॥टीका-अने उतावळा आवता एवा मुनिराजने जोइने, आसन उपरथी उठतोथको ते डांगव राजा, विधिवत् नारदमुं पुजन करे छे, पुजन करीने शुनासने बेसारे छे, एटलुंज नहीं पण बे हाथ जोडीने तेमनी प्रणिपत्य करे छे,कारण के रखे हुँ चुकीश तो मने शाप देशे एम विचास्यां करे छे. 3 ॥श्लोक॥ दृष्टवातुरगीवाक्यमुवाचनारदोमुनि : राजन्नेकापितुरगीकथंबध्नाति वेश्मनि // 4 // टीका-नारदमुनि जे पेली घोडी बांधीछे तेने जोइने, राजा प्रत्ये बोले छे के, हे राजन् श्रा घोडी हावी कनक मेहेलमा क्यम बांधी छे, ते मने संनळाव्य.४१५ For Private and Personal Use Only