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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org आदि लश्ने जादवोनी सनां नरइछे, त्यां गति करता हवा. ॥श्लोक। गत्वाक्रोधेनवचनंप्राहरुक्मणीनंदनः पितरंस्वंविनिंद्यायपांडवामर्षविह लः॥२॥ टिका।सभाना मध्ये जइने अत्यंत क्रोध युक्त पोताना पितरनी निंदा करवा लाग्या, जुवो तमे पांडवोने घणा चढाव्या तेमा मर्ष युक्त थइ गयाछे. प्रद्युम्नउवाच॥ हवे प्रद्युम्न पोताना पिता प्रत्ये शुं बोलता हवा. ॥श्लोक॥ भ वतामानितातातकोनजानातिपांडवान् // कर्मचकिशंयेशांकौरवामानतिासदा // 3 // टिका॥ोहो आज सुधी पांडवने कोण ओळखतुं, तमेज मानीता कर्याछे, एमनांक त्य केवांछे ते हवे जणाशे बिचारा कौरवने सदाय अमानीताराखोछो. श्लोक। कपिनामानितोवंक्षोगिरिरोहप्रंकुर्वतिअस्माभिर्मानितायावत्तावत्स्पर्दा कतान्पैः ॥४॥टिका-कोइपुरुष वानराश्रोने मान आपे तारे वानराओ पर्वत उपर कु दीने प्रसन्न रहे, एज रीते आपणे मानीता कर्या तो अाज सामा थवं इच्छेछे.. ॥श्लोक॥अपांडवींमहींकुर्मोवयंतातयथाकुल॥महतिअपमानंतुनाशंयातियवह | ॥५॥टिकाहे तात हे पिता मने एटलुं खोटु लाग्युं छे के, जो तमे अपांडवी प्रथ्वी करो, तथापि मने खेद नहीं अावे, कारण के मने अपमान घणुं कर्युछे, ए सघर्बुजा दवोने लांछनछे. 5 // For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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