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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. ॥वैशंपायनउवाच॥ वैशंपायनमुनि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा; // लोक॥ 29 | उत्तीर्यकांचनरथात्पार्थपत्नीसुतान्विता // भीमसेनंनमस्क्रत्यमातातववचोऽब्रवीत्॥१॥ टीका-अर्जुननी स्त्री जे सुभद्रा ततो,पोतानोपुत्र जेअभिमन्युतेसुद्धां सुवर्णमयरथमाथी || उतरीने भीमसेनने नमस्कारकरेछे,अने नमस्कार करतांसतां सुभद्राजी वाणीबोलेछे.१ ॥सुभद्राउवाच॥ सुनद्राजी भीमसेन प्रत्ये शुं बोलतां हवां ; ॥श्लोक। भोता तशृणुमेवाक्यं स्वस्थचित्तेनभूपते॥धानीतोयंमहाराजशरणार्थीमयान्प॥२॥ टीका-धंघट तापीने सुभद्राजी के छे के हे जेठ पाप स्वस्थ चित्ते सांभळो, मेंहेतो आज | आ राजाने शरण राख्यो छे. 2 लोक। तस्यसंरक्षणंतातभवतांघटतेयदि भ्रातृवत्पालनीयोऽयमादुःखंप्राप्य तेकदा // 3 // टीका-हे तात मेंहे जेने शरण राख्यो, तेनुं संरक्षण तमारे करवूपडे, माटे भ्रातृ पुत्रादिकनी पेठे एने पाळो, जेणेकरीने ए दुःख न पामे. 3 ॥नीमसेनउवाच / / एम सांनळीने भीमसेन शुं बोलता हवा; ॥श्लोक। रक्षि | तोयंमयाभद्रेस्वस्थचित्ताग्रहंव्रज॥ एवंसंवदतेयावत्पंचालीतत्रचागता // 1 // टीका-हे स्त्रि तने दया उत्पन्न थइ तो माहारे एनुं रक्षण करवू, स्वस्थ चित्ते घरनां काम काज करो, एम वातो करे छे एटलामां पंचाली प्रावी पोकतां हवा. 4 For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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