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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kailassagarsun Gyanmandir ॥श्लोक। द्रौपद्यापतितापादेसुभद्रामाधवानुजा प्रसन्नाद्रौपदीप्राहशृणवाक्या / विशांपते // 5 // टीका-अने ज्यां द्रुपदीने श्रावतां दीठां त्यांतो, क्रष्ण बांधवा जे सुभद्रा, द्रुपदीने पगे पडे छे, अने ते जोइने द्रुपदी वचन बोलेछे. 5 ॥द्रौपदीउवाच॥ हवे द्रौपदी शुं बोलतां हवां ; ॥श्लोक। धन्यात्वंसापत्न्यातु पूर्णाःसंतुमनोरथा: जेष्टगहकिमर्थत्वंचागताकारणवद // 6 // टीका-हे सुनद्रे तमने। धन्य छ, तमारा मनोरथ परिपूर्ण हो, परंतु तमने हुं पुछुछु के आज जेष्टने | घेर क्यम आव्यां छो. 6 सुभद्राउवाच॥ एम सांभळीने सुभद्राजी शुं बोलतां हवां ॥श्लोक॥ अयंहि | डांगवोराजाक्रप्णागीतोशुभानने // गंगातीरेचदाहार्थंचितांप्राप्तश्चदर्शित : // 7 / / टोका-हे शुभानने द्रौपदी आ डांगव राजा क्रष्णथी भय पांमेलो गंगातीरे बळी मरतोतो, ते में नजरे दीटो. 7 ॥श्लोक। आनीतोमेमाहाराजाशरणार्थीद्रौपदीपति॥ समर्पितोनीमसेनंधात तूल्यंचपाल्यति // 8 // टीका-ते मेंहे दया आव्याथी शर्ण राख्यो सतो, भीमसेनने / सुप्यो छे, ते एने भाइ तुल्य पाळशे, एम प्रतिज्ञा करे छे. 8 ॥द्रौपदीउवाच॥ एम सांनळीने द्रौपदी शुं बोलतां हवां ; लोक॥ धन्यात्वंच। / For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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