SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir सहदेवउवाच॥हवे सहदेव शुं बोलता हवा.श्लोक। हरौवैसेवनीयश्चयेनशांति | र्भवेन्नृप॥सहदेववचःश्रुत्वाभीमोकैलासमागमत्॥१७॥ टीका. हे नृप, हे युधिष्टि | र,चक्रने जितवानो तो एक उपायछे, जे भिमसेन महादेवनुं पाराधन करे, ते थकी कांइ वस्तु प्राप्त थशे. एवां वचन सांभळीने तात्काळ भीम कैलास प्रति जतो हवो. ॥श्लोक // तवगत्वाजगन्नाथदेवदेवमहेश्वरं तुष्ठावभीमोभक्त्यावैगौरीशंकरमेव च // 18 // टिका॥ त्यां जइने सुंदिर नृत्यवडे करीने शंकरचें मन रंजन करी दिधु, ते ज समय महादेवजी भक्तिभाव वडे प्रसन्न होता हवा. श्लोक ॥प्रसन्नोऽभूतदादेवःप्रोवाचवायुनंदनंवरंब्रूहिवरंब्राहियनशांतिर्भवेत्तव // 19 // टीका. प्रसन्न थश्न भीम प्रति वाणी बोलेछे, रे नृप तुं मारी पासे वर माग्य वर माग्य हूं तारा भाव वडे करीने संपूर्ण प्रसन्न थयोबु.१९ भिमउवाच॥भिमसेन महादेवजी प्रति शुं वोलता हवा. श्लोक // सुदर्शनजैत्र मस्त्रंचदेहिमपार्वतिपते॥दत्तागदाचमहतीचक्रवारयतिनृप // 20 // टिका हे पार्वति पते, जो तमे मने प्रसन्न थया हो, तो तो सुदर्शनने जितु, ए रीतनुं कांइ शस्त्र प्रापो एवं कहतांज शंकरेगदा पापी. जेणे करीने चक्र वधी शके नही. श्लोकागतोनीमसेनोवैवरंलब्ध्वामहेश्वरात्॥प्रसन्नापांडवाराजनस्वान्स्वां For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy