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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डाग. तु ए संबंधनी प्रीति संग्राम समय न राखवी, आपण सउ गुरुनी सेवा वडे करीने यु अ. ४०द कुशल छइए, पछी ज्यम थवा काळ होय त्यम थयां जायछे. एनो शोक क्षत्रिने कदा | 9 पिन करवो. 13 ॥श्लोक // सुदर्शनस्यविद्यावैनाधितागुरुणातदा ॥देववादानवंवाथचक्रंछेदतिन मृषा // 14 // टीका-भीम कहे छे रे भाइयो, सर्व विद्यामां आपण कुशळ थया परंतु सु दर्शन चक्रने जितिए एवी विद्या कोणे अध्ययन करी नथी, अने ए चक्रतो केवूछे के देव दानव राक्षस सर्वनो नाश करे एवंछे,१४ ॥श्लोक // सुदर्शनस्यसीक्षार्थकोउपायश्चक्रियतांप्रोवाचधर्मराजोवैसहदेवंतथा नृप // 15 // हवे अापणे सुदर्शन चक्रने जितवानो शो उपाय करवो, एम भीम वाणीबो लेछे. एटलामां धर्म राजा सहदेव सामु जुवेने, युधिष्ठिरउवाच॥ हवे युधिष्टिर सहदेव प्रति शुं बोलता हवा, ॥श्लोक॥ दैवज्ञत्वं यथाभ्रातर्वदनोविजयोभवेत्॥प्रायशोचक्रजैत्रंचअस्त्रंकिंप्राहमाद्रिजः॥१६॥ टीका-हे। सहदेव भ्रात, तमे तो दैवज्ञगे, कोण उपायथी आपणो विजय थाय, एवात मने स मजावो, हे माद्रिना पूत्र आपणने एहवं अस्त्र क्याथी मळे के , चक्रने जिति शकीये.॥१६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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